गायत्री महामंत्र सर्वोपरि शिरोमणि मंत्र है । गायत्री एक महाशक्ति है । बिखरे हुए संप्रदायों का केंद्र वही है । माला में जिस प्रकार मनकों को एक धागा अपने में बाँधे रहता है, वही भूमिका गायत्री की है ।
गायत्री मंत्र व्यक्तित्व के परिमार्जन व परिष्कार का मंत्र है ।
ब्रह्मर्षि विश्वामित्र ने गायत्री का आह्वान मानव प्रकृति के रूपांतरण के लिए किया था ।
उस युग में दस्युओं और आर्यों में कठिन संघर्ष चलता रहता था । दस्यु तो सब तरह से संस्कार-विहीन नर-पशु की भांति जीवन जीते थे, जबकि आर्य सब तरह से श्रेष्ठ-संस्कारवान थे ।
ब्रह्मर्षि विश्वामित्र ने सोचा, क्यों न कोई ऐसी आध्यात्मिक खोज की जाये, जिससे दस्युओं के संस्कार व प्रकृति को बदलकर उन्हें संस्कारवान, श्रेष्ठ मनुष्य बना दे । इसी क्रम में उन्होंने अनेक अन्वेषण-अनुसंधान किये , फिर इसी के परिणामस्वरुप उन्होंने गायत्री महाविद्दा का स्वरुप व संरचना अविष्कृत की ।
पुराने संस्कार चट्टान के समान होते हैं क्योंकि उसमे पिछले कई जन्मों का बल जुड़ा रहता है परंतु भगवद् भक्ति और गायत्री मंत्र के जप से यह कमजोर पड़ने लगते हैं ।
व्यक्ति को अपने अंदर भक्ति और विश्वास का यह दीपक जलाए रखना चाहिए और इसे किन्ही भी झंझावातों से, किसी भी आँधी से बुझने नहीं देना चाहिये । ईश्वर के प्रति समर्पण से जब ऐसी भक्ति जग जाती है तब रूपांतरण होने लगता है ।
गायत्री मंत्र व्यक्तित्व के परिमार्जन व परिष्कार का मंत्र है ।
ब्रह्मर्षि विश्वामित्र ने गायत्री का आह्वान मानव प्रकृति के रूपांतरण के लिए किया था ।
उस युग में दस्युओं और आर्यों में कठिन संघर्ष चलता रहता था । दस्यु तो सब तरह से संस्कार-विहीन नर-पशु की भांति जीवन जीते थे, जबकि आर्य सब तरह से श्रेष्ठ-संस्कारवान थे ।
ब्रह्मर्षि विश्वामित्र ने सोचा, क्यों न कोई ऐसी आध्यात्मिक खोज की जाये, जिससे दस्युओं के संस्कार व प्रकृति को बदलकर उन्हें संस्कारवान, श्रेष्ठ मनुष्य बना दे । इसी क्रम में उन्होंने अनेक अन्वेषण-अनुसंधान किये , फिर इसी के परिणामस्वरुप उन्होंने गायत्री महाविद्दा का स्वरुप व संरचना अविष्कृत की ।
पुराने संस्कार चट्टान के समान होते हैं क्योंकि उसमे पिछले कई जन्मों का बल जुड़ा रहता है परंतु भगवद् भक्ति और गायत्री मंत्र के जप से यह कमजोर पड़ने लगते हैं ।
व्यक्ति को अपने अंदर भक्ति और विश्वास का यह दीपक जलाए रखना चाहिए और इसे किन्ही भी झंझावातों से, किसी भी आँधी से बुझने नहीं देना चाहिये । ईश्वर के प्रति समर्पण से जब ऐसी भक्ति जग जाती है तब रूपांतरण होने लगता है ।
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