द्धितीय महायुद्ध चल रहा था । अमेरिकी सेना काफी क्षतिग्रस्त हुई, विलियम स्काट नामक एक सिपाही उस युद्ध में लड़ रहा था । एक दिन बहुत दूर पैदल चलने के कारण वह थका हुआ था । उसका एक साथी बीमार था, उसने अपने साथी से कहा--- तुम आज आराम कर लो, तुम्हारी ड्यूटी मैं ही कर लेता हूँ और स्काट ने रात की ड्यूटी स्वीकार कर ली ।
स्काट ने ड्यूटी दी, किन्तुु अंतिम क्षण थकान के कारण नींद आ गई, जांच के समय पकड़ा गया और सैनिक न्यायालय ने उसे गोली से उड़ा देने की सजा दी |
स्काट मृत्यु-दंड से विचलित ना हुआ, उसे संतोष थी कि उसने मानवीय कर्तव्य का पालन करने का प्रयास तो किया । उसे दुःख भी था कि वह कर्तव्य कों ईमानदारी व जागरूकता से पूरा न कर सका उस दिन राष्ट्रपति लिंकन सैनिक टुकड़ियों का निरीक्षण कर रहे थे, उन्होने स्काट से पूछा---- जवान ! तुम्हे गोली नहीं मारी जायेगी, पर तुम्हारे कारण सेना को जो तकलीफ हुई उसका ऋण चुका सकोगे क्या ? स्काट ने कहा---- मैं अपनी सारी जायदाद छोड़ने के लिए तैयार हूँ
स्काट के कंधे पर हाथ रखकर राष्ट्रपति लिंकन ने कहा---" स्काट, कर्तव्य की चूक का ऋण धन और जायदाद से नहीं चुकाया जा सकता, उसका प्रायश्चित सिर्फ एक तरह से हो सकता है, तुम प्रतिज्ञा करो कि वैसी भूल दुबारा नहीं करोगे | कर्तव्य में चूक न होने देने का संकल्प पूरा कर सके तो तुम पिछली भूल से उऋण समझे जाओगे " ।
स्काट की सजा रद्द कर दी गई । ।
स्काट सच्चे ह्रदय से बहुत बहादुरी से लड़ा , उसने अपनी सुविधा की परवाह न की । युद्ध में लड़ते-लड़ते बुरी तरह घायल हो गया | मरने से पूर्व उसने लिंकन को पत्र लिखा---- " आपको जो वचन दिया था, संतोष है, उसे पूरा कर इस संसार से जा रहा हूँ ।
स्काट ने ड्यूटी दी, किन्तुु अंतिम क्षण थकान के कारण नींद आ गई, जांच के समय पकड़ा गया और सैनिक न्यायालय ने उसे गोली से उड़ा देने की सजा दी |
स्काट मृत्यु-दंड से विचलित ना हुआ, उसे संतोष थी कि उसने मानवीय कर्तव्य का पालन करने का प्रयास तो किया । उसे दुःख भी था कि वह कर्तव्य कों ईमानदारी व जागरूकता से पूरा न कर सका उस दिन राष्ट्रपति लिंकन सैनिक टुकड़ियों का निरीक्षण कर रहे थे, उन्होने स्काट से पूछा---- जवान ! तुम्हे गोली नहीं मारी जायेगी, पर तुम्हारे कारण सेना को जो तकलीफ हुई उसका ऋण चुका सकोगे क्या ? स्काट ने कहा---- मैं अपनी सारी जायदाद छोड़ने के लिए तैयार हूँ
स्काट के कंधे पर हाथ रखकर राष्ट्रपति लिंकन ने कहा---" स्काट, कर्तव्य की चूक का ऋण धन और जायदाद से नहीं चुकाया जा सकता, उसका प्रायश्चित सिर्फ एक तरह से हो सकता है, तुम प्रतिज्ञा करो कि वैसी भूल दुबारा नहीं करोगे | कर्तव्य में चूक न होने देने का संकल्प पूरा कर सके तो तुम पिछली भूल से उऋण समझे जाओगे " ।
स्काट की सजा रद्द कर दी गई । ।
स्काट सच्चे ह्रदय से बहुत बहादुरी से लड़ा , उसने अपनी सुविधा की परवाह न की । युद्ध में लड़ते-लड़ते बुरी तरह घायल हो गया | मरने से पूर्व उसने लिंकन को पत्र लिखा---- " आपको जो वचन दिया था, संतोष है, उसे पूरा कर इस संसार से जा रहा हूँ ।
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