उनके संगीत की चमत्कारी शक्ति में उनकी भीतर बाहर की निर्मलता तथा आचरण की पवित्रता का बहुत बड़ा हाथ था । उन्होंने संगीत को ब्रह्म की उपासना समझकर पूरी निष्ठा , श्रम और आन्तरिक पवित्रता के साथ संगीत -साधना की ।
चौदह वाद्द्य यंत्रों पर उनका अधिकार था , सब में वे निष्णात थे , फिर भी वीणावादन में उन्हें कमाल हासिल था । देश भर के राजा -महाराजाओं से लेकर जार्जपंचम तक और सामान्य जनता से लेकर तिलक , नेहरू , गाँधीजी , महामना मालवीय , सरोजिनी नायडू और रवीन्द्रनाथ ठाकुर तक उनके वीणावादन पर मुग्ध हुए थे । उनकी ख्याति देश -देशान्तर में भी फैली थी ।
शेषण्णा के पिता तत्कालीन मैसूर राज्य के नरेश कृष्णराज तृतीय ओड़ेयर की राजसभा के सुविख्यात संगीतज्ञ थे । उन्होंने अपने पुत्र शेषण्णा को तीन वर्ष की आयु में ही दीक्षित कर सरस्वती की आराधना में लगा दिया था । उनसे संबंधित एक घटना है ------
शिव -रात्रि के पावन पर्व पर मैसूर राजवंश की परंपरा के अनुसार तत्कालीन नरेश ने संगीत -सम्मेलन का आयोजन किया । एक संगीतज्ञ महोदय द्वारा मैसूर में प्रचलित संगीत ' पलवी ' गाया गया , जिसे श्रोता दोहराने में असफल रहे , गायन भी कुछ जमा नहीं । राजसभा अपमानित सी हुई । महाराज को यह सहन नहीं हुआ , उन्होंने राजसभा के संगीतज्ञ को संबोधित करते हुए व्यंग्यवाण फेंका --- " क्या हमारे संगीतज्ञों को कंगन सिन्दूर बांटा जाये । "
महाराज का व्यंग्य सुनकर संगीतज्ञ का स्वाभिमान जाग गया , उन्होंने गंभीर स्वर में कहा --- " महाराज इस गाने के लिये बड़ों की क्या आवश्यकता मेरा सात वर्ष का शेषण्णा इसे गायेगा । "
बालक शेषण्णा गाने लगा , सभी श्रोता इस बाल कलाकार की कला -साधना पर चकित हो उठे । संगीत की समाप्ति पर महाराज ने बालक को गोद में उठा लिया , बहुमूल्य शाल के उपहार के साथ शुभाशीष दी --- " हमारी सभा के गौरव की रक्षा करने वाला यह बालक अपने जीवन में यशस्वी संगीतज्ञ बने । ' नरेश की शुभ कामना साकार हुई । यह बालक आगे चलकर विश्व -विख्यात पाश्चात्य संगीत सम्राट वीथोवियन तथा मोबार्ट की सानी का संगीतज्ञ बना ।
चौदह वाद्द्य यंत्रों पर उनका अधिकार था , सब में वे निष्णात थे , फिर भी वीणावादन में उन्हें कमाल हासिल था । देश भर के राजा -महाराजाओं से लेकर जार्जपंचम तक और सामान्य जनता से लेकर तिलक , नेहरू , गाँधीजी , महामना मालवीय , सरोजिनी नायडू और रवीन्द्रनाथ ठाकुर तक उनके वीणावादन पर मुग्ध हुए थे । उनकी ख्याति देश -देशान्तर में भी फैली थी ।
शेषण्णा के पिता तत्कालीन मैसूर राज्य के नरेश कृष्णराज तृतीय ओड़ेयर की राजसभा के सुविख्यात संगीतज्ञ थे । उन्होंने अपने पुत्र शेषण्णा को तीन वर्ष की आयु में ही दीक्षित कर सरस्वती की आराधना में लगा दिया था । उनसे संबंधित एक घटना है ------
शिव -रात्रि के पावन पर्व पर मैसूर राजवंश की परंपरा के अनुसार तत्कालीन नरेश ने संगीत -सम्मेलन का आयोजन किया । एक संगीतज्ञ महोदय द्वारा मैसूर में प्रचलित संगीत ' पलवी ' गाया गया , जिसे श्रोता दोहराने में असफल रहे , गायन भी कुछ जमा नहीं । राजसभा अपमानित सी हुई । महाराज को यह सहन नहीं हुआ , उन्होंने राजसभा के संगीतज्ञ को संबोधित करते हुए व्यंग्यवाण फेंका --- " क्या हमारे संगीतज्ञों को कंगन सिन्दूर बांटा जाये । "
महाराज का व्यंग्य सुनकर संगीतज्ञ का स्वाभिमान जाग गया , उन्होंने गंभीर स्वर में कहा --- " महाराज इस गाने के लिये बड़ों की क्या आवश्यकता मेरा सात वर्ष का शेषण्णा इसे गायेगा । "
बालक शेषण्णा गाने लगा , सभी श्रोता इस बाल कलाकार की कला -साधना पर चकित हो उठे । संगीत की समाप्ति पर महाराज ने बालक को गोद में उठा लिया , बहुमूल्य शाल के उपहार के साथ शुभाशीष दी --- " हमारी सभा के गौरव की रक्षा करने वाला यह बालक अपने जीवन में यशस्वी संगीतज्ञ बने । ' नरेश की शुभ कामना साकार हुई । यह बालक आगे चलकर विश्व -विख्यात पाश्चात्य संगीत सम्राट वीथोवियन तथा मोबार्ट की सानी का संगीतज्ञ बना ।
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