महात्मा फ्रांसिस जैसे सन्त कहीं भी हों वे मानव मात्र की वंदना के पात्र है ।
एक दिन वे धर्म प्रचार करते घूम रहे थे कि उनकी द्रष्टि एक बूढ़े पर पड़ी । सिर पर लकड़ियों का गट्ठर लिए वह बाजार में बेचने के लिए जा रहा था , बहुत कमजोर व गरीब था । महात्मा फ्रांसिस तुरंत उस बूढ़े के पास गये और उसका बोझ अपने कंधे पर रखकर गंतव्य तक पहुँचा आये । उनके अनुयायियों में से ने चाहा कि बोझ उनके कन्धों पर रख दिया जाये , पर वे इसके लिए तैयार नहीं हुए । उन्होंने स्पष्ट कह दिया ----- पुण्य, परमार्थ और सेवा का जो अवसर उन्हें मिला है वे इसमें किसी को भागीदार नहीं बनायेंगे | लोग अपने लिए राह चलते इस प्रकार के अवसर खोजें और पुण्य लाभ करें । संसार में सेवा करने के अवसर कदम - कदम पर मिल सकते हैं ।
महात्मा फ्रांसिस में दया का भाव बचपन से था वह जनसेवा से पराकाष्ठा पर पहुंचकर आध्यात्मिक आनंद बन गया था ।
एक दिन उनने देखा एक लड़का बहुत से पक्षी एक पिंजरे में बंद कर बेचने जा रहा था ।
संत फ्रांसिस उसके पास गये तो लड़के ने कहा कि इन पक्षियों की कीमत से उसका तीन दिन का भोजन चल जायेगा । महात्मा फ्रांसिस ने कहा ----- " मैं तुम्हे छ दिन तक अपने पास से एक समय का भोजन दिया करूँगा ये पक्षी मुझे दे दो । " लड़का देने को तैयार हो गया । महात्मा फ्रांसिस ने सारे पक्षी लेकर अपने हाथ से उड़ा दिए और उन्हें देख बड़ी देर तक आनंदित होते रहे । अपने वचन के अनुसार छ: दिन तक अपना भोजन लड़के को देते रहे और स्वयं भूखे रहे ।
यह कठोर उपवास करते हुए भी उनके चेहरे पर प्रसन्नता और ताजगी बनी रहती थी । परोपकार
के लिए कष्ट उठाने में उन्हें अपार आनंद आता था ।
एक दिन वे धर्म प्रचार करते घूम रहे थे कि उनकी द्रष्टि एक बूढ़े पर पड़ी । सिर पर लकड़ियों का गट्ठर लिए वह बाजार में बेचने के लिए जा रहा था , बहुत कमजोर व गरीब था । महात्मा फ्रांसिस तुरंत उस बूढ़े के पास गये और उसका बोझ अपने कंधे पर रखकर गंतव्य तक पहुँचा आये । उनके अनुयायियों में से ने चाहा कि बोझ उनके कन्धों पर रख दिया जाये , पर वे इसके लिए तैयार नहीं हुए । उन्होंने स्पष्ट कह दिया ----- पुण्य, परमार्थ और सेवा का जो अवसर उन्हें मिला है वे इसमें किसी को भागीदार नहीं बनायेंगे | लोग अपने लिए राह चलते इस प्रकार के अवसर खोजें और पुण्य लाभ करें । संसार में सेवा करने के अवसर कदम - कदम पर मिल सकते हैं ।
महात्मा फ्रांसिस में दया का भाव बचपन से था वह जनसेवा से पराकाष्ठा पर पहुंचकर आध्यात्मिक आनंद बन गया था ।
एक दिन उनने देखा एक लड़का बहुत से पक्षी एक पिंजरे में बंद कर बेचने जा रहा था ।
संत फ्रांसिस उसके पास गये तो लड़के ने कहा कि इन पक्षियों की कीमत से उसका तीन दिन का भोजन चल जायेगा । महात्मा फ्रांसिस ने कहा ----- " मैं तुम्हे छ दिन तक अपने पास से एक समय का भोजन दिया करूँगा ये पक्षी मुझे दे दो । " लड़का देने को तैयार हो गया । महात्मा फ्रांसिस ने सारे पक्षी लेकर अपने हाथ से उड़ा दिए और उन्हें देख बड़ी देर तक आनंदित होते रहे । अपने वचन के अनुसार छ: दिन तक अपना भोजन लड़के को देते रहे और स्वयं भूखे रहे ।
यह कठोर उपवास करते हुए भी उनके चेहरे पर प्रसन्नता और ताजगी बनी रहती थी । परोपकार
के लिए कष्ट उठाने में उन्हें अपार आनंद आता था ।
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