हैक्सन वान का जन्म एडेन के एक संपन्न घर में हुआ था । एम. ए करने के बाद उन्हें कई अच्छी नौकरी मिल रहीं थीं, पिता का कारोबार भी था लेकिन उनने निश्चय किया-----' - मैं कोई ऐसा काम करूंगा जिससे संसार की, अभागों की, दीन-दुःखी और निराश व्यक्तियों की कुछ सेवा हो सके, उन्हें संसार में सुखपूर्वक जीवन जीने का कुछ प्रकाश मिल सके । '
उसके बाद उन्होंने सत्साहित्य के प्रसार का काम शुरू किया । उनके पास उन पुस्तकों का खजाना रहता था जो लोगों में साहस, हिम्मत, सदाचार, शौर्य, उत्साह, उल्लास, करुणा, दया, धैर्य, प्रसन्नता, मैत्री भावनाओं का संचार करती थीं । अरस्तु, स्वेट मार्डेन, जेम्स एलेन, सोक्रेटीज और विश्व के प्रसिद्ध नोबेल पुरस्कार विजेताओं की कृतियाँ उनके पास होती थीं, जिन्हें वे कम से कम कीमत लेकर बेचते थे , रवीन्द्रनाथ टैगोर की गीतांजलि के अंग्रेजी अनुवाद की कई सौ प्रतियाँ उन्होंने बेचीं । उनका चुना हुआ पैराग्राफ था----- " जब संसार में आपके सब संबंध खराब हो गये हों, कोई साथ देने वाला, राह दिखाने वाला न रहे, सर्वत्र अंधकार ही अंधकार फैला हो , आप निराश हो चुके हों, दरिद्रावस्था से उठना चाहते हों, सुखी, संयत और सुव्यवस्थित जीवन जीना चाहते हों, तब किसी आदमी के पास मत जाना । भगवान से भी भीख मांगने पर जो चीज न मिलेगी वह अपने घर की अलमारी के किसी कोने से पड़ी अच्छे विचारों वाली कोई पुस्तक में ढूंढ़कर निकाल लेना, समझ लेना वही आपकी माता, मित्र, सहचरी, गुरु और प्रकाश देने वाली परमात्म-शक्ति है, उसे पढ़ लोगे तो तुम्हारा जीवन सुधर जायेगा । विचार पूर्ण पुस्तकें देवता होती हैं उनकी प्रतिष्ठा घर में रखोगे तो वह एक न एक दिन अपनी उपयोगिता सिद्ध करके ही रहेंगी ।
उनकी पुत्री ने उनसे एक दिन कहा , पिताजी आप कोई ऐसा काम कीजिये जिससे खूब रूपये मिलें । उन्होंने कहा--- बेटी ! रुपयों का कमा लेना ही पर्याप्त नहीं है । हर मनुष्य की एक आत्मा होती है जो दूसरों को सुखी बनाने, सेवा करने और सही राह बताने में अधिक सुख-शांति व संतोष अनुभव करती है । विचार सेवा संसार की सबसे बड़ी सेवा है । सत्साहित्य के प्रसार से लोगों कों जीवन की सही दिशा का मार्गदर्शन मिलता है । "
ऊस समय पुत्री को पूरी बात समझ में नहीं आई, थोडे दिन बाद हैक्सन के नाम एक पत्र आया जिसमे लिखा था----- आपकी दी हुई पुस्तक ने मुझे ईमानदारी, मेहनत और लगन के साथ काम करने की प्रेरणा दी । पहले मैं आवारा व आलसी था, आपकी पुस्तक से प्रेरणा मिली अब मैं अच्छा व्यवसाय कर रहा हूँ । किसी अन्य पत्र में लिखा था--- आपकी दी पुस्तक से मैंने चरित्र की महता जानी , उस दिन से जीवन निर्माण में लग गया और आज यहां का कमिश्नर हूँ । इसी तरह किसी ने लिखा--- मैं आत्महत्या करने जा रहा था किन्तु आपकी दी हुई पुस्तक के लेख ' उठिए, निराशा को दूर भगाइए ' से मेरे जीवन में आशा का संचार हुआ |
उन्होंने सत्साहित्य देकर हजारों लोगों कों जीवन के सही मार्ग की ओर प्रेरित किया ।
उसके बाद उन्होंने सत्साहित्य के प्रसार का काम शुरू किया । उनके पास उन पुस्तकों का खजाना रहता था जो लोगों में साहस, हिम्मत, सदाचार, शौर्य, उत्साह, उल्लास, करुणा, दया, धैर्य, प्रसन्नता, मैत्री भावनाओं का संचार करती थीं । अरस्तु, स्वेट मार्डेन, जेम्स एलेन, सोक्रेटीज और विश्व के प्रसिद्ध नोबेल पुरस्कार विजेताओं की कृतियाँ उनके पास होती थीं, जिन्हें वे कम से कम कीमत लेकर बेचते थे , रवीन्द्रनाथ टैगोर की गीतांजलि के अंग्रेजी अनुवाद की कई सौ प्रतियाँ उन्होंने बेचीं । उनका चुना हुआ पैराग्राफ था----- " जब संसार में आपके सब संबंध खराब हो गये हों, कोई साथ देने वाला, राह दिखाने वाला न रहे, सर्वत्र अंधकार ही अंधकार फैला हो , आप निराश हो चुके हों, दरिद्रावस्था से उठना चाहते हों, सुखी, संयत और सुव्यवस्थित जीवन जीना चाहते हों, तब किसी आदमी के पास मत जाना । भगवान से भी भीख मांगने पर जो चीज न मिलेगी वह अपने घर की अलमारी के किसी कोने से पड़ी अच्छे विचारों वाली कोई पुस्तक में ढूंढ़कर निकाल लेना, समझ लेना वही आपकी माता, मित्र, सहचरी, गुरु और प्रकाश देने वाली परमात्म-शक्ति है, उसे पढ़ लोगे तो तुम्हारा जीवन सुधर जायेगा । विचार पूर्ण पुस्तकें देवता होती हैं उनकी प्रतिष्ठा घर में रखोगे तो वह एक न एक दिन अपनी उपयोगिता सिद्ध करके ही रहेंगी ।
उनकी पुत्री ने उनसे एक दिन कहा , पिताजी आप कोई ऐसा काम कीजिये जिससे खूब रूपये मिलें । उन्होंने कहा--- बेटी ! रुपयों का कमा लेना ही पर्याप्त नहीं है । हर मनुष्य की एक आत्मा होती है जो दूसरों को सुखी बनाने, सेवा करने और सही राह बताने में अधिक सुख-शांति व संतोष अनुभव करती है । विचार सेवा संसार की सबसे बड़ी सेवा है । सत्साहित्य के प्रसार से लोगों कों जीवन की सही दिशा का मार्गदर्शन मिलता है । "
ऊस समय पुत्री को पूरी बात समझ में नहीं आई, थोडे दिन बाद हैक्सन के नाम एक पत्र आया जिसमे लिखा था----- आपकी दी हुई पुस्तक ने मुझे ईमानदारी, मेहनत और लगन के साथ काम करने की प्रेरणा दी । पहले मैं आवारा व आलसी था, आपकी पुस्तक से प्रेरणा मिली अब मैं अच्छा व्यवसाय कर रहा हूँ । किसी अन्य पत्र में लिखा था--- आपकी दी पुस्तक से मैंने चरित्र की महता जानी , उस दिन से जीवन निर्माण में लग गया और आज यहां का कमिश्नर हूँ । इसी तरह किसी ने लिखा--- मैं आत्महत्या करने जा रहा था किन्तु आपकी दी हुई पुस्तक के लेख ' उठिए, निराशा को दूर भगाइए ' से मेरे जीवन में आशा का संचार हुआ |
उन्होंने सत्साहित्य देकर हजारों लोगों कों जीवन के सही मार्ग की ओर प्रेरित किया ।
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