' या देवी सर्वभूतेषु ------ माँ नहीं तो जग नहीं । माँ के बिना यह स्रष्टि कैसे संभव होगी ।
माता ही है, जो अपने उष्ण रुधिर को श्वेत-शीतल दुग्ध बनाकर शिशु का पालन-पोषण करती है ।
वही है जो संबंधों में संवेदनशील सौंदर्य एवं माधुर्य का रस घोलती है ।
नारी माँ बनकर मानव जीवन को ज्ञान देती है, सद्विचार, सुसंस्कार व सद्बुद्धि प्रदान करती है ।
जिसे माता का संरक्षण नहीं मिल पाया, वह अपने व्यक्तित्व, ज्ञान व बोध की द्रष्टि से सदा अपूर्ण बना रहता है । आध्यात्मिक भाषा में यह माता ही तो ' महासरस्वती 'है, जिसकी शरण में ज्ञान का प्रकाश मिलता है ।
नारी और प्रकृति दोनों जीवन की आस्था का आधार हैं । ये दोनों आदिशक्ति जगन्माता का ही रूप हैं---- जो आदिशक्ति हैं, वही प्रकृति हैं वही शक्ति हैं और वही नारी हैं ।
प्रसिद्ध दार्शनिक मैजिनी ने अपने युग में कहा था यदि मानव सभ्यता व संस्कृति को अपना अस्तित्व बरकरार रखना है तो उसे नारी की श्रेष्ठता सुनिश्चित करनी पड़ेगी । उन्होंने अपने निष्कर्ष में कहा----- ' नारी व प्रकृति के बिना जीवन संभव नहीं है । नारी मानव को जीवन देती है और प्रकृति जीवन के लिये उपयोगी संसाधन । जितने अंशों में इनकी उपेक्षा होगी, जीवन उतना ही शक्तिहीन, श्रीहीन व सम्रद्धिहीन होता चला जायेगा । ' मैजिनी का कहना था-----
" मानव जीवन की शक्ति का स्रोत नारी व प्रकृति के सिवा अन्य कुछ भी नहीं है ।
माता ही है, जो अपने उष्ण रुधिर को श्वेत-शीतल दुग्ध बनाकर शिशु का पालन-पोषण करती है ।
वही है जो संबंधों में संवेदनशील सौंदर्य एवं माधुर्य का रस घोलती है ।
नारी माँ बनकर मानव जीवन को ज्ञान देती है, सद्विचार, सुसंस्कार व सद्बुद्धि प्रदान करती है ।
जिसे माता का संरक्षण नहीं मिल पाया, वह अपने व्यक्तित्व, ज्ञान व बोध की द्रष्टि से सदा अपूर्ण बना रहता है । आध्यात्मिक भाषा में यह माता ही तो ' महासरस्वती 'है, जिसकी शरण में ज्ञान का प्रकाश मिलता है ।
नारी और प्रकृति दोनों जीवन की आस्था का आधार हैं । ये दोनों आदिशक्ति जगन्माता का ही रूप हैं---- जो आदिशक्ति हैं, वही प्रकृति हैं वही शक्ति हैं और वही नारी हैं ।
प्रसिद्ध दार्शनिक मैजिनी ने अपने युग में कहा था यदि मानव सभ्यता व संस्कृति को अपना अस्तित्व बरकरार रखना है तो उसे नारी की श्रेष्ठता सुनिश्चित करनी पड़ेगी । उन्होंने अपने निष्कर्ष में कहा----- ' नारी व प्रकृति के बिना जीवन संभव नहीं है । नारी मानव को जीवन देती है और प्रकृति जीवन के लिये उपयोगी संसाधन । जितने अंशों में इनकी उपेक्षा होगी, जीवन उतना ही शक्तिहीन, श्रीहीन व सम्रद्धिहीन होता चला जायेगा । ' मैजिनी का कहना था-----
" मानव जीवन की शक्ति का स्रोत नारी व प्रकृति के सिवा अन्य कुछ भी नहीं है ।
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