' विश्व-मानव के सुखद भविष्य संबंधी प्रौढ़ चिंतन करने और पीड़ित मानवता के प्रति अनन्य सेवा भाव रखने वाले अर्नाल्ड टायनबी ने कह कर या लिखकर ही कार्य नहीं किया वरन उन्होंने समाज सेवा के क्षेत्र मे भी महत्वपूर्ण योगदान दिया । गरीबों और पीड़ितों के आवास, भोजन आदि का प्रबंध करने के लिए वे अपनी आय का बहुत बड़ा अंश निकलते थे और अपने व्यस्त जीवन में से इस कार्य के लिए नियमित रूप से कुछ घंटे दिया करते थे । '
अध्ययन , शोध और लेखन के क्षेत्र में उन्होंने अपनी क्षमताओं को आश्चर्यजनक रूप से विकसित कर लिया था । विश्व की कितनी ही भाषाओँ , लिपियां को बड़ी शीघ्रतापूर्वक पढने का अभ्यास बनाकर उन्होंने समय की काफी बचत कर ली थी । हर कार्य के लिए उन्होंने समय विभाजित कर रखा था । जिस समय वे जिस कार्य को करते उस समय वे पूरी तरह उसमे तल्लीन हो जाते । उनकी यह तल्लीनता ही उन्हें थकान से बचाती रहती थी ।
अर्नाल्ड टायनबी का जन्म इंग्लैंड के एक संपन्न परिवार में 1889 में हुआ था । विद्व्ता और पांडित्य के धनी टायनबी ने अपने लिए जो कार्य चुना था वह था ---'- ब्रिटेन के इतिहास पर शोधपूर्ण ग्रन्थ लिखने तथा संस्कृतियों का गंभीरता पूर्वक अध्ययन करके किसी विधेयात्मक तथ्य पर पहुंचना । '
उन्होंने लिखा ---- " भारतीय विचार और पश्चिमी विचार परस्पर विरुद्ध और असम्बद्ध नहीं हैं । दोनों के लिए दुनिया में गुंजाइश है और दोनों की आवश्यकता है । दोनों को निकट लाइये , दोनों मिलकर संसार की अपूर्व सेवा कर सकेंगे । "
उन्होंने विज्ञान के संबंध में लिखा था ----- " आधुनिक मानव अपनी आत्मा की आध्यात्मिक रिक्तता को कैसे पूरी करेगा ? यह रिक्तता आधुनिक विज्ञान के फलस्वरूप उत्पन्न हुई है । विज्ञान ने परम्परा , धार्मिक विश्वासों को उखाड़ फेंका है , किन्तु रिक्त स्थान की पूर्ति में वह स्वयं भी असमर्थ रहा है । विज्ञान ने मनुष्य को जड़ शक्ति और मानव शरीर पर नियंत्रण स्थापित करने की असाधारण क्षमता प्रदान की है लेकिन आत्म नियंत्रण के कार्य में वह मनुष्य की कोई सहायता नहीं कर सकता और वस्तुत; आत्म -संयम ही मनुष्य की सबसे महत्वपूर्ण और कठिन समस्या रही है । "
उन्होंने लिखा --- " आध्यात्मिक परिपक्वता विज्ञान द्वारा नहीं , बल्कि धर्म के द्वारा ही प्राप्त हो सकती है । इसलिये मुझे यह आशा है कि बीसवीं सदी का मानव पुन : सच्चे धर्म की खोज में निकलेगा और उसे खोज भी लेगा । सच्चे धर्म की कसौटी यह होगी कि उस धर्म में मानव कष्टों से संबंधित समस्याओं का सामना करने की कितनी अधिक क्षमता है ।
अध्ययन , शोध और लेखन के क्षेत्र में उन्होंने अपनी क्षमताओं को आश्चर्यजनक रूप से विकसित कर लिया था । विश्व की कितनी ही भाषाओँ , लिपियां को बड़ी शीघ्रतापूर्वक पढने का अभ्यास बनाकर उन्होंने समय की काफी बचत कर ली थी । हर कार्य के लिए उन्होंने समय विभाजित कर रखा था । जिस समय वे जिस कार्य को करते उस समय वे पूरी तरह उसमे तल्लीन हो जाते । उनकी यह तल्लीनता ही उन्हें थकान से बचाती रहती थी ।
अर्नाल्ड टायनबी का जन्म इंग्लैंड के एक संपन्न परिवार में 1889 में हुआ था । विद्व्ता और पांडित्य के धनी टायनबी ने अपने लिए जो कार्य चुना था वह था ---'- ब्रिटेन के इतिहास पर शोधपूर्ण ग्रन्थ लिखने तथा संस्कृतियों का गंभीरता पूर्वक अध्ययन करके किसी विधेयात्मक तथ्य पर पहुंचना । '
उन्होंने लिखा ---- " भारतीय विचार और पश्चिमी विचार परस्पर विरुद्ध और असम्बद्ध नहीं हैं । दोनों के लिए दुनिया में गुंजाइश है और दोनों की आवश्यकता है । दोनों को निकट लाइये , दोनों मिलकर संसार की अपूर्व सेवा कर सकेंगे । "
उन्होंने विज्ञान के संबंध में लिखा था ----- " आधुनिक मानव अपनी आत्मा की आध्यात्मिक रिक्तता को कैसे पूरी करेगा ? यह रिक्तता आधुनिक विज्ञान के फलस्वरूप उत्पन्न हुई है । विज्ञान ने परम्परा , धार्मिक विश्वासों को उखाड़ फेंका है , किन्तु रिक्त स्थान की पूर्ति में वह स्वयं भी असमर्थ रहा है । विज्ञान ने मनुष्य को जड़ शक्ति और मानव शरीर पर नियंत्रण स्थापित करने की असाधारण क्षमता प्रदान की है लेकिन आत्म नियंत्रण के कार्य में वह मनुष्य की कोई सहायता नहीं कर सकता और वस्तुत; आत्म -संयम ही मनुष्य की सबसे महत्वपूर्ण और कठिन समस्या रही है । "
उन्होंने लिखा --- " आध्यात्मिक परिपक्वता विज्ञान द्वारा नहीं , बल्कि धर्म के द्वारा ही प्राप्त हो सकती है । इसलिये मुझे यह आशा है कि बीसवीं सदी का मानव पुन : सच्चे धर्म की खोज में निकलेगा और उसे खोज भी लेगा । सच्चे धर्म की कसौटी यह होगी कि उस धर्म में मानव कष्टों से संबंधित समस्याओं का सामना करने की कितनी अधिक क्षमता है ।
No comments:
Post a Comment