मनुष्य जीवन तो पानी का बुलबुला है, वह पैदा भी होता है और मर भी जाता है किन्तु शाश्वत रहते हैं उसके कर्म और विचार । सद्विचार ही मनुष्य को सद्कर्मों को करने के लिए प्रेरित करते हैं और सत्कर्म ही मनुष्य का मनुष्यत्व सिद्ध करते हैं |
कुंग फुत्ज जिन्हें कन्फ्यूशियस कहा जाता है उनके विचार तो शाश्वत थे । उनके दो सौ वर्ष पश्चात एक राजा ने उनके विचारों, उनकी शिक्षाओं को नष्ट कर देने का प्रयास किया । उनकी लिखी पुस्तकें, उनके उपदेशों व शिक्षाओं के संग्रह उसने जला दिये । जो लोग उनके मतानुयायी थे और प्रचार करते थे उन्हें उसने मौत के घाट उतार दिया । फिर भी कुंग फुत्ज के विचार मरे नहीं, वे और जीवन्त हो उठे । उनके उपदेश लोगों के मन, मस्तिष्क, ह्रदय, अन्त:करण में जीवित रहे । बाद के सम्राटों ने उन विचारों को स्वीकारा, कुंग फुत्ज के धर्म को मान्यता मिली । आज भी चीन में करोड़ों व्यक्तियों को उनके उपदेश कंठस्थ हैं ।
उन्होंने धर्म के व्यवहारिक पक्ष पर अधिक जोर दिया । समाज के व्यक्तियों द्वारा जिन नियमो का पालन करने से समाज में सुख, शान्ति, संतोष और स्वर्गीय वातावरण बने वे नियम ही उनके धर्म के आधार थे । प्रारम्भ में तेरह वर्षों तक वे एक राजा से दूसरे राजा के पास जाते रहे कि वे उनकी नैतिक पुनरुत्थान परक सेवाएं लें परन्तु किसी ने उनकी बात नहीं मानी । तब वह बिना राज्याश्रय के ही चीन देश में अपने नैतिक सिद्धांतों को जन-जन को सुनाते रहे और उसकी उपयोगिता समझाते रहे | कालान्तर में उनके यही उपदेश चीन का धर्म बन गये ।
उन्होंने अपना एक विद्दालय भी खोला जिसमे अक्षर ज्ञान के साथ सदाचार और सुशासन की शिक्षा भी दी जाती थी । बावन वर्ष की आयु में उन्हें लू राज्य के चुंग तू नगर का प्रशासक बना दिया गया, उन्होंने इस नगर का प्रशासन अपने सिद्धांतो के आधार पर किया जिससे नगर एक प्रकार का स्वर्ग ही बन गया । उनकी कीर्ति दूर-दूर तक फैल गई । सदाचरण और नैतिकता के पालन से ऐसा चमत्कार उन्होंने कर दिखाया जो अदभुत था ।
कुंग फुत्ज जिन्हें कन्फ्यूशियस कहा जाता है उनके विचार तो शाश्वत थे । उनके दो सौ वर्ष पश्चात एक राजा ने उनके विचारों, उनकी शिक्षाओं को नष्ट कर देने का प्रयास किया । उनकी लिखी पुस्तकें, उनके उपदेशों व शिक्षाओं के संग्रह उसने जला दिये । जो लोग उनके मतानुयायी थे और प्रचार करते थे उन्हें उसने मौत के घाट उतार दिया । फिर भी कुंग फुत्ज के विचार मरे नहीं, वे और जीवन्त हो उठे । उनके उपदेश लोगों के मन, मस्तिष्क, ह्रदय, अन्त:करण में जीवित रहे । बाद के सम्राटों ने उन विचारों को स्वीकारा, कुंग फुत्ज के धर्म को मान्यता मिली । आज भी चीन में करोड़ों व्यक्तियों को उनके उपदेश कंठस्थ हैं ।
उन्होंने धर्म के व्यवहारिक पक्ष पर अधिक जोर दिया । समाज के व्यक्तियों द्वारा जिन नियमो का पालन करने से समाज में सुख, शान्ति, संतोष और स्वर्गीय वातावरण बने वे नियम ही उनके धर्म के आधार थे । प्रारम्भ में तेरह वर्षों तक वे एक राजा से दूसरे राजा के पास जाते रहे कि वे उनकी नैतिक पुनरुत्थान परक सेवाएं लें परन्तु किसी ने उनकी बात नहीं मानी । तब वह बिना राज्याश्रय के ही चीन देश में अपने नैतिक सिद्धांतों को जन-जन को सुनाते रहे और उसकी उपयोगिता समझाते रहे | कालान्तर में उनके यही उपदेश चीन का धर्म बन गये ।
उन्होंने अपना एक विद्दालय भी खोला जिसमे अक्षर ज्ञान के साथ सदाचार और सुशासन की शिक्षा भी दी जाती थी । बावन वर्ष की आयु में उन्हें लू राज्य के चुंग तू नगर का प्रशासक बना दिया गया, उन्होंने इस नगर का प्रशासन अपने सिद्धांतो के आधार पर किया जिससे नगर एक प्रकार का स्वर्ग ही बन गया । उनकी कीर्ति दूर-दूर तक फैल गई । सदाचरण और नैतिकता के पालन से ऐसा चमत्कार उन्होंने कर दिखाया जो अदभुत था ।
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