' उन्होंने अपने जीवन के आरम्भ में ही इस सत्य को जान लिया था कि मनुष्य जन्म ही वह सुअवसर होता है जिसमे अधिक से अधिक लोक - हित सम्पादित करके अधिकाधिक सुख अर्जित किये जा सकते हैं । अत: यह शुभ कार्य जितना शीघ्र हो उतना ही श्रेयस्कर है । यह सोचकर उन्होंने युवावस्था में ही अपनी उस कवित्व शक्ति का जिसे वे ईश्वरीय वरदान मानते थे ,
लोक - हित में सदुपयोग करना आरम्भ कर दिया । '
यौवन काल में जबकि सामान्य युवक पारिवारिक सुख , हास - विलास व अधिकाधिक धनोपार्जन की कामनाएं संजोया करते हैं , उन्हें अपने इन सपनो से फुर्सत ही नहीं होती , दांते ने एक ऐसे महाकाव्य की रचना का स्वप्न देखा जो युगों - युगों तक मनुष्य को सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा - प्रकाश देता रह सके ।
वे अपने इस स्वप्न की बात अपने युवा साथियों से करते तो वे लोग उनका मजाक उड़ाया करते ----- " कैसा पागल है यह दांते भी । जवानी बार - बार तो नहीं आती , इसका रस लूटने के बजाय वह साधु - सन्यासियों की सी दार्शनिकता में फंसा है । "
दांते अपने समवयस्क मित्रों के कथन का उत्तर इन शब्दों में देते ---- " तुम ठीक कहते हो मित्रों ! जवानी बार - बार नहीं आती । शरीर, मन और आत्मा से फूटता यह बसंत -- यह यौवन क्षणिक सांसारिक सुखों के पीछे भागते रहने में ही गंवाना समझदारी नहीं है उसे तो किसी महत्वपूर्ण उद्देश्य को पूरा करने में ही लगाना चाहिए । "
युवावस्था में ही उन्होंने अपने इस अपेक्षित महाकाव्य की रचना आरम्भ कर दी । श्रम , मनोयोग व प्रतिभा की त्रिवेणी ने बीस वर्ष तक अजस्त्र रूप से प्रवाहित होकर जिस अमृतत्व का सृजन किया वह था ---- ' डिवाइन कॉमेडी ' महाकाव्य । अपनी इस कृति के कारण दांते अमर हो गये ।
उनके अमर महाकाव्य ' डिवाइन कॉमेडी ' की एक भी प्रति जब तक इस विश्व में रहेगी तब तक इस महान कवि का विस्मरण संभव नहीं होगा ।
लोक - हित में सदुपयोग करना आरम्भ कर दिया । '
यौवन काल में जबकि सामान्य युवक पारिवारिक सुख , हास - विलास व अधिकाधिक धनोपार्जन की कामनाएं संजोया करते हैं , उन्हें अपने इन सपनो से फुर्सत ही नहीं होती , दांते ने एक ऐसे महाकाव्य की रचना का स्वप्न देखा जो युगों - युगों तक मनुष्य को सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा - प्रकाश देता रह सके ।
वे अपने इस स्वप्न की बात अपने युवा साथियों से करते तो वे लोग उनका मजाक उड़ाया करते ----- " कैसा पागल है यह दांते भी । जवानी बार - बार तो नहीं आती , इसका रस लूटने के बजाय वह साधु - सन्यासियों की सी दार्शनिकता में फंसा है । "
दांते अपने समवयस्क मित्रों के कथन का उत्तर इन शब्दों में देते ---- " तुम ठीक कहते हो मित्रों ! जवानी बार - बार नहीं आती । शरीर, मन और आत्मा से फूटता यह बसंत -- यह यौवन क्षणिक सांसारिक सुखों के पीछे भागते रहने में ही गंवाना समझदारी नहीं है उसे तो किसी महत्वपूर्ण उद्देश्य को पूरा करने में ही लगाना चाहिए । "
युवावस्था में ही उन्होंने अपने इस अपेक्षित महाकाव्य की रचना आरम्भ कर दी । श्रम , मनोयोग व प्रतिभा की त्रिवेणी ने बीस वर्ष तक अजस्त्र रूप से प्रवाहित होकर जिस अमृतत्व का सृजन किया वह था ---- ' डिवाइन कॉमेडी ' महाकाव्य । अपनी इस कृति के कारण दांते अमर हो गये ।
उनके अमर महाकाव्य ' डिवाइन कॉमेडी ' की एक भी प्रति जब तक इस विश्व में रहेगी तब तक इस महान कवि का विस्मरण संभव नहीं होगा ।
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