4 October 2014

अध्यात्म

मनुष्य एक भटका हुआ देवता है, सब  कुछ जानते समझते  हुए  भी  उस  राह  पर  चलता  रहता  है  जो  उसे  नर-पशु  बनाने  की  दिशा  में  ले  जाती  है  ।
अध्यात्म, भटकन  से  उबारने  की  विधा  का  नाम  है  । अध्यात्म  का  अर्थ  पूजा-पाठ, कर्मकांड  के विभिन्न  तरीके  नहीं  है,  आध्यात्मिक  होने  का  अर्थ- चिंतन, द्रष्टिकोण  एवं  जीवनशैली  में  सार्थक  एवं  सकारात्मक  परिवर्तन  से  है  । स्वयं  का  सुधार-परिष्कार  करना  और  जीवन  में ,व्यवहार  में  श्रेष्ठता  लाना  ही  सच्ची  पूजा  है, अध्यात्म  है  ।
अध्यात्म  उस  दूरदर्शिता  का  नाम  है  जो  व्यक्ति  यदि  अंगीकार  कर  ले  तो  उसका  जीवन  पथ  श्रेष्ठता  की  ओर,  पूर्णता  की  ओर  कंटक  विहीन  होता  चला  जाता  है  ।
जिनका  द्रष्टिकोण  आध्यात्मिक  होता  है  वे  भावनात्मक  रूप  से  अधिक  परिपक्व  एवं  मजबूत  होते  हैं.  उनमे  रोगों  से  लड़ने  की  क्षमता  औरों  की  तुलना  में  60  प्रतिशत  अधिक  होती  है  ।
  आध्यात्मिक  द्रष्टिकोण  वाले  व्यक्ति  ज्यादा  शांत,  तनावमुक्त  होने  के  साथ-साथ  परोपकारी  वृति  के  भी  होते  हैं  ।  उनके  अंदर  औरों  की  भावनाओं  को  समझने  व  सम्मान  देने  की  क्षमता  अधिक  होती  है  ।  आध्यात्मिक  जीवन  में   संकीर्णता  और  कट्टरता  का  कोई  स्थान  नहीं  है  ।
   आध्यात्मिकता  सदा  से  ही  संवेदनशीलता  की   हिमायती  है  । 

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