नागार्जुन सुप्रसिद्ध रसायनज्ञ थे, पर वे संपर्क में आने वालों को धर्मोपदेश भी दिया करते थे । इस पर एक व्यक्ति ने कहा---- आप रसायन शास्त्र पढ़ाया करें तो आपका नाम भी बढ़ेगा और आपकी विद्दा का भी विस्तार होगा ।
नागार्जुन बोले ----- रसायनज्ञ तो कभी भी बना जा सकता है, बात तो तब है जब अच्छे आदमी बने ।
एक शिष्य ने आत्मज्ञान का शिक्षण लिया और अपने गुरु से बोला---- " हे गुरुवर ! उच्चस्तरीय साधना हेतु मैं पहाड़ों जैसी शांति चाहता हूँ । " गुरु ने कहा----- " वत्स ! पहाड़ों का परमार्थ अनिश्चित है । तू सुदूर क्षेत्रों में जा--- जहाँ अज्ञान का तिमिर व्याप्त है । व्यक्ति दीन-हीन स्थिति में अपना जीवनयापन कर रहें हैं । तू नगरों में जा----- जहाँ अज्ञान मानव-मानव के बीच भेदभाव, छल-कपट और विषमता के बीज बो रहा है । "
शिष्य बोला-- " देव ! वहां की संघर्ष यातनाएं मुझसे झेली न जाएँगी, वहां का कोलाहल-क्रंदन मुझसे देखा न जायेगा । मुझे तो हिमालय से दूर न जाने दें । "
गुरुदेव की आँखे छलछला उठीं । वे बोले--- " तात ! जिस राष्ट्र के नागरिक--- नन्ही-नन्ही संताने भटक रहीं हों, वहां के प्रबुद्ध नागरिक केवल अपने स्वार्थ की बात सोचें, यह अनैतिक है ।
ईश्वर को पाना है तो प्रकाश की साधना करो । जो अंधकार में भटक गये हैं, उन्हें ज्ञान का प्रकाश दो, चारों ओर अर्जित संपदा बिखेर दो ।
शिष्य चल पड़ा------- मानवता के देवदूत के रूप में ।
नागार्जुन बोले ----- रसायनज्ञ तो कभी भी बना जा सकता है, बात तो तब है जब अच्छे आदमी बने ।
एक शिष्य ने आत्मज्ञान का शिक्षण लिया और अपने गुरु से बोला---- " हे गुरुवर ! उच्चस्तरीय साधना हेतु मैं पहाड़ों जैसी शांति चाहता हूँ । " गुरु ने कहा----- " वत्स ! पहाड़ों का परमार्थ अनिश्चित है । तू सुदूर क्षेत्रों में जा--- जहाँ अज्ञान का तिमिर व्याप्त है । व्यक्ति दीन-हीन स्थिति में अपना जीवनयापन कर रहें हैं । तू नगरों में जा----- जहाँ अज्ञान मानव-मानव के बीच भेदभाव, छल-कपट और विषमता के बीज बो रहा है । "
शिष्य बोला-- " देव ! वहां की संघर्ष यातनाएं मुझसे झेली न जाएँगी, वहां का कोलाहल-क्रंदन मुझसे देखा न जायेगा । मुझे तो हिमालय से दूर न जाने दें । "
गुरुदेव की आँखे छलछला उठीं । वे बोले--- " तात ! जिस राष्ट्र के नागरिक--- नन्ही-नन्ही संताने भटक रहीं हों, वहां के प्रबुद्ध नागरिक केवल अपने स्वार्थ की बात सोचें, यह अनैतिक है ।
ईश्वर को पाना है तो प्रकाश की साधना करो । जो अंधकार में भटक गये हैं, उन्हें ज्ञान का प्रकाश दो, चारों ओर अर्जित संपदा बिखेर दो ।
शिष्य चल पड़ा------- मानवता के देवदूत के रूप में ।
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