' कोई अभाव ऐसा नहीं जो मनुष्य की संकल्प शक्ति को प्रस्फुटित होने से रोक सके । मनस्वी व्यक्ति हर कठिनाई को परास्त कर सकते हैं और हर अभाव से संघर्ष करते हुए आगे बढ़ने का रास्ता निकाल ही सकते हैं । , अब्राहम नेमेथ का जन्म अमेरिका में हुआ था । जन्म के डेढ़ महीने बाद ही उनकी आँखें चली गईं फिर भी अपने आत्मविश्वास के बल पर केवल उच्च शिक्षा ही प्राप्त नहीं की वरन अन्धों के लिए एक ऐसी प्रणाली का भी आविष्कार किया, जिसके सहारे आज संसार के अगणित नेत्रहीनो के लिए गणित जैसे कठिन विषय की शिक्षा प्राप्त कर सकना संभव हुआ है ।
उस समय तक नेत्रहीनो के लिए ' ब्रेल पद्धति ' का आविष्कार हो चुका था, नेमेथ को गणित में रूचि अधिक थी पर गणित की उच्च शिक्षा के लिए उसमे संकेतों की कोई व्यवस्था नहीं थी । अत: नेमेथ ने मनोविज्ञान में एम. ए. किया कोई काम न मिलने पर तकिये के खोल सिलकर गुजर-बसर करने लगे । उन्ही दिनों फ्लोरेंस नामक एक अन्धी लड़की से उनका परिचय हुआ, दोनों ने विवाह कर लिया । फ्लोरेंस बड़ी मनस्वी थी उसने पति के साहस व पुरुषार्थ को जगाया । अब नेमेथ ने अन्ध-शिक्षा-प्रणाली पर नई शोध आरम्भ की, इसके लिए उन्होंने फ्रेंच, हिब्रू, ग्रीक, लैटिन आदि कई भाषाएँ पढ़ीं । इस बीच सौभाग्य से फ्लोरेंस की एक आँख की थोड़ी रोशनी लौट आई जिससे वह कागज को पढ़कर उन्हें सुना सके । नेमेथ गणित में उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहते थे ।
गणित के शिक्षक छुट्टी पर गये तो नेमेथ को कॉलेज में शिक्षण का कार्य भी मिल गया, वे वहां नौकरी के साथ छात्र रूप में अध्ययन भी करने लगे, इस प्रकार संघर्ष करते हुए कोलंबिया विश्वविद्यालय से उन्होंने एम. ए. की उपाधि प्राप्त कर ली ।
जीडज ब्रेल ऑफ अमेरिका ने हिब्रू भाषा-भाषी नेत्रहीनो के लिए बाइबिल छापने का निश्चय किया तो ये कार्य नेमेथ के जिम्मे आया जिसे उन्होंने बड़ी तत्परता से पूरा किया । अपना शोध कार्य उन्होंने
जारी रखा और प्रचलित अन्ध-शिक्षा पद्धति ' ब्रेल कोड ' में क्रांतिकारी परिवर्तन किया जो ' ब्रेल साइड रूम ' के नाम से पुकारा जाने लगा । अब उन्होंने एक और पद्धति का आविष्कार किया उसमे गणित जैसे कठिन विषय को भी पढ़ाये जाने की पूरी सुविधा है । इस पद्धति के गुण-दोषों पर विचार करने के लिए अमेरिकन शिक्षा विभाग की ' ज्वायंट यूनिफर्म ब्रेल कमेटी ' के विशेषज्ञों ने जांच की और उपयुक्त पाये जाने पर एक वर्ष बाद राष्ट्रीय सम्मेलन में उसे मान्यता प्रदान कर दी । इस प्रकार अपनी लगन व निष्ठा से उन्होंने सफलता प्राप्त की ।
उस समय तक नेत्रहीनो के लिए ' ब्रेल पद्धति ' का आविष्कार हो चुका था, नेमेथ को गणित में रूचि अधिक थी पर गणित की उच्च शिक्षा के लिए उसमे संकेतों की कोई व्यवस्था नहीं थी । अत: नेमेथ ने मनोविज्ञान में एम. ए. किया कोई काम न मिलने पर तकिये के खोल सिलकर गुजर-बसर करने लगे । उन्ही दिनों फ्लोरेंस नामक एक अन्धी लड़की से उनका परिचय हुआ, दोनों ने विवाह कर लिया । फ्लोरेंस बड़ी मनस्वी थी उसने पति के साहस व पुरुषार्थ को जगाया । अब नेमेथ ने अन्ध-शिक्षा-प्रणाली पर नई शोध आरम्भ की, इसके लिए उन्होंने फ्रेंच, हिब्रू, ग्रीक, लैटिन आदि कई भाषाएँ पढ़ीं । इस बीच सौभाग्य से फ्लोरेंस की एक आँख की थोड़ी रोशनी लौट आई जिससे वह कागज को पढ़कर उन्हें सुना सके । नेमेथ गणित में उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहते थे ।
गणित के शिक्षक छुट्टी पर गये तो नेमेथ को कॉलेज में शिक्षण का कार्य भी मिल गया, वे वहां नौकरी के साथ छात्र रूप में अध्ययन भी करने लगे, इस प्रकार संघर्ष करते हुए कोलंबिया विश्वविद्यालय से उन्होंने एम. ए. की उपाधि प्राप्त कर ली ।
जीडज ब्रेल ऑफ अमेरिका ने हिब्रू भाषा-भाषी नेत्रहीनो के लिए बाइबिल छापने का निश्चय किया तो ये कार्य नेमेथ के जिम्मे आया जिसे उन्होंने बड़ी तत्परता से पूरा किया । अपना शोध कार्य उन्होंने
जारी रखा और प्रचलित अन्ध-शिक्षा पद्धति ' ब्रेल कोड ' में क्रांतिकारी परिवर्तन किया जो ' ब्रेल साइड रूम ' के नाम से पुकारा जाने लगा । अब उन्होंने एक और पद्धति का आविष्कार किया उसमे गणित जैसे कठिन विषय को भी पढ़ाये जाने की पूरी सुविधा है । इस पद्धति के गुण-दोषों पर विचार करने के लिए अमेरिकन शिक्षा विभाग की ' ज्वायंट यूनिफर्म ब्रेल कमेटी ' के विशेषज्ञों ने जांच की और उपयुक्त पाये जाने पर एक वर्ष बाद राष्ट्रीय सम्मेलन में उसे मान्यता प्रदान कर दी । इस प्रकार अपनी लगन व निष्ठा से उन्होंने सफलता प्राप्त की ।
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