साम्यवाद के जनक कार्ल मार्क्स ने अपनी पत्नी जेनी के लिए कहा था---- " यदि वह न होती तो शायद यह न कर पाता जो कर सका । " उनका सारा जीवन अभावों एवं कष्ट कठिनाइयों में बीता । विषमताओं में रहते हुए भी ' दास कैपिटल ' के रूप में वह कम्युनिज्म की सार गर्भित योजना प्रस्तुत कर सके, इन अमूल्य विचारों की उपलब्धि का श्रेय प्रत्यक्ष रूप से भले ही मार्क्स को जाता हो, पर वह जानते थे कि उनकी इस चिंतन साधना को सुचारू रूप से किसने गतिमान किया ?
यह और कोई नहीं उनकी पत्नी थीं----- श्रीमती जेनी मार्क्स ।
जेनी एक संपन्न घराने की बेटी थीं । उन्होंने जब यह निश्चय किया कि मार्क्स की ही जीवन सहचरी बनेगीं तो पिता एवं परिवार वालों ने बहुत समझाया कि उस व्यक्ति के पास अभ्यस्त जीवन सुविधाओं को प्राप्त कर पाना तो क्या दो वक्त पेट भर भोजन पाना भी अनिश्चित होगा ।
इस पर जेनी ने उत्तर दिया---- " तो क्या हुआ ? हजारों लोग ऐसे भी तो हैं जिन्हें एक वक्त भी खाना नसीब नहीं होता । " उन्होंने कहा---- " सामाजिक क्रांति जब जरुरी हो जाती है तब विचार लोगों के जीवन में लागू होने के लिए जबर्दस्ती अपना मार्ग ढूंढ निकालते हैं और समाज को एक नया रूप प्रदान करते हैं । मार्क्स इसी घटनाक्रम के लिए विचारों की खोज कर रहें हैं । उनके इस कार्य में सुख भी है, तृप्ति और शांति भी । मैं भी इसी की भागीदारी के लिए उनसे जुड़ रही हूँ । "
उनकी द्रढ़ता के आगे सभी को झुकना पड़ा ।
वह कहा करती थीं----- " मेरा कर्तव्य हर परिस्थिति में पति को सहयोग देना है । मुझे अपने कष्टों की चिंता नहीं है, मुझे गर्व है इस बात का कि मैंने एक ऐसे व्यक्ति को अपना जीवन साथी चुना है जिसके अन्त:करण में पीड़ित मानवता के लिए अपार वेदना है । "
जेनी को पाकर मार्क्स धन्य हो गये ।
यह और कोई नहीं उनकी पत्नी थीं----- श्रीमती जेनी मार्क्स ।
जेनी एक संपन्न घराने की बेटी थीं । उन्होंने जब यह निश्चय किया कि मार्क्स की ही जीवन सहचरी बनेगीं तो पिता एवं परिवार वालों ने बहुत समझाया कि उस व्यक्ति के पास अभ्यस्त जीवन सुविधाओं को प्राप्त कर पाना तो क्या दो वक्त पेट भर भोजन पाना भी अनिश्चित होगा ।
इस पर जेनी ने उत्तर दिया---- " तो क्या हुआ ? हजारों लोग ऐसे भी तो हैं जिन्हें एक वक्त भी खाना नसीब नहीं होता । " उन्होंने कहा---- " सामाजिक क्रांति जब जरुरी हो जाती है तब विचार लोगों के जीवन में लागू होने के लिए जबर्दस्ती अपना मार्ग ढूंढ निकालते हैं और समाज को एक नया रूप प्रदान करते हैं । मार्क्स इसी घटनाक्रम के लिए विचारों की खोज कर रहें हैं । उनके इस कार्य में सुख भी है, तृप्ति और शांति भी । मैं भी इसी की भागीदारी के लिए उनसे जुड़ रही हूँ । "
उनकी द्रढ़ता के आगे सभी को झुकना पड़ा ।
वह कहा करती थीं----- " मेरा कर्तव्य हर परिस्थिति में पति को सहयोग देना है । मुझे अपने कष्टों की चिंता नहीं है, मुझे गर्व है इस बात का कि मैंने एक ऐसे व्यक्ति को अपना जीवन साथी चुना है जिसके अन्त:करण में पीड़ित मानवता के लिए अपार वेदना है । "
जेनी को पाकर मार्क्स धन्य हो गये ।
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