संत गाडगे बाबा आज के सन्त-महन्तों एवं महात्माओं के लिए समाज सेवा का आदर्श प्रस्तुत कर गये । वे सच्चे निष्काम कर्मयोगी थे, उनके जीवन का एकमात्र ध्येय था---- लोक सेवा । दीन दुःखियों, उपेक्षितों की सेवा को ही वे ईश्वर सेवा मानते थे । धार्मिक बाह्य आडम्बरों के वे प्रबल विरोधी थे । वे कहा करते थे भगवान न तो तीर्थ स्थानों में है और न मूर्तियों में, बल्कि दरिद्रनारायण के रूप में वह मानव-समाज में ही विद्दमान है ।
' भूखों को भोजन, प्यासे को पानी, अनपढ़ को शिक्षा, बेकार को काम, निराश को ढाढस और मूक जीवों को अभय प्रदान करना ही भगवान की सच्ची सेवा-पूजा है । महाराष्ट्र के कोने-कोने में उन्होंने अनेक धर्मशालाएं, गौशाला, स्कूल, छात्रावास, दवाखाने आदि का निर्माण कराया । यह सब उन्होंने भीख मांगकर ही बनवाया परन्तु अपने सारे जीवन मे इस महापुरुष ने अपने लिये एक कुटिया भी नही बनवाई | धर्मशालाओं के बरामदे या किसी वृक्ष के नीचे ही अपनी सारी जिंदगी बिता दी । गरीबों के लिए वे प्रतिवर्ष अनेक बड़े-बड़े अन्न क्षेत्र भी किया करते थे जिसमे अन्धे , लंगड़ों तथा तथा अन्य अपाहिजों को कम्बल व बर्तन भी बांटते थे । उनके जीवन काल में स्थापित ' गाडगे महाराज मिशन ' आज भी अनेक धर्मशालाओं, कॉलेज, स्कूल, छात्रावास के संचालन एवं समाज सेवा के विभिन्न कार्यों में संलग्न है ।
' भूखों को भोजन, प्यासे को पानी, अनपढ़ को शिक्षा, बेकार को काम, निराश को ढाढस और मूक जीवों को अभय प्रदान करना ही भगवान की सच्ची सेवा-पूजा है । महाराष्ट्र के कोने-कोने में उन्होंने अनेक धर्मशालाएं, गौशाला, स्कूल, छात्रावास, दवाखाने आदि का निर्माण कराया । यह सब उन्होंने भीख मांगकर ही बनवाया परन्तु अपने सारे जीवन मे इस महापुरुष ने अपने लिये एक कुटिया भी नही बनवाई | धर्मशालाओं के बरामदे या किसी वृक्ष के नीचे ही अपनी सारी जिंदगी बिता दी । गरीबों के लिए वे प्रतिवर्ष अनेक बड़े-बड़े अन्न क्षेत्र भी किया करते थे जिसमे अन्धे , लंगड़ों तथा तथा अन्य अपाहिजों को कम्बल व बर्तन भी बांटते थे । उनके जीवन काल में स्थापित ' गाडगे महाराज मिशन ' आज भी अनेक धर्मशालाओं, कॉलेज, स्कूल, छात्रावास के संचालन एवं समाज सेवा के विभिन्न कार्यों में संलग्न है ।
No comments:
Post a Comment