खलील जिब्रान जैसे धनाढ्य और प्रतिभासम्पन्न व्यक्ति यदि चाहते तो समस्त ऋद्धियाँ एवं सिद्धियाँ उनके चरणों में अभ्यर्थना करतीं परन्तु देश , जाति और समाज को जीवन देने वाले महापुरुषों ने इन क्षणिक मृगतृष्णाओं को स्वीकार नहीं किया । खलील जिब्रान का जन्म लेबनान में 1883 में हुआ था । तत्कालीन समाज में फैली हुई रूढ़िवादिता , धार्मिक और सामाजिक कुरीतियों तथा अव्यवस्थाओं को देखकर उन्होंने विचार किया कि जब तक इन्हे दूर न किया जायेगा तब तक जीवन में विकृतियों की भरमार रहेगी और समाज स्वस्थ वायु में साँस न ले सकेगा । अत: उन्होंने इन सबके विरुद्ध आंदोलन छेड़ दिया । खलील जिब्रान ने सर्वप्रथम तत्कालीन ईसाई धर्म में फैली बुराइयों के विरोध में आवाज उठाई । महात्मा ईसा के विचारों को भुलाकर जब लोग केवल बाह्य रस्मों को ही सब कुछ समझने लगे तब सत्य को सामने रखने वाली आवाज गूँज उठी ।
खलील जिब्रान ने गरीब और असभ्य लोगों , समाज के पीड़ित शोषित वर्ग के पक्ष में अनेक भाषण दिये । अपने भाषणों और पुस्तकों से समाज के दलित वर्ग में अपने मानवीय अधिकारों के प्रति ऐसी चेतना जाग्रत की कि वह अपने हनन किये अधिकारों को पुनः प्राप्त करने के लिए सक्रिय हो उठा । शोषकों , जागीरदारों और धर्म के ठेकेदारों के विरोध में ऐसा बवण्डर उठा कि उन्हें पैर टेके रहना ही कठिन पड़ गया । जिस सत्य को जानने और कहने का साहस करने के कारण ईसा को सूली पर चढ़ा दिया गया था । उस सत्य को 1900 वर्ष बाद भी किसी व्यक्ति द्वारा कहे जाने पर स्वार्थलोलुप अधिकारी वर्ग ने उन्हें देश निकाला दे दिया ।
खलील जिब्रान ने बताया ---- " जीसस ने कभी भय की जिंदगी नहीं जी , न वे दुःख झेलते हुए शिकायत करते हुए मरे --- वे एक नेता बनकर जिये धर्म योद्धा के रूप में सूली पर चढ़े , उन्होंने जिस मानवीय साहस और आत्मबल के साथ मृत्यु का वरण किया , उससे उनके हत्यारे और सताने वाले भी दहल गये । वे मानव हृदय को एक मन्दिर , आत्मा को एक वेदी और मस्तिष्क को एक पुजारी बनाने आये थे । यदि मानवता के पास बुद्धि होती तो वह विजय और प्रसन्नता के गीत गाती ।
संत जिब्रान ने दान , दया , ममता , प्रेम , बंधुत्व , शांति और सहयोग की मानवीय संपदाओं को चांदी के टुकड़ों से अधिक महत्व दिया । उनके शब्द थे ----- " लोग मुझे पागल समझते हैं कि मैं अपने जीवन को उनके सोने -चांदी के टुकड़ों के बदले नहीं बेचता । और मैं इन्हे पागल समझता हूँ कि वे , मेरे जीवन को बिक्री की एक वस्तु समझते हैं । " उनके साहित्य , चित्र और उनके दर्शन में आध्यात्मिक विभूतियाँ पाने की प्रेरणाएँ भरी पड़ी हैं ।
खलील जिब्रान ने गरीब और असभ्य लोगों , समाज के पीड़ित शोषित वर्ग के पक्ष में अनेक भाषण दिये । अपने भाषणों और पुस्तकों से समाज के दलित वर्ग में अपने मानवीय अधिकारों के प्रति ऐसी चेतना जाग्रत की कि वह अपने हनन किये अधिकारों को पुनः प्राप्त करने के लिए सक्रिय हो उठा । शोषकों , जागीरदारों और धर्म के ठेकेदारों के विरोध में ऐसा बवण्डर उठा कि उन्हें पैर टेके रहना ही कठिन पड़ गया । जिस सत्य को जानने और कहने का साहस करने के कारण ईसा को सूली पर चढ़ा दिया गया था । उस सत्य को 1900 वर्ष बाद भी किसी व्यक्ति द्वारा कहे जाने पर स्वार्थलोलुप अधिकारी वर्ग ने उन्हें देश निकाला दे दिया ।
खलील जिब्रान ने बताया ---- " जीसस ने कभी भय की जिंदगी नहीं जी , न वे दुःख झेलते हुए शिकायत करते हुए मरे --- वे एक नेता बनकर जिये धर्म योद्धा के रूप में सूली पर चढ़े , उन्होंने जिस मानवीय साहस और आत्मबल के साथ मृत्यु का वरण किया , उससे उनके हत्यारे और सताने वाले भी दहल गये । वे मानव हृदय को एक मन्दिर , आत्मा को एक वेदी और मस्तिष्क को एक पुजारी बनाने आये थे । यदि मानवता के पास बुद्धि होती तो वह विजय और प्रसन्नता के गीत गाती ।
संत जिब्रान ने दान , दया , ममता , प्रेम , बंधुत्व , शांति और सहयोग की मानवीय संपदाओं को चांदी के टुकड़ों से अधिक महत्व दिया । उनके शब्द थे ----- " लोग मुझे पागल समझते हैं कि मैं अपने जीवन को उनके सोने -चांदी के टुकड़ों के बदले नहीं बेचता । और मैं इन्हे पागल समझता हूँ कि वे , मेरे जीवन को बिक्री की एक वस्तु समझते हैं । " उनके साहित्य , चित्र और उनके दर्शन में आध्यात्मिक विभूतियाँ पाने की प्रेरणाएँ भरी पड़ी हैं ।
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