' ओझा जी का जीवन प्रत्येक व्यक्ति को निराशा से ऊपर उठकर आशा , विश्वास का सम्बल प्रदान करता है , स्वार्थ के साथ परमार्थ का समन्वय करने की प्रेरणा देता है । लगन और परिश्रम के परिणाम कितने आश्चर्यजनक होते हैं इसे इनके जीवन से स्पष्ट देखा जा सकता है । '
पं. गौरीशंकर ओझा का जन्म राजस्थान के सिरोही जिले में 1863 में हुआ था , इनके पिता वेदपाठी थे अत: बालक गौरी बचपन से ही वेद की ऋचाएं बड़े मनोयोग से पढ़ता था । हाईस्कूल के बाद आगे पढ़ने के लिए इनके पिता ने इनके बड़े भाई के पास बम्बई भेजा । सिरोही क्षेत्र में उस समय न रेल थी न मोटर । 14 वर्ष के गौरीशंकर अपने भाई के साथ अपने गाँव से पूरे डेढ़ सौ मील पैदल चलकर अहमदाबाद पहुंचे फिर वहां से रेल से बम्बई पहुंचे । इनके भाई जिस कोठरी में रहते थे उसमे सामान रखने के बाद दो जन नहीं सो सकते थे अत: ये पास के मन्दिर मे अपनी पुस्तकें व चटाई लेकर चले जाते और मिट्टी के तेल की ढिबरी के मंद प्रकाश में पढ़ते और वहीँ सो जाते । इन अभावों में भी अपने लगन और परिश्रम के बल पर सर्वप्रथम स्थान प्राप्त करते ।
उन्ही दिनो इनकी भेंट डॉ.भगवानलाल इन्द्रजी से हुई , उनकी प्रेरणा से उन्होंने इतिहास , पुरातत्व संबंधी ग्रन्थ व लिपियों का अध्ययन आरंभ किया । सुबह शाम ट्यूशन करना और दिन को एशियाटिक सोसायटी के ग्रंथालय में अध्ययन करना इनका नित्य -क्रम बन गया । इन्होने भारत , यूनान , रोम ,फ्रांस , इंग्लैंड आदि के इतिहास को पढ़ा , प्राचीन लिपियों , मुद्राओं आदि का पढ़ना सीख गए , सबसे कठिन लिपि कुषाण भी पढ़ना सीख गये । कर्नल टाड द्वारा लिखे राजपूताने का इतिहास पढ़ा फिर वे उदयपुर आये यहां उन्हें विशाल कर्म क्षेत्र मिला ।
राजस्थान का इतिहास व अन्य कई इतिहास संबंधी मुख्य ग्रन्थ लिखें । अपनी कर्मनिष्ठा के कारण वे शिलालेखों के चलते -फ़िरते विश्वकोश बन गये । इन्होने सभी ग्रन्थ हिन्दी में लिखे , कई ऐतिहासिक ग्रंथों का संपादन भी किया , कर्नल टाड का जीवन चरित्र भी लिखा । 1880 में उदयपुर में विक्टोरिया पार्क मेमोरियल हाल का निर्माण हुआ ,आपको उसका अध्यक्ष बनाया गया । प्राचीन मूर्तियों तथा शिलालेखों को एकत्रित करने तथा उन्हें यथा स्थान स्थापित करने में आपका महत्वपुर्ण हाथ रहा ।
इनके परिश्रम तथा कर्मयोग का परिणाम था कि राणा प्रताप जैसा व्यक्ति भारतवासियों के सम्मुख प्रस्तुत हुआ और उनका व्यक्तित्व स्वतंत्रता सेनानी के रूप में वीरों का आदर्श बना । इन्होने अपने जीवन को भारतीय इतिहास , भारतीय संस्कृति तथा हिन्दी भाषा के उत्थान को समर्पित कर दिया ।
पं. गौरीशंकर ओझा का जन्म राजस्थान के सिरोही जिले में 1863 में हुआ था , इनके पिता वेदपाठी थे अत: बालक गौरी बचपन से ही वेद की ऋचाएं बड़े मनोयोग से पढ़ता था । हाईस्कूल के बाद आगे पढ़ने के लिए इनके पिता ने इनके बड़े भाई के पास बम्बई भेजा । सिरोही क्षेत्र में उस समय न रेल थी न मोटर । 14 वर्ष के गौरीशंकर अपने भाई के साथ अपने गाँव से पूरे डेढ़ सौ मील पैदल चलकर अहमदाबाद पहुंचे फिर वहां से रेल से बम्बई पहुंचे । इनके भाई जिस कोठरी में रहते थे उसमे सामान रखने के बाद दो जन नहीं सो सकते थे अत: ये पास के मन्दिर मे अपनी पुस्तकें व चटाई लेकर चले जाते और मिट्टी के तेल की ढिबरी के मंद प्रकाश में पढ़ते और वहीँ सो जाते । इन अभावों में भी अपने लगन और परिश्रम के बल पर सर्वप्रथम स्थान प्राप्त करते ।
उन्ही दिनो इनकी भेंट डॉ.भगवानलाल इन्द्रजी से हुई , उनकी प्रेरणा से उन्होंने इतिहास , पुरातत्व संबंधी ग्रन्थ व लिपियों का अध्ययन आरंभ किया । सुबह शाम ट्यूशन करना और दिन को एशियाटिक सोसायटी के ग्रंथालय में अध्ययन करना इनका नित्य -क्रम बन गया । इन्होने भारत , यूनान , रोम ,फ्रांस , इंग्लैंड आदि के इतिहास को पढ़ा , प्राचीन लिपियों , मुद्राओं आदि का पढ़ना सीख गए , सबसे कठिन लिपि कुषाण भी पढ़ना सीख गये । कर्नल टाड द्वारा लिखे राजपूताने का इतिहास पढ़ा फिर वे उदयपुर आये यहां उन्हें विशाल कर्म क्षेत्र मिला ।
राजस्थान का इतिहास व अन्य कई इतिहास संबंधी मुख्य ग्रन्थ लिखें । अपनी कर्मनिष्ठा के कारण वे शिलालेखों के चलते -फ़िरते विश्वकोश बन गये । इन्होने सभी ग्रन्थ हिन्दी में लिखे , कई ऐतिहासिक ग्रंथों का संपादन भी किया , कर्नल टाड का जीवन चरित्र भी लिखा । 1880 में उदयपुर में विक्टोरिया पार्क मेमोरियल हाल का निर्माण हुआ ,आपको उसका अध्यक्ष बनाया गया । प्राचीन मूर्तियों तथा शिलालेखों को एकत्रित करने तथा उन्हें यथा स्थान स्थापित करने में आपका महत्वपुर्ण हाथ रहा ।
इनके परिश्रम तथा कर्मयोग का परिणाम था कि राणा प्रताप जैसा व्यक्ति भारतवासियों के सम्मुख प्रस्तुत हुआ और उनका व्यक्तित्व स्वतंत्रता सेनानी के रूप में वीरों का आदर्श बना । इन्होने अपने जीवन को भारतीय इतिहास , भारतीय संस्कृति तथा हिन्दी भाषा के उत्थान को समर्पित कर दिया ।
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