' शब्द - शिल्प के महान कलाकार और वाणी के अपूर्व साधक रूसो का साहित्य मानवीय भावुकता की सर्वोत्कृष्ट अभिव्यक्ति माना जाता है । '
रूसो ( जन्म 1712) को सारा संसार केवल दार्शनिक ही नहीं , आधुनिक प्रजातंत्र का प्रणेता एवं फ्रांस की राज्य क्रांति का पिता मानता है ।
1750 में उनके जीवन में वह महान घटना हुई जिसने उनके जीवन को सर्वथा नया मोड़ प्रदान किया 1748 में रूसो ने पेरिस के एक समाचार पत्र में एक विज्ञापन देखा , जिसमे घोषणा की गई थी कि जो व्यक्ति ' मनुष्य स्वभावतः श्रेष्ठ है परन्तु हमारी सामाजिक संस्थाओं ने उसे कनिष्ठ बना दिया '
इस विषय पर सर्वश्रेष्ठ निबंध लिखेगा , उसे डिजान अकादमी की ओर से भारी पुरस्कार दिया जायेगा । रूसो ने आत्मविभोर होकर वह निबंध लिखा और पुरस्कार प्राप्त किया । इसके बाद उन्होंने अपने प्रसिद्ध ग्रंथों की रचना की । उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना ' दी सोशल कांट्रेक्ट ' है |
रूसो की सशक्त लेखनी से प्रजातंत्र की वह ओजस्वी वाणी प्रसूत हुई कि उसने फ्रांस और जेनेवा के सिंहासनों को हिला दिया । वे एक युग प्रवर्तक विचारक हैं । रूसो के जीवन का अंत 1778 में हुआ । पेरिस की सामंतशाही यह नहीं जानती थी कि जिस रूसो का उसने इतना निरादर किया , अपनी मृत्यु के ठीक दस वर्ष बाद वही व्यक्ति संसार की ऐतिहासिक फ्रांसीसी राज्य - क्रांति का पिता बन जायेगा । उसको देश निकाला देने वाला राजा पेरिस के चौराहे पर कत्ल किया जायेगा एवं जिस समय राजा का कत्ल होगा , उस समय जनता रूसो की जय - जयकार करेगी ।
रूसो ( जन्म 1712) को सारा संसार केवल दार्शनिक ही नहीं , आधुनिक प्रजातंत्र का प्रणेता एवं फ्रांस की राज्य क्रांति का पिता मानता है ।
1750 में उनके जीवन में वह महान घटना हुई जिसने उनके जीवन को सर्वथा नया मोड़ प्रदान किया 1748 में रूसो ने पेरिस के एक समाचार पत्र में एक विज्ञापन देखा , जिसमे घोषणा की गई थी कि जो व्यक्ति ' मनुष्य स्वभावतः श्रेष्ठ है परन्तु हमारी सामाजिक संस्थाओं ने उसे कनिष्ठ बना दिया '
इस विषय पर सर्वश्रेष्ठ निबंध लिखेगा , उसे डिजान अकादमी की ओर से भारी पुरस्कार दिया जायेगा । रूसो ने आत्मविभोर होकर वह निबंध लिखा और पुरस्कार प्राप्त किया । इसके बाद उन्होंने अपने प्रसिद्ध ग्रंथों की रचना की । उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना ' दी सोशल कांट्रेक्ट ' है |
रूसो की सशक्त लेखनी से प्रजातंत्र की वह ओजस्वी वाणी प्रसूत हुई कि उसने फ्रांस और जेनेवा के सिंहासनों को हिला दिया । वे एक युग प्रवर्तक विचारक हैं । रूसो के जीवन का अंत 1778 में हुआ । पेरिस की सामंतशाही यह नहीं जानती थी कि जिस रूसो का उसने इतना निरादर किया , अपनी मृत्यु के ठीक दस वर्ष बाद वही व्यक्ति संसार की ऐतिहासिक फ्रांसीसी राज्य - क्रांति का पिता बन जायेगा । उसको देश निकाला देने वाला राजा पेरिस के चौराहे पर कत्ल किया जायेगा एवं जिस समय राजा का कत्ल होगा , उस समय जनता रूसो की जय - जयकार करेगी ।
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