' जिनके अन्दर मानव समाज के लिए कुछ करने की ललक होती है---- वे ही सत्पुरुष हर चुनौती को स्वीकार करते हुए आगे बढ़ते हैं तथा अपने कार्य में सफलता भी प्राप्त करते हैं । ऐसे ही व्यक्ति समाज की विभूति बन चिरस्मरणीय रहते हैं ।
डॉ. आत्माराम साधारण से परिवार में जन्मे थे लेकिन अपनी लगन, श्रमशीलता, ईमानदारी, सादगी, सज्जनता, विनम्रता, सौम्यता, देशभक्ति आदि सद्गुणों के कारण महान वैज्ञानिक बन सके तथा अंतर्राष्ट्रीय जगत में ख्याति पा सके ।
1936 में उन्हें डाक्टर-ऑफ-साइंस की उपाधि मिल गई । देश के आर्थिक संकट को देखते हुए डॉ. आत्माराम ने विचार किया कि उद्दोगों का विज्ञान से सीधा संबंध हो, तभी उत्पादन में अधिकाधिक वृद्धि हो सकती है । आर्थिक विकास की गति को तेज करने के लिए यह आवश्यक है कि विज्ञान के व्यावसायिक-पक्ष पर जोर दिया जाये और देश औद्दोगिक क्षेत्र में स्वनिर्भर बने । अपने इस विचार को क्रियात्मक रूप देने के लिये वे औद्दोगिक-अनुसन्धान कार्यालय के वैज्ञानिक दल में सम्मिलित हो गये । अपनी प्रतिभा और लगनशीलता वे 1952 में ' केन्द्रीय कांच एवं मृतिका अनुसन्धानशाला ' के निदेशक बनाये गये । 'समांगी काँच ( ऑप्टिकल ग्लास ) के निर्माण में देश को आत्मनिर्भर बनाना उनकी एक महान देन है । 1960 से ही उनके शोध के आधार पर देश में समांगी काँच का निर्माण चल रहा है, इससे देश की सैनिक व सार्वजनिक आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाती है ।
डॉ. आत्माराम ने अन्य उद्दोगों को भी जन्म दिया । अनुपयोगी अभ्रक से विद्दुतरोधी ईंटों का निर्माण आदि कार्यों में उन्होंने नई खोजें की । ताम्ब्र-लाल काँच के उदगम से संबंधित उनकी शोध के फलस्वरूप काँच उद्दोग को नई दिशा मिली । डॉ. आत्माराम हिन्दी का अत्यंत सम्मान करते थे, उनका मत था कि विद्दार्थियों को मातृभाषा तथा राष्ट्रभाषा के माध्यम से शिक्षा देने पर ही मौलिक प्रतिभाएं सम्यक रूप से उभर पायेंगी, उन्होने हिन्दी में अनेक वैज्ञानिक पुस्तकें भी लिखी हैं ।
डॉ. आत्माराम साधारण से परिवार में जन्मे थे लेकिन अपनी लगन, श्रमशीलता, ईमानदारी, सादगी, सज्जनता, विनम्रता, सौम्यता, देशभक्ति आदि सद्गुणों के कारण महान वैज्ञानिक बन सके तथा अंतर्राष्ट्रीय जगत में ख्याति पा सके ।
1936 में उन्हें डाक्टर-ऑफ-साइंस की उपाधि मिल गई । देश के आर्थिक संकट को देखते हुए डॉ. आत्माराम ने विचार किया कि उद्दोगों का विज्ञान से सीधा संबंध हो, तभी उत्पादन में अधिकाधिक वृद्धि हो सकती है । आर्थिक विकास की गति को तेज करने के लिए यह आवश्यक है कि विज्ञान के व्यावसायिक-पक्ष पर जोर दिया जाये और देश औद्दोगिक क्षेत्र में स्वनिर्भर बने । अपने इस विचार को क्रियात्मक रूप देने के लिये वे औद्दोगिक-अनुसन्धान कार्यालय के वैज्ञानिक दल में सम्मिलित हो गये । अपनी प्रतिभा और लगनशीलता वे 1952 में ' केन्द्रीय कांच एवं मृतिका अनुसन्धानशाला ' के निदेशक बनाये गये । 'समांगी काँच ( ऑप्टिकल ग्लास ) के निर्माण में देश को आत्मनिर्भर बनाना उनकी एक महान देन है । 1960 से ही उनके शोध के आधार पर देश में समांगी काँच का निर्माण चल रहा है, इससे देश की सैनिक व सार्वजनिक आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाती है ।
डॉ. आत्माराम ने अन्य उद्दोगों को भी जन्म दिया । अनुपयोगी अभ्रक से विद्दुतरोधी ईंटों का निर्माण आदि कार्यों में उन्होंने नई खोजें की । ताम्ब्र-लाल काँच के उदगम से संबंधित उनकी शोध के फलस्वरूप काँच उद्दोग को नई दिशा मिली । डॉ. आत्माराम हिन्दी का अत्यंत सम्मान करते थे, उनका मत था कि विद्दार्थियों को मातृभाषा तथा राष्ट्रभाषा के माध्यम से शिक्षा देने पर ही मौलिक प्रतिभाएं सम्यक रूप से उभर पायेंगी, उन्होने हिन्दी में अनेक वैज्ञानिक पुस्तकें भी लिखी हैं ।
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