' नाना फड़नवीस (1744-1800) ने आपने आचरण द्वारा यह अनुकरणीय उदाहरण रखा है कि
राष्ट्र की सेवा पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ ही नहीं निष्काम भाव से भी की जानी चाहिए | राजनीतिक दाँवपेंचों का प्रयोग राष्ट्रविरोधियों के विरुद्ध ही किया जाये न कि अपने देशवासियों के साथ अपने स्वार्थ साधन के लिए |'
नाना फड़नवीस निष्काम कर्मयोगी थे, उन्होंने अपने जीते जी महाराष्ट्र की कीर्ति को धूमिल नहीं होने दिया, जिसे समर्थ गुरु रामदास और शिवाजी आदि महापुरुषों ने अपने महान कर्तव्य के बल पर संगठित किया था | नाना फड़नवीस दूरदर्शी व्यक्ति थे, वे अपने समय के चाणक्य माने जाते हैं ।
उन्होंने अपना गुप्तचर विभाग कितना तत्पर बना रखा था कि इस संबंध में प्रसिद्ध इतिहासकार मेजर वसु ने लिखा है---- " नाना फड़नवीस के गुप्तचर विभाग का प्रबंध इतना उत्तम था कि देश के किसी भी भाग में कोई भी महत्वपूर्ण घटना होती तो उस घटना के सम्बन्ध में भिन्न भिन्न साधनों द्वारा दर्जन की संख्या में वृतान्त लेख ठीक समय में उनके पास पहुँच जाते थे । इन भिन्न भिन्न स्थानो से आए वृतान्त लेखों को पढ़कर वे अपने कमरे में बैठे-बैठे ही देश भर की घटनाओं की असलियत जान जाते थे । "
अंग्रेज उनकी राजनीति से भयभीत रहते थे, वे जानते थे कि नाना फड़नवीस जैसा चतुर और निस्वार्थी व्यक्ति पेशवा का महामात्य रहेगा, तब तक उनकी दाल नहीं गलेगी । उन्होंने चालीस वर्ष तक राष्ट्र की जो सेवा की वह आज भी आदर्श है ।
राष्ट्र की सेवा पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ ही नहीं निष्काम भाव से भी की जानी चाहिए | राजनीतिक दाँवपेंचों का प्रयोग राष्ट्रविरोधियों के विरुद्ध ही किया जाये न कि अपने देशवासियों के साथ अपने स्वार्थ साधन के लिए |'
नाना फड़नवीस निष्काम कर्मयोगी थे, उन्होंने अपने जीते जी महाराष्ट्र की कीर्ति को धूमिल नहीं होने दिया, जिसे समर्थ गुरु रामदास और शिवाजी आदि महापुरुषों ने अपने महान कर्तव्य के बल पर संगठित किया था | नाना फड़नवीस दूरदर्शी व्यक्ति थे, वे अपने समय के चाणक्य माने जाते हैं ।
उन्होंने अपना गुप्तचर विभाग कितना तत्पर बना रखा था कि इस संबंध में प्रसिद्ध इतिहासकार मेजर वसु ने लिखा है---- " नाना फड़नवीस के गुप्तचर विभाग का प्रबंध इतना उत्तम था कि देश के किसी भी भाग में कोई भी महत्वपूर्ण घटना होती तो उस घटना के सम्बन्ध में भिन्न भिन्न साधनों द्वारा दर्जन की संख्या में वृतान्त लेख ठीक समय में उनके पास पहुँच जाते थे । इन भिन्न भिन्न स्थानो से आए वृतान्त लेखों को पढ़कर वे अपने कमरे में बैठे-बैठे ही देश भर की घटनाओं की असलियत जान जाते थे । "
अंग्रेज उनकी राजनीति से भयभीत रहते थे, वे जानते थे कि नाना फड़नवीस जैसा चतुर और निस्वार्थी व्यक्ति पेशवा का महामात्य रहेगा, तब तक उनकी दाल नहीं गलेगी । उन्होंने चालीस वर्ष तक राष्ट्र की जो सेवा की वह आज भी आदर्श है ।
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