गुरु नानक कहते थे --- संसार में एक परमात्मा का नाम ही सत्य है और उसकी उपासना सच्चे मन से की जानी चाहिए , चाहे वह मंदिर में हो या मस्जिद में , जंगल में हो या शहर में ।
उनका कहना था कि नेकी और परोपकार की राह पर चलना ही सच्चा धर्म है और इसी से ईश्वर प्रसन्न हो सकते हैं । ' अन्यथा तरह तरह के कर्मकाण्डों में लगे रहना , पूजा - पाठ का ढोंग करते रहना और इन बातों के नाम पर आपस में झगड़े, द्वेष भाव ,कलह फैलाना किसी प्रकार का धर्म नहीं कहा जा सकता । उनकी इन शिक्षाओं का असर हिन्दुओं के विभिन्न सम्प्रदायों , जाति के साथ सैकड़ों मुसलमानों पर भी पड़ा । 1538 में उनका देहांत होने पर सबने मिलकर उनका अंतिम संस्कार किया और हजारों कंठ से यही आवाज निकली ----
गुरु नानक शाह फकीर । हिन्दू का गुरु मुसलमान का पीर । ।
नानक देव सामाजिक जीवन में समानता के समर्थक थे । उन्होंने अपने इस आदर्श को लंगर के रूप में सबके सामने रखा । इसमें बिना किसी भेदभाव के सभी लोग भोजन कर सकते थे । वे चरित्र निर्माण के लिए आंतरिक पवित्रता को अधिक आवश्यक मानते थे |
उनका कहना था कि नेकी और परोपकार की राह पर चलना ही सच्चा धर्म है और इसी से ईश्वर प्रसन्न हो सकते हैं । ' अन्यथा तरह तरह के कर्मकाण्डों में लगे रहना , पूजा - पाठ का ढोंग करते रहना और इन बातों के नाम पर आपस में झगड़े, द्वेष भाव ,कलह फैलाना किसी प्रकार का धर्म नहीं कहा जा सकता । उनकी इन शिक्षाओं का असर हिन्दुओं के विभिन्न सम्प्रदायों , जाति के साथ सैकड़ों मुसलमानों पर भी पड़ा । 1538 में उनका देहांत होने पर सबने मिलकर उनका अंतिम संस्कार किया और हजारों कंठ से यही आवाज निकली ----
गुरु नानक शाह फकीर । हिन्दू का गुरु मुसलमान का पीर । ।
नानक देव सामाजिक जीवन में समानता के समर्थक थे । उन्होंने अपने इस आदर्श को लंगर के रूप में सबके सामने रखा । इसमें बिना किसी भेदभाव के सभी लोग भोजन कर सकते थे । वे चरित्र निर्माण के लिए आंतरिक पवित्रता को अधिक आवश्यक मानते थे |
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