धैर्य और साहस दिव्य गुण हैं जो संसार में रहकर मनुष्य को ईश्वर के प्रति प्रगाढ़ विश्वास से ओत-प्रोत करते हैं । धैर्य का तात्पर्य है----- अनगिनत कष्टों, पीड़ा व मान-अपमान को शांत भाव से सहना । इनसे विचलित न होना एवं इनके प्रति प्रतिक्रिया न देना । धैर्य से आत्म बल बढ़ता है और उस बल से सारे कष्ट टकराकर धूल-धूसरित हो जाते हैं ।
धैर्य सहना कायरता नहीं है । धैर्यवान वही हो सकता है जो साहसी एवं वीर होता है
अमेरिका का एक प्रसिद्ध मुक्केबाज था जो बाद में विश्व चैंपियन भी बना , एक बार वह एक होटल में भोजन करने गया । उसके साथ कुछ मित्र भी थे । होटल में कुछ युवक भी थे, जो शराब के नशे में उस मुक्केबाज को उल्टा-सीधा बोलने लगे । मुक्केबाज के साथ आये मित्र उससे बोले---- " अरे, इनसे डरकर वापस लौटने की क्या आवश्यकता ? इनमे से ऐसा कोई नहीं, जो तुम्हारा एक घूँसा भी सहन कर सके । " मुक्केबाज शांत भाव से बोला--- " यही तो बात है, निर्बल पर बल दिखाना साहसी का कार्य नहीं, सच्चा साहस तो शक्ति होते हुए भी विपरीतताओं को सहन कर जाने में है । "
' सच्चा साहस धैर्य से ही जन्म लेता है । '
धैर्य सहना कायरता नहीं है । धैर्यवान वही हो सकता है जो साहसी एवं वीर होता है
अमेरिका का एक प्रसिद्ध मुक्केबाज था जो बाद में विश्व चैंपियन भी बना , एक बार वह एक होटल में भोजन करने गया । उसके साथ कुछ मित्र भी थे । होटल में कुछ युवक भी थे, जो शराब के नशे में उस मुक्केबाज को उल्टा-सीधा बोलने लगे । मुक्केबाज के साथ आये मित्र उससे बोले---- " अरे, इनसे डरकर वापस लौटने की क्या आवश्यकता ? इनमे से ऐसा कोई नहीं, जो तुम्हारा एक घूँसा भी सहन कर सके । " मुक्केबाज शांत भाव से बोला--- " यही तो बात है, निर्बल पर बल दिखाना साहसी का कार्य नहीं, सच्चा साहस तो शक्ति होते हुए भी विपरीतताओं को सहन कर जाने में है । "
' सच्चा साहस धैर्य से ही जन्म लेता है । '
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