महात्मा फ्रांसिस जन-सेवा, सहानुभूति और करुणा की साकार प्रतिमा और एक सन्त-साधक थे |
एक बार एक मछुए ने भिक्षा में उन्हें एक जलपक्षी भोजं के लिये दे दिया , वे उस पक्षी को प्यार करते रहे और कहा---- मैं इन प्यारे पक्षियों का भोजन नहीं करता । मछुआ उनका आशय समझ न सका । उसने दूसरे दिन एक बड़ी मछली लाकर दी उन्होंने उस मछली को बड़े तालाब में छोड़ दिया उन्होंने कहा इससे जीव हत्या होती ही जो प्रभु ईसा के दया, क्षमा एवं करुणा के सिद्धन्त के विरुद्ध है । वह मछुआ तों चला गया लेकिन महात्मा फ्रांसिस को दोनों दिन भूखे रहन पड़ा ।
एक बार एक मछुए ने भिक्षा में उन्हें एक जलपक्षी भोजं के लिये दे दिया , वे उस पक्षी को प्यार करते रहे और कहा---- मैं इन प्यारे पक्षियों का भोजन नहीं करता । मछुआ उनका आशय समझ न सका । उसने दूसरे दिन एक बड़ी मछली लाकर दी उन्होंने उस मछली को बड़े तालाब में छोड़ दिया उन्होंने कहा इससे जीव हत्या होती ही जो प्रभु ईसा के दया, क्षमा एवं करुणा के सिद्धन्त के विरुद्ध है । वह मछुआ तों चला गया लेकिन महात्मा फ्रांसिस को दोनों दिन भूखे रहन पड़ा ।
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