किसी और देश का विलायती साहब एकदम ग्रामीण--- आदिवासियों जैसा जीवन बिता सकेगा, ऐसी कल्पना करना कठिन है परन्तु एल्विन ने यह सब कर दिखाया और सिद्ध कर दिया कि जिनके मन में सेवा की लगन है वे हर वातावरण में साँस ले सकते हैं । किसी भी प्रकार के जीवन में अपने आपको एक रस कर सकते हैं ।
एल्विन इंग्लैंड के रहने वाले थे और ' क्रिस्त सेवा संघ '---- नामक संस्था के अंतर्गत ईसा की पवित्र शिक्षाओं के प्रसार हेतु भारत आये थे । यहां आकर उन्होंने आदिवासियों की सेवा का मार्ग अपनाया । एल्विन को इस क्षेत्र में आने की प्रेरणा श्री जमनालाल बजाज ने दी थी , उन्होंने महात्मा गांधी से भी आशीर्वाद लिया और अमरकंटक से दस मील दूर करंजिया में अपने साथियों के साथ मिलकर एक ' गोंड - सेवा मंडल ' की स्थापना की । वहां उन्होंने आदिवासियों में शिक्षा प्रचार के लिए स्कूल खोला , एक अस्पताल भी खोला जिससे वे आदिवासियों के स्नेह पात्र बन गये ।
करंजिया में एल्विन पूरे आदिवासी बनकर रहे --- आदिवासियों की तरह पोशाक , उन्ही की तरह नंगे पैर , वहीँ के अन्दाज में बात करने का प्रयास । एक गोंड कन्या ' लीला ' को उनने अपना जीवन साथी चुना । आदिवासियों की सेवा के साथ-साथ एल्विन एक साहित्यकार के रूप में सामने आये | उन्होंने कुल 26 किताबें लिखीं और एक-एक किताब पर वर्षों मेहनत की । आदिवासियों के रहन-सहन, विश्वास, परंपराओं और कार्यशैलियों की जितनी जानकारी उनकी पुस्तकों से मिल सकती है, अन्यत्र मिलना दुर्लभ है। चार वर्ष करंजिया में रहने के बाद एल्विन पारमगढ़ आये, वहां भी स्कूल व अस्पताल खोला । इसके बाद वे बापू के पास साबरमती आश्रम आ गये । जब बम्बई में गांधीजी की गिरफ्तारी हुई तो एल्विन ही आश्रम की सारी व्यवस्था सम्हाल ली
बाद में व फिर से करंजिया आए और केवल गोंडो की ही नहीं, बेंगा, मुरिया नागा आदि की भी सेवा करते रहे ।
एल्विन इंग्लैंड के रहने वाले थे और ' क्रिस्त सेवा संघ '---- नामक संस्था के अंतर्गत ईसा की पवित्र शिक्षाओं के प्रसार हेतु भारत आये थे । यहां आकर उन्होंने आदिवासियों की सेवा का मार्ग अपनाया । एल्विन को इस क्षेत्र में आने की प्रेरणा श्री जमनालाल बजाज ने दी थी , उन्होंने महात्मा गांधी से भी आशीर्वाद लिया और अमरकंटक से दस मील दूर करंजिया में अपने साथियों के साथ मिलकर एक ' गोंड - सेवा मंडल ' की स्थापना की । वहां उन्होंने आदिवासियों में शिक्षा प्रचार के लिए स्कूल खोला , एक अस्पताल भी खोला जिससे वे आदिवासियों के स्नेह पात्र बन गये ।
करंजिया में एल्विन पूरे आदिवासी बनकर रहे --- आदिवासियों की तरह पोशाक , उन्ही की तरह नंगे पैर , वहीँ के अन्दाज में बात करने का प्रयास । एक गोंड कन्या ' लीला ' को उनने अपना जीवन साथी चुना । आदिवासियों की सेवा के साथ-साथ एल्विन एक साहित्यकार के रूप में सामने आये | उन्होंने कुल 26 किताबें लिखीं और एक-एक किताब पर वर्षों मेहनत की । आदिवासियों के रहन-सहन, विश्वास, परंपराओं और कार्यशैलियों की जितनी जानकारी उनकी पुस्तकों से मिल सकती है, अन्यत्र मिलना दुर्लभ है। चार वर्ष करंजिया में रहने के बाद एल्विन पारमगढ़ आये, वहां भी स्कूल व अस्पताल खोला । इसके बाद वे बापू के पास साबरमती आश्रम आ गये । जब बम्बई में गांधीजी की गिरफ्तारी हुई तो एल्विन ही आश्रम की सारी व्यवस्था सम्हाल ली
बाद में व फिर से करंजिया आए और केवल गोंडो की ही नहीं, बेंगा, मुरिया नागा आदि की भी सेवा करते रहे ।
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