महाराष्ट्र में ठाना जिले में गणेशपुरी नामक ग्राम में कुटिया बनाकर रहने वाले स्वामी मुक्तानन्द महाराज ज्ञान एवं विद्वता के साथ लोक-सेवा की कर्मठ भावना से ओत-प्रोत थे | स्वामीजी ने अपनी कुटिया के आस-पास की बंजर भूमि स्वयं अपने हाथों से खोदकर उसमे खाद आदि डालकर इतनी उपजाऊ बना ली थी कि आस-पास के गांव वाले प्रतिदिन उसे देखने आया करते थे ।
मुख से प्रभु का अखण्ड नाम स्मरण करते हुए वे पेड़-पौधों को खाद-पानी दिया करते थे मानो ज्ञान-भक्ति और कर्म की त्रिवेणी संगम में ही वे स्नान कर रहे हों । बिलकुल बंजर भूमि को उपजाऊ बनाकर उसे एक आदर्श बाग बनाना उनकी ईश्वर भक्ति का सशक्त प्रतीक है ।
कुटिया के चारों ओर लगभग एक एकड़ जमीन में उन्होंने पपीते, केले, नीबू, अमरुद आदि फल और विभिन्न साग-सब्जी की इतनी सुंदर बगिया बनाई थी कि देखने वाले स्वामीजी की परिश्रमशीलता कि तारीफ करते नहीं थकते | स्वामी मुक्तानन्द जी अपनी आध्यात्मिक साधना में संलग्न रहते हुए भी कृषि कार्य में नियमित रूप से प्रतिदिन चार घंटे श्रमदान करते थे । उनके बाग में चार किलों के पपीते, तीन फुट लम्बी लौकी और एक फुट के केले देखकर लाग आश्चर्यचकित रह जाते ।
वे कहते थे---- " जप-तप की अपेक्षा अन्न और फलों का उत्पादन करना आज परमेश्वर की महान सेवा भक्ति है । जितना आनन्द मुझे जप-और ध्यान में आता है उससे अधिक आनंद मुझे मिट्टी गोड़ने, पौधे लगाने और उन्हें खाद-पानी देने में आता है । "
मुख से प्रभु का अखण्ड नाम स्मरण करते हुए वे पेड़-पौधों को खाद-पानी दिया करते थे मानो ज्ञान-भक्ति और कर्म की त्रिवेणी संगम में ही वे स्नान कर रहे हों । बिलकुल बंजर भूमि को उपजाऊ बनाकर उसे एक आदर्श बाग बनाना उनकी ईश्वर भक्ति का सशक्त प्रतीक है ।
कुटिया के चारों ओर लगभग एक एकड़ जमीन में उन्होंने पपीते, केले, नीबू, अमरुद आदि फल और विभिन्न साग-सब्जी की इतनी सुंदर बगिया बनाई थी कि देखने वाले स्वामीजी की परिश्रमशीलता कि तारीफ करते नहीं थकते | स्वामी मुक्तानन्द जी अपनी आध्यात्मिक साधना में संलग्न रहते हुए भी कृषि कार्य में नियमित रूप से प्रतिदिन चार घंटे श्रमदान करते थे । उनके बाग में चार किलों के पपीते, तीन फुट लम्बी लौकी और एक फुट के केले देखकर लाग आश्चर्यचकित रह जाते ।
वे कहते थे---- " जप-तप की अपेक्षा अन्न और फलों का उत्पादन करना आज परमेश्वर की महान सेवा भक्ति है । जितना आनन्द मुझे जप-और ध्यान में आता है उससे अधिक आनंद मुझे मिट्टी गोड़ने, पौधे लगाने और उन्हें खाद-पानी देने में आता है । "
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