जिन महामानवों के प्रयास आधुनिक शिक्षा पद्धति के दोषों को दूर रखकर राष्ट्र को रचनात्मक दिशा देने के लिए बुनियादी शिक्षा योजना को व्यवहारिक रूप देने के रहे उनमे आसाम के लोकमान्य कवि शिरोमणि नीलमणि फुकन का नाम सर्वाधिक सम्मान के साथ लिया जाता है आसाम के पितामह नीलमणी फुकन का जन्म 1880 में असम में हुआ था । अपने अध्य्यन काल में भारत की और आसाम की दयनीय दशा देखकर उन्होंने निश्चय किया कि जब भी मौका मिलेगा , समाज सेवा करेंगे ।
अध्ययन की उपरांत उन्हें डिब्रूगढ़ में एक पाठशाला में प्राचार्य पद पर नियुक्ति मिली । और तभी से वे समाज सेवा में जुट गये । यह पाठशाला उस समय सरकारी सहयोग से चल रही थी । 1914 में जब प्रथम विश्व युद्ध आरम्भ हुआ तो सरकार ने कई सस्थाओं को अनुदान देना बंद कर दिया । सरकार की इस नीति का प्रभाव डिब्रूगढ़ की उस पाठशाला पर भी पड़ा जिसमे प्राचार्य फुकन थे । पाठशाला बंद हो गई । अब नीलमणि फुकन ने संकल्प लिया --- चाहे जो हो जाये स्कूल बंद नहीं होने देंगे और उन्होंने स्कूल के लिए जन -सहयोग जुटाने हेतु साइकिल पर आस -पास के गांव घूमना आरम्भ कर दिया और करीब छः महीने में 14 हजार रूपये इकट्ठे कर लिए । पाठशाला की आवश्यकता पूर्ति के बाद काफी रकम बचती थी तो उन्होंने नई पाठशालाएं खोलने का अभियान चलाया और कुछ ही समय में 30 पाठशालाएं खुल गईं । उन्होंने शिक्षा में नये प्रयोगों द्वारा देश को कर्मठ और निष्ठावान नागरिक देने का कार्य आरम्भ किया । अपने व्यक्तित्व और कृतित्व के माध्यम से आसाम के पितामह सिद्ध हुए ।
अध्ययन की उपरांत उन्हें डिब्रूगढ़ में एक पाठशाला में प्राचार्य पद पर नियुक्ति मिली । और तभी से वे समाज सेवा में जुट गये । यह पाठशाला उस समय सरकारी सहयोग से चल रही थी । 1914 में जब प्रथम विश्व युद्ध आरम्भ हुआ तो सरकार ने कई सस्थाओं को अनुदान देना बंद कर दिया । सरकार की इस नीति का प्रभाव डिब्रूगढ़ की उस पाठशाला पर भी पड़ा जिसमे प्राचार्य फुकन थे । पाठशाला बंद हो गई । अब नीलमणि फुकन ने संकल्प लिया --- चाहे जो हो जाये स्कूल बंद नहीं होने देंगे और उन्होंने स्कूल के लिए जन -सहयोग जुटाने हेतु साइकिल पर आस -पास के गांव घूमना आरम्भ कर दिया और करीब छः महीने में 14 हजार रूपये इकट्ठे कर लिए । पाठशाला की आवश्यकता पूर्ति के बाद काफी रकम बचती थी तो उन्होंने नई पाठशालाएं खोलने का अभियान चलाया और कुछ ही समय में 30 पाठशालाएं खुल गईं । उन्होंने शिक्षा में नये प्रयोगों द्वारा देश को कर्मठ और निष्ठावान नागरिक देने का कार्य आरम्भ किया । अपने व्यक्तित्व और कृतित्व के माध्यम से आसाम के पितामह सिद्ध हुए ।
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