इतिहास साक्षी है कि सफलताएँ उन्ही को हस्तगत हुई हैं, जिनने निजी जीवन में स्वयं पर कड़ा अंकुश लगाकर आत्म-अनुशासन का अभ्यास किया और फिर अपनी बचाई हुई ऊर्जा को परहितार्थ नियोजित किया । नोबेल पुरस्कार विजेता अर्नेस्ट हेमिंग्वे का जीवनचरित कुछ इसी प्रकार का है ----
अर्नेस्ट हेमिंग्वे प्रसिद्ध लेखक ही नहीं, श्रेष्ठ योद्धा एवं बाक्सिंग के चैंपियन थे । नेपोलियन की तरह ' असंभव ' शब्द उनके शब्दकोश में नहीं था । बचपन में मुक्केबाजी में एक बार उनकी नाक टूट गई थी, दूसरी बार आँख पर भारी चोट आई थी, पर उन्होंने खेल से कभी मुँह नहीं मोड़ा ।
विश्वयुद्ध के समय वे एक अखबार के प्रतिनिधि बनकर वहां पहुँचे, जहाँ बम- विस्फोट में हेमिंग्वे और उनके साथ के तीन सैनिक बुरी तरह आहत हुए, जिनमें दो का तो
प्राणांत ही हो गया । वे स्वयं बुरी तरह घायल थे, फिर भी वे उस तीसरे सैनिक को अपनी पीठ पर लाद कर चले, तब तक बम के 237 टुकड़े उनके शरीर में धँस चुके थे । चिकित्सकों ने उन्हें आराम करने की सलाह दी थी, पर उन्होंने आराम पर ध्यान नहीं दिया और कर्तव्य-पथ पर अविचल डटे रहे एवं पूर्ण स्वस्थ हो गये ।
जब कोई व्यक्ति अपने आपको अपने परिवार, समाज, राष्ट्र और विश्व के स्तर पर विकसित करता हुआ दूसरों के सुख-दुःख को अपना मानने लगता है तो समझना चाहिए कि वह देवता बनने के मार्ग पर है । हेमिंग्वे भी उसी पथ के पथिक थे । उनका उपन्यास ' सन ऑलसो राइजेज ' बहुत लोकप्रिय हुआ , उनका दूसरा उपन्यास ' फेयरवेल-टू-आर्म्स ' अत्याधिक लोकप्रिय हुआ ।,।
इसमें युद्ध की भयंकरता का सजीव चित्रण है । उनके साहित्य लेखन में निराशा और कुंठा कहीं नहीं मिलती । उसमे पीड़ित मानवता की करुण कथा चित्रित हुई है । समता, ममता और बंधुत्व का स्वर उनकी रचनाओं में प्रभावी बनकर उभरा है । उनके साहित्य में जहाँ विकृतियों का नग्न चित्रण है, वहीँ उनसे संघर्ष करके उन्हें मार देने-मिटा देने की प्रबल प्रेरणाएँ भी भरी पड़ी हैं । अपनी प्रतिभा का श्रेय वे अपनी लगन व परिश्रम के साथ उन आलोचकों और संपादकों को भी देते हुए कहते हैं कि उन लोगों ने मुझसे बड़ी साधना कराई ।
अर्नेस्ट हेमिंग्वे प्रसिद्ध लेखक ही नहीं, श्रेष्ठ योद्धा एवं बाक्सिंग के चैंपियन थे । नेपोलियन की तरह ' असंभव ' शब्द उनके शब्दकोश में नहीं था । बचपन में मुक्केबाजी में एक बार उनकी नाक टूट गई थी, दूसरी बार आँख पर भारी चोट आई थी, पर उन्होंने खेल से कभी मुँह नहीं मोड़ा ।
विश्वयुद्ध के समय वे एक अखबार के प्रतिनिधि बनकर वहां पहुँचे, जहाँ बम- विस्फोट में हेमिंग्वे और उनके साथ के तीन सैनिक बुरी तरह आहत हुए, जिनमें दो का तो
प्राणांत ही हो गया । वे स्वयं बुरी तरह घायल थे, फिर भी वे उस तीसरे सैनिक को अपनी पीठ पर लाद कर चले, तब तक बम के 237 टुकड़े उनके शरीर में धँस चुके थे । चिकित्सकों ने उन्हें आराम करने की सलाह दी थी, पर उन्होंने आराम पर ध्यान नहीं दिया और कर्तव्य-पथ पर अविचल डटे रहे एवं पूर्ण स्वस्थ हो गये ।
जब कोई व्यक्ति अपने आपको अपने परिवार, समाज, राष्ट्र और विश्व के स्तर पर विकसित करता हुआ दूसरों के सुख-दुःख को अपना मानने लगता है तो समझना चाहिए कि वह देवता बनने के मार्ग पर है । हेमिंग्वे भी उसी पथ के पथिक थे । उनका उपन्यास ' सन ऑलसो राइजेज ' बहुत लोकप्रिय हुआ , उनका दूसरा उपन्यास ' फेयरवेल-टू-आर्म्स ' अत्याधिक लोकप्रिय हुआ ।,।
इसमें युद्ध की भयंकरता का सजीव चित्रण है । उनके साहित्य लेखन में निराशा और कुंठा कहीं नहीं मिलती । उसमे पीड़ित मानवता की करुण कथा चित्रित हुई है । समता, ममता और बंधुत्व का स्वर उनकी रचनाओं में प्रभावी बनकर उभरा है । उनके साहित्य में जहाँ विकृतियों का नग्न चित्रण है, वहीँ उनसे संघर्ष करके उन्हें मार देने-मिटा देने की प्रबल प्रेरणाएँ भी भरी पड़ी हैं । अपनी प्रतिभा का श्रेय वे अपनी लगन व परिश्रम के साथ उन आलोचकों और संपादकों को भी देते हुए कहते हैं कि उन लोगों ने मुझसे बड़ी साधना कराई ।
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