' अवकाश के समय का सदुपयोग कर व्यक्ति कितना महान बन जाता है सर आशुतोष मुखर्जी इसके ज्वलंत उदाहरण हैं । वे सार्वजनिक सेवा के कार्यों में इतना व्यस्त रहते थे कि फालतू मित्र मंडली बनाने, शौक-मौज पूरी करने तथा इधर-उधर की बातों में फंसने का उनके पास अवकाश ही नहीं था ।
18 88 में कानून की डिग्री प्राप्त कर उन्होंने वकालत आरम्भ की । 1903 में उन्हें कलकत्ता उच्च न्यायालय की जस्टिस बेन्च का ,न्यायधीश नियुक्त किया गया । इस पद पर रहकर उन्होंने अपने आदर्श, मर्यादा और गौरव को यथावत बनाये रखा । जज के पद पर रहते हुए उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में जो प्रयास किये , उन प्रयासों ने उन्हें ऐतिहासिक व्यक्ति बना दिया ।
कलकत्ता विश्वविद्यालय के लिए उनकी सेवाओं की उतनी ही सराहना की जाती है, जितनी कि काशी-हिन्दूविश्वविद्यालय के लिए पं. मदनमोहन मालवीय जी की । कलकत्ता विश्वविद्यालय के वर्तमान उन्नत स्वरुप का अधिकांश श्रेय उन्हें ही दिया जाता है । उनके कार्यकाल में ही विश्वविद्यालय की पक्की इमारत बनी, समृद्ध पुस्तकालय खुला, छात्रावास भवनों का निर्माण हुआ, प्रयोगशालाओ तथ विज्ञान संस्थाओं की नीव पड़ी ।
शिक्षण संस्थाओं की उन्नति और प्रसार के लिए वे चाहते थे कि विद्दार्थी भी इसमें रूचि लें । इसके लिए वे छात्रों के अधिक से अधिक निकट आने का प्रयास करते और उन्हें अनपढ़ व्यक्तियों तथा गरीब और निर्धन परिवार के बच्चों को शिक्षित बनाने के लिए प्रेरित करते रहते । उनसे प्रोत्साहित होकर कई विद्दार्थियों ने रात्रिकालीन पाठशालाएं चलाई थीं और जनसंपर्क द्वारा, स्वयं के जेब खर्च और सर आशुतोष मुखर्जी के सहयोग से निर्धन परिवार के बच्चों को प्राथमिक स्कूलों में भरती कराया था ।
वे चाहते थे कि योग्य प्रतिभाएं समाज की सेवा के लिए आगे आयें । इसलिए उन्होंने विश्वविद्यालय मे बंगला भाषा को उपयुक्त स्थान दिलाने के लिए अनथक प्रयत्न किये ताकि वे युवक जो प्रतिभाशाली तो हैं लेकिन अन्य दूसरी भाषा नहीं जानते और इस कारण अपनी योग्यताओं का विकास नहीं कर पाते हैं ------ वे आगे बढ़ सकें ।
18 88 में कानून की डिग्री प्राप्त कर उन्होंने वकालत आरम्भ की । 1903 में उन्हें कलकत्ता उच्च न्यायालय की जस्टिस बेन्च का ,न्यायधीश नियुक्त किया गया । इस पद पर रहकर उन्होंने अपने आदर्श, मर्यादा और गौरव को यथावत बनाये रखा । जज के पद पर रहते हुए उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में जो प्रयास किये , उन प्रयासों ने उन्हें ऐतिहासिक व्यक्ति बना दिया ।
कलकत्ता विश्वविद्यालय के लिए उनकी सेवाओं की उतनी ही सराहना की जाती है, जितनी कि काशी-हिन्दूविश्वविद्यालय के लिए पं. मदनमोहन मालवीय जी की । कलकत्ता विश्वविद्यालय के वर्तमान उन्नत स्वरुप का अधिकांश श्रेय उन्हें ही दिया जाता है । उनके कार्यकाल में ही विश्वविद्यालय की पक्की इमारत बनी, समृद्ध पुस्तकालय खुला, छात्रावास भवनों का निर्माण हुआ, प्रयोगशालाओ तथ विज्ञान संस्थाओं की नीव पड़ी ।
शिक्षण संस्थाओं की उन्नति और प्रसार के लिए वे चाहते थे कि विद्दार्थी भी इसमें रूचि लें । इसके लिए वे छात्रों के अधिक से अधिक निकट आने का प्रयास करते और उन्हें अनपढ़ व्यक्तियों तथा गरीब और निर्धन परिवार के बच्चों को शिक्षित बनाने के लिए प्रेरित करते रहते । उनसे प्रोत्साहित होकर कई विद्दार्थियों ने रात्रिकालीन पाठशालाएं चलाई थीं और जनसंपर्क द्वारा, स्वयं के जेब खर्च और सर आशुतोष मुखर्जी के सहयोग से निर्धन परिवार के बच्चों को प्राथमिक स्कूलों में भरती कराया था ।
वे चाहते थे कि योग्य प्रतिभाएं समाज की सेवा के लिए आगे आयें । इसलिए उन्होंने विश्वविद्यालय मे बंगला भाषा को उपयुक्त स्थान दिलाने के लिए अनथक प्रयत्न किये ताकि वे युवक जो प्रतिभाशाली तो हैं लेकिन अन्य दूसरी भाषा नहीं जानते और इस कारण अपनी योग्यताओं का विकास नहीं कर पाते हैं ------ वे आगे बढ़ सकें ।
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