' सदचारमय जीवन जीकर हम अपने संपूर्ण भूतकाल को धो सकते हैं एवं भविष्य के लिए नये बीज बो सकते हैं । ' आज हम जो कुछ भी हैं, अपने भूतकाल के कारण हैं । जो भी हमने अच्छे बुरे कर्म किये हैं, वे वर्तमान मे फलित हो रहें हैं । यह रूपांतरित भूत है , जो हमारे वर्तमान के रूप में प्रत्यक्ष द्रष्टिगोचर होता है । यदि हमारे साथ हमारी भूत की वासनाओं, कुकर्मों, चिंतनजन्य कुसंस्कारों का समुच्चय भी हो तो भी हम सदचारमय जीवन जीकर ध्यान द्वारा, कर्मयोग द्वारा उसकी दिशा बदल सकते हैं । हम घोर पापी से भी पापी क्यों न हों, एक बार दृढ़ निश्चय कर लें तो हमारा जीवन ऊपर उठने लगेगा । यह लोक भी सुधरेगा और सद्गति का पथ प्रशस्त होगा । शुभ कर्मों का बैंक एकाउंट निरर्थक नहीं जायेगा ।
मनुष्य बन गया तो उसे विदा करते हुए विधाता ने कहा--- " तात ! जाओ और संसार के प्राणियों का हित करते हुए स्वर्ग और मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करो, ऐसा कुछ न करना, जिससे तुम्हे मृत्यु के समय पछतावा हो । " आदमी ने विनय की,--- " भगवन ! आप एक कृपा और करना । मुझे मरने से पहले एक चेतावनी अवश्य दे देना ताकि यदि मैं मार्ग भ्रष्ट हो रहा होऊं तो संभल जाऊं । "
तथास्तु कहकर विधाता ने मनुष्य को धरती पर भेज दिया, पर यहाँ आकर मनुष्य इंद्रिय-भोग में पड़कर अपने लक्ष्य को भूल गया । जैसे-तैसे आयु समाप्त हुई, कर्मों के अनुसार यमदूत उसे नरक ले जाने लगे तो उसने विधाता से शिकायत की, आपने मुझे मृत्यु से पूर्व चेतावनी क्यों न दी ?
विधाता हँसे और बोले---- 1. तेरे हाथ काँपे 2. दांत टूट गये 3. आँखों से कम दीखने लगा
4.बाल पक गये, यह चार संकेत पर भी तू न संभला, इसमें मेरा क्या दोष ?
' मृत्यु प्रतिपल निकट आती है । उसकी सूचनाएँ भी मिलती हैं, परंतु अज्ञानवश हम अचेत ही रह जाते हैं । '
मनुष्य बन गया तो उसे विदा करते हुए विधाता ने कहा--- " तात ! जाओ और संसार के प्राणियों का हित करते हुए स्वर्ग और मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करो, ऐसा कुछ न करना, जिससे तुम्हे मृत्यु के समय पछतावा हो । " आदमी ने विनय की,--- " भगवन ! आप एक कृपा और करना । मुझे मरने से पहले एक चेतावनी अवश्य दे देना ताकि यदि मैं मार्ग भ्रष्ट हो रहा होऊं तो संभल जाऊं । "
तथास्तु कहकर विधाता ने मनुष्य को धरती पर भेज दिया, पर यहाँ आकर मनुष्य इंद्रिय-भोग में पड़कर अपने लक्ष्य को भूल गया । जैसे-तैसे आयु समाप्त हुई, कर्मों के अनुसार यमदूत उसे नरक ले जाने लगे तो उसने विधाता से शिकायत की, आपने मुझे मृत्यु से पूर्व चेतावनी क्यों न दी ?
विधाता हँसे और बोले---- 1. तेरे हाथ काँपे 2. दांत टूट गये 3. आँखों से कम दीखने लगा
4.बाल पक गये, यह चार संकेत पर भी तू न संभला, इसमें मेरा क्या दोष ?
' मृत्यु प्रतिपल निकट आती है । उसकी सूचनाएँ भी मिलती हैं, परंतु अज्ञानवश हम अचेत ही रह जाते हैं । '
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