जीवन क्या है ? पल,क्षण, दिन महीने, वर्षों का सम्मुचय, जिसे हमारी जीवात्मा वर्तमान देह और मन से जीती है । जिस पल में हम जीते हैं, वर्तमान के पल, क्षण का सदुपयोग करना सीख जायेंगे तो जिंदगी संवर जायेगी ।
वर्तमान सच है । अतीत तो खो चुका, बीत चुका, वह अनगिनत प्रयासों के बावजूद लौटेगा नहीं और भविष्य अभी दूर है, जिसके लिये कितना भी पुरुषार्थ क्यों न करें, वह खिसक कर पास नहीं आ सकता । यह अनवरत काल है, एक सीधी रेखा के समान शाश्वत चलता हुआ ।
जो वर्तमान को ठीक-ठीक जी लेना जान लेता है, उसका आने वाला कल भी सुधर जाता है और अतीत भी सम्रद्ध हो जाता है ।
वर्तमान को सतत श्रेष्ठ कर्म के साथ जी भर कर जिया जाये । जिंदगी को बेहतरीन ढंग से जीने के लिये हमें हमारे वर्तमान क्षण का श्रेष्ठतम सदुपयोग करना आना चाहिये । जिसे वर्तमान को जीना आ गया, वह अतीत और भविष्य दोनों को सुधार लेता है ।
स्वामी रामतीर्थ जाब जापान गये तो उनकी भेंट वहां एक वृद्ध से हुई, जीर्ण-शीर्ण काया का यह वृद्ध 75 वर्ष की आयु में भी बड़े उत्साह से जर्मन भाषा सीख रहा था । स्वामी जी ने पूछा--- " बाबा ! इस उम्र में यह भाषा सीखकर आप क्या करेंगे ? "
वृद्ध बोला---- " स्वामी जी ! सीखने के लिये कोई उम्र नहीं होती । मैंने प्राणिविज्ञान में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की है, जर्मन भाषा में इस विषय पर कई अच्छी पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं , मैं उनका जापानी में रूपांतरण करूँगा, ताकि हमारे देशवासी भी उससे लाभान्वित हो सकें । "
उसके उत्साह, राष्ट्र की शैक्षणिक प्रगति के लिये उत्कट लालसा को देख स्वामी रामतीर्थ ने श्रद्धा से उसके पैर छू लिये और कहा--- " मैं समझ गया, अब जापान को आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक
सकता । "
वर्तमान सच है । अतीत तो खो चुका, बीत चुका, वह अनगिनत प्रयासों के बावजूद लौटेगा नहीं और भविष्य अभी दूर है, जिसके लिये कितना भी पुरुषार्थ क्यों न करें, वह खिसक कर पास नहीं आ सकता । यह अनवरत काल है, एक सीधी रेखा के समान शाश्वत चलता हुआ ।
जो वर्तमान को ठीक-ठीक जी लेना जान लेता है, उसका आने वाला कल भी सुधर जाता है और अतीत भी सम्रद्ध हो जाता है ।
वर्तमान को सतत श्रेष्ठ कर्म के साथ जी भर कर जिया जाये । जिंदगी को बेहतरीन ढंग से जीने के लिये हमें हमारे वर्तमान क्षण का श्रेष्ठतम सदुपयोग करना आना चाहिये । जिसे वर्तमान को जीना आ गया, वह अतीत और भविष्य दोनों को सुधार लेता है ।
स्वामी रामतीर्थ जाब जापान गये तो उनकी भेंट वहां एक वृद्ध से हुई, जीर्ण-शीर्ण काया का यह वृद्ध 75 वर्ष की आयु में भी बड़े उत्साह से जर्मन भाषा सीख रहा था । स्वामी जी ने पूछा--- " बाबा ! इस उम्र में यह भाषा सीखकर आप क्या करेंगे ? "
वृद्ध बोला---- " स्वामी जी ! सीखने के लिये कोई उम्र नहीं होती । मैंने प्राणिविज्ञान में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की है, जर्मन भाषा में इस विषय पर कई अच्छी पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं , मैं उनका जापानी में रूपांतरण करूँगा, ताकि हमारे देशवासी भी उससे लाभान्वित हो सकें । "
उसके उत्साह, राष्ट्र की शैक्षणिक प्रगति के लिये उत्कट लालसा को देख स्वामी रामतीर्थ ने श्रद्धा से उसके पैर छू लिये और कहा--- " मैं समझ गया, अब जापान को आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक
सकता । "
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