नावेल्ड ( अलवानिया ) का एक छोटा सा गांव है, वहां के मिशन स्कूल में एक छोटा बालक न्यूनरिचे भर्ती हुआ । एक दिन धर्म -शिक्षा के घंटे में पादरी प्रभु यीशु की सहृदयता और शिक्षा की विवेचना कर रहे थे । वे बता रहे थे ---- " यीशु ने दया और करुणा की सरिता बहाई और अपने अनुयायियों को हर प्राणी के साथ दया का सहृदय व्यवहार करने का उपदेश दिया । सच्चे ईसाई को ऐसा ही दयावान होना चाहिए । वह कई दिन तक लगातार यह सोचता रहा ----- क्या हम सच्चे ईसाई नही हैं ?
बालक ने कई दिन तक अपने घर में मांस के लिए छोटे जानवरों और पक्षियों का वध होते देखा था , इन तड़पते हुए प्राणियों को देखकर बालक घर के बाहर चला गया और सुबक -सुबक कर घण्टों रोता रहा । अपनी वेदना उसने दूसरे दिन शिक्षक पादरी के सामने रखी --- और पूछा , क्या मांस के लिए पशु -पक्षियों की हत्या करना ईसाई धर्म के और प्रभु यीशु की शिक्षाओं के अनुरूप है ?
पादरी स्वयं मांस खाते थे , वहां घर -घर में मांस खाया जाता था इसलिए वे कुछ ना कह सके ।
बालक रिचे ने निश्चय किया कि वह सच्चा ईसाई बनेगा , उन्होंने मांस खाना छोड़ दिया । उनसे प्रेरित होकर उनकी माँ व दोनों बहनो ने भी मांस खाना छोड़ दिया | धीरे -धीरे यह विचार जड़ ज़माने लगा कि जो दयालु होगा वह मांसाहार कैसे कर सकेगा ?
रिचे बड़े होकर पादरी बने , उन्होंने घर -घर घूमकर सच्ची धार्मिकता का प्रचार किया , ' दयालु धर्म प्रेमियों की संस्था ' नामक संग़ठन ने जो लोक शिक्षण किया , उससे प्रभावित होकर लाखों व्यक्तियों ने मांसाहार छोड़ा और धार्मिकता अपनाई ।
बालक ने कई दिन तक अपने घर में मांस के लिए छोटे जानवरों और पक्षियों का वध होते देखा था , इन तड़पते हुए प्राणियों को देखकर बालक घर के बाहर चला गया और सुबक -सुबक कर घण्टों रोता रहा । अपनी वेदना उसने दूसरे दिन शिक्षक पादरी के सामने रखी --- और पूछा , क्या मांस के लिए पशु -पक्षियों की हत्या करना ईसाई धर्म के और प्रभु यीशु की शिक्षाओं के अनुरूप है ?
पादरी स्वयं मांस खाते थे , वहां घर -घर में मांस खाया जाता था इसलिए वे कुछ ना कह सके ।
बालक रिचे ने निश्चय किया कि वह सच्चा ईसाई बनेगा , उन्होंने मांस खाना छोड़ दिया । उनसे प्रेरित होकर उनकी माँ व दोनों बहनो ने भी मांस खाना छोड़ दिया | धीरे -धीरे यह विचार जड़ ज़माने लगा कि जो दयालु होगा वह मांसाहार कैसे कर सकेगा ?
रिचे बड़े होकर पादरी बने , उन्होंने घर -घर घूमकर सच्ची धार्मिकता का प्रचार किया , ' दयालु धर्म प्रेमियों की संस्था ' नामक संग़ठन ने जो लोक शिक्षण किया , उससे प्रभावित होकर लाखों व्यक्तियों ने मांसाहार छोड़ा और धार्मिकता अपनाई ।
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