हेनरी-एल-मेनकेन अमेरिका के एक सुप्रसिद्ध सहित्यकार थे , जिसने पत्रकारिता के व्यवसाय में लाखों की संपति कमाई , किन्तु अात्मिक शांति नही मिली । एक दिन उनने बाल्ज़ाक की पुस्तक पढ़ी -- उसमे लिखा था ---- " जब तुम्हे यह स्पष्ट हो जाये कि लौकिकता , भौतिकता , धन -संपति में सुख -सार नहीं है । साधन और सुख -सुविधाओं के होते हुए भी अशांति हो तब कुछ समय के लिए निर्धन , अपाहिजों , रोगियों , अशिक्षित और पद -दलितों के पास जाकर देखना वहां तुम्हे शांति मिल सकती है क्या ? अन्त:करण को उनकी सेवा के लिए प्रेरित करना , तुम देखोगे कि शांति के द्वार खुलते जा रहें हैं , प्रसन्नता के भाण्डागार अनायास ही उपलब्ध होते जा रहे हैं । "
उन्होंने पुस्तक रख दी और अस्पताल पहुंचे । बिस्तर पर पड़े मरीजों को देखकर उनकी वैभव -विलासी आत्मा रो पड़ी । उन्होंने यह कहकर कार बेच दी ---- जब हजारों लोगों को अच्छा भोजन , शिक्षा और चिकित्सा की सुविधाएं न हों , कुछ लोग कार पर क्यों चलें ? कार की बिक्री से आया धन अस्पताल को दान कर दिया । तब से उनने प्रतिदिन दो घंटे रोगियों , अपाहिजों और अविकसित लोगों के बीच जाने और उनकी सेवा करने के लिए आजीवन समय निकालना आरम्भ कर दिया । उन्होंने समाज सुधार पर लेख लिखने और छापने आरम्भ किये , जीव -दया , समानता , ईश्वर परायणता पर बहुत जोर दिया । उन्होंने स्वयं कभी चमड़े के जूते नहीं पहने और न जीव हिंसा वाली कोई अौषधि ली । समाज के लिए वे इतने उदार थे कि सारी संपति लोक सेवा में खर्च की । हेनरी मेनकेन ने समृद्धि में भी निर्धनता का जीवन किस प्रसन्नता से जिया इसकी सैकड़ों घटनाएं अमेरिका में पढ़ी और उदाहरण दी जाती हैं ।
उन्होंने पुस्तक रख दी और अस्पताल पहुंचे । बिस्तर पर पड़े मरीजों को देखकर उनकी वैभव -विलासी आत्मा रो पड़ी । उन्होंने यह कहकर कार बेच दी ---- जब हजारों लोगों को अच्छा भोजन , शिक्षा और चिकित्सा की सुविधाएं न हों , कुछ लोग कार पर क्यों चलें ? कार की बिक्री से आया धन अस्पताल को दान कर दिया । तब से उनने प्रतिदिन दो घंटे रोगियों , अपाहिजों और अविकसित लोगों के बीच जाने और उनकी सेवा करने के लिए आजीवन समय निकालना आरम्भ कर दिया । उन्होंने समाज सुधार पर लेख लिखने और छापने आरम्भ किये , जीव -दया , समानता , ईश्वर परायणता पर बहुत जोर दिया । उन्होंने स्वयं कभी चमड़े के जूते नहीं पहने और न जीव हिंसा वाली कोई अौषधि ली । समाज के लिए वे इतने उदार थे कि सारी संपति लोक सेवा में खर्च की । हेनरी मेनकेन ने समृद्धि में भी निर्धनता का जीवन किस प्रसन्नता से जिया इसकी सैकड़ों घटनाएं अमेरिका में पढ़ी और उदाहरण दी जाती हैं ।
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