मनुष्य एक भटका हुआ देवता है, सब कुछ जानते समझते हुए भी उस राह पर चलता रहता है जो उसे नर-पशु बनाने की दिशा में ले जाती है ।
अध्यात्म, भटकन से उबारने की विधा का नाम है । अध्यात्म का अर्थ पूजा-पाठ, कर्मकांड के विभिन्न तरीके नहीं है, आध्यात्मिक होने का अर्थ- चिंतन, द्रष्टिकोण एवं जीवनशैली में सार्थक एवं सकारात्मक परिवर्तन से है । स्वयं का सुधार-परिष्कार करना और जीवन में ,व्यवहार में श्रेष्ठता लाना ही सच्ची पूजा है, अध्यात्म है ।
अध्यात्म उस दूरदर्शिता का नाम है जो व्यक्ति यदि अंगीकार कर ले तो उसका जीवन पथ श्रेष्ठता की ओर, पूर्णता की ओर कंटक विहीन होता चला जाता है ।
जिनका द्रष्टिकोण आध्यात्मिक होता है वे भावनात्मक रूप से अधिक परिपक्व एवं मजबूत होते हैं. उनमे रोगों से लड़ने की क्षमता औरों की तुलना में 60 प्रतिशत अधिक होती है ।
आध्यात्मिक द्रष्टिकोण वाले व्यक्ति ज्यादा शांत, तनावमुक्त होने के साथ-साथ परोपकारी वृति के भी होते हैं । उनके अंदर औरों की भावनाओं को समझने व सम्मान देने की क्षमता अधिक होती है । आध्यात्मिक जीवन में संकीर्णता और कट्टरता का कोई स्थान नहीं है ।
आध्यात्मिकता सदा से ही संवेदनशीलता की हिमायती है ।
अध्यात्म, भटकन से उबारने की विधा का नाम है । अध्यात्म का अर्थ पूजा-पाठ, कर्मकांड के विभिन्न तरीके नहीं है, आध्यात्मिक होने का अर्थ- चिंतन, द्रष्टिकोण एवं जीवनशैली में सार्थक एवं सकारात्मक परिवर्तन से है । स्वयं का सुधार-परिष्कार करना और जीवन में ,व्यवहार में श्रेष्ठता लाना ही सच्ची पूजा है, अध्यात्म है ।
अध्यात्म उस दूरदर्शिता का नाम है जो व्यक्ति यदि अंगीकार कर ले तो उसका जीवन पथ श्रेष्ठता की ओर, पूर्णता की ओर कंटक विहीन होता चला जाता है ।
जिनका द्रष्टिकोण आध्यात्मिक होता है वे भावनात्मक रूप से अधिक परिपक्व एवं मजबूत होते हैं. उनमे रोगों से लड़ने की क्षमता औरों की तुलना में 60 प्रतिशत अधिक होती है ।
आध्यात्मिक द्रष्टिकोण वाले व्यक्ति ज्यादा शांत, तनावमुक्त होने के साथ-साथ परोपकारी वृति के भी होते हैं । उनके अंदर औरों की भावनाओं को समझने व सम्मान देने की क्षमता अधिक होती है । आध्यात्मिक जीवन में संकीर्णता और कट्टरता का कोई स्थान नहीं है ।
आध्यात्मिकता सदा से ही संवेदनशीलता की हिमायती है ।
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