महायोगी समर्थ गुरु रामदास ने वैशाख शुक्ल नवमी, संवत 1571 को शिवा को शिष्य बनाया---- गुरुमंत्र दिया और प्रसाद रूप में एक नारियल, मुट्ठी भर मिट्टी, दो मुट्ठी लीद और चार मुट्ठी पत्थर दिए जो क्रमश: ----- द्रढ़ता, पर्थिवता, ऐश्वर्य एवं दुर्ग विजय के प्रतीक थे |
शिवाजी ने गुरु का प्रसाद ग्रहण किया और साधु जीवन बिताने की अनुमति मांगी ।
समर्थ ने उन्हें समझाया------ " पीड़ितों की रक्षा तथ धर्म का उद्धार तुम्हारा कर्तव्य है । साधु वही है, जो अपनी वासना, तृष्णा, संकीर्ण स्वार्थपरता को त्याग कर निस्स्वार्थ भाव से देश-धर्म की रक्षा करे । उन्होंने कहा------- " युग परिवर्तन प्रबल पराक्रम से होता है, आज देश को तुम्हारे शौर्य की आवश्यकता है । "
गुरु की तप शक्ति ने शिवाजी को शौर्यपुंज बना दिया । उन्होंने छत्रपति कहलाने का श्रेय प्राप्त किया | हजारों महावीर मठ, जो समर्थ द्वारा स्थापित किये गये, वे प्रेरणा एवं जनसहयोग के स्रोत बने । परिणामस्वरुप मुगल साम्राज्य की जड़ें खोखली हो गईं ।
वे कहते थे----- " पुष्ट शरीर के अंदर ही स्वस्थ मन बनता है और स्वस्थ मन ही निष्कलुष आत्मा का आश्रय है । इसलिए मैंने हनुमान का आदर्श स्वयं अपनाया है और जन-जन के सामने रखा है । हनुमान शरीरबल, मनोबल एवं आत्मबल तीनो का साक्षात् स्वरुप हैं । वे वज्रदेह, महाज्ञानी और प्रभु के प्रिय भक्त हैं । तभी तो वे ' दनुज वन कृशानुम ' दैत्यों के वन को जलाने वाली आग हैं ।
गुरु समर्थ ने शिवाजी से कहा----- "समय की धारा को, युगप्रवाह को मोड़ने के लिये महापराक्रम की जरुरत है, तुम्हारा मार्ग निष्कंटक हो, भवानी तुम्हारा मंगल करें । "
शिवाजी ने गुरु का प्रसाद ग्रहण किया और साधु जीवन बिताने की अनुमति मांगी ।
समर्थ ने उन्हें समझाया------ " पीड़ितों की रक्षा तथ धर्म का उद्धार तुम्हारा कर्तव्य है । साधु वही है, जो अपनी वासना, तृष्णा, संकीर्ण स्वार्थपरता को त्याग कर निस्स्वार्थ भाव से देश-धर्म की रक्षा करे । उन्होंने कहा------- " युग परिवर्तन प्रबल पराक्रम से होता है, आज देश को तुम्हारे शौर्य की आवश्यकता है । "
गुरु की तप शक्ति ने शिवाजी को शौर्यपुंज बना दिया । उन्होंने छत्रपति कहलाने का श्रेय प्राप्त किया | हजारों महावीर मठ, जो समर्थ द्वारा स्थापित किये गये, वे प्रेरणा एवं जनसहयोग के स्रोत बने । परिणामस्वरुप मुगल साम्राज्य की जड़ें खोखली हो गईं ।
वे कहते थे----- " पुष्ट शरीर के अंदर ही स्वस्थ मन बनता है और स्वस्थ मन ही निष्कलुष आत्मा का आश्रय है । इसलिए मैंने हनुमान का आदर्श स्वयं अपनाया है और जन-जन के सामने रखा है । हनुमान शरीरबल, मनोबल एवं आत्मबल तीनो का साक्षात् स्वरुप हैं । वे वज्रदेह, महाज्ञानी और प्रभु के प्रिय भक्त हैं । तभी तो वे ' दनुज वन कृशानुम ' दैत्यों के वन को जलाने वाली आग हैं ।
गुरु समर्थ ने शिवाजी से कहा----- "समय की धारा को, युगप्रवाह को मोड़ने के लिये महापराक्रम की जरुरत है, तुम्हारा मार्ग निष्कंटक हो, भवानी तुम्हारा मंगल करें । "
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