महान व्यक्तित्वसंपन्न जीवन का मूल्य व्याख्यान, प्रवचन एवं उपदेश देने में निहित नहीं होता है, बल्कि सर्वप्रथम उसे अपने जीवन में उतारने एवं ह्रदयंगम करने में होता है | ऐसे व्यक्तित्व तारों भरे आसमान में एक अलग चमकते हुए ध्रुव तारा के समान हैं । ऐसे महान व्यक्तित्व केवल उच्च आदर्श एवं उत्कृष्ट विचारों के लिये जीते हैं ।
महर्षि दयानंद फर्रुखाबाद में रुके हुए थे । एक व्यक्ति दाल-चावल बनाकर लाया | गृहस्थ था एवं मजदूरी करके परिवार का पेट भरता था । स्वामी जी ने उसके हाथ का अन्न, जो श्रद्धा से लाया गया थ, ग्रहण किया । ब्राह्मणों को बुरा लगा । वे बोले--- " आप सन्यासी हैं । इस हीन कुल के व्यक्ति का भोजन लेकर आप भ्रष्ट हो गये । " स्वामी जी बोले-- " कैसे, क्या अन्न दूषित था । "
वे बोले ---- " हाँ, आपको लेना नहीं चाहिये था । " स्वामी जी बोले--- " अन्न दो प्रकार से दूषित होता है एक तो वह, जो दूसरों को कष्ट देकर शोषण द्वारा प्राप्त किया जाता है । और दूसरा वह, जहाँ कोई अभक्ष्य पदार्थ पड़ जाता है । इस व्यक्ति का अन्न इन दोनों ही श्रेणियों में नहीं आता ।
इसका अन्न परिश्रम की कमाई का है, तब दूषित कैसे हुआ, मैं कैसे भ्रष्ट हो गया ? आप सबका मन मलिन है । मैं जाति जन्म से नहीं, कर्म से मानता हूँ । भेदभाव त्याग कर आप सभी, सबके लिये जीना सीखिए । "
महर्षि दयानंद फर्रुखाबाद में रुके हुए थे । एक व्यक्ति दाल-चावल बनाकर लाया | गृहस्थ था एवं मजदूरी करके परिवार का पेट भरता था । स्वामी जी ने उसके हाथ का अन्न, जो श्रद्धा से लाया गया थ, ग्रहण किया । ब्राह्मणों को बुरा लगा । वे बोले--- " आप सन्यासी हैं । इस हीन कुल के व्यक्ति का भोजन लेकर आप भ्रष्ट हो गये । " स्वामी जी बोले-- " कैसे, क्या अन्न दूषित था । "
वे बोले ---- " हाँ, आपको लेना नहीं चाहिये था । " स्वामी जी बोले--- " अन्न दो प्रकार से दूषित होता है एक तो वह, जो दूसरों को कष्ट देकर शोषण द्वारा प्राप्त किया जाता है । और दूसरा वह, जहाँ कोई अभक्ष्य पदार्थ पड़ जाता है । इस व्यक्ति का अन्न इन दोनों ही श्रेणियों में नहीं आता ।
इसका अन्न परिश्रम की कमाई का है, तब दूषित कैसे हुआ, मैं कैसे भ्रष्ट हो गया ? आप सबका मन मलिन है । मैं जाति जन्म से नहीं, कर्म से मानता हूँ । भेदभाव त्याग कर आप सभी, सबके लिये जीना सीखिए । "
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