' उनके ह्रदय में मानव का क्या मूल्य था और मानवता के लिए कितना दर्द था यह उनके उन महान कार्यों से सहज ही आँका जा सकता है जो उन्होंने पददलित हरिजनों और समाज के उपेक्षित व्यक्तियों के लिए किये थे । जिस हरिजनोद्धार आन्दोलन को गाँधीजी ने आगे बढ़ाया उसके जन्मदाता लाला लाजपतराय ही थे l '
लालाजी ने दीन-दुःखियों की क्या सेवा की इसका लेखा - जोखा कोई लेना चाहे तो पंजाब के तात्कालिक अनाथालयों और आश्रय -भवनों की गणना कर ले जो उनके लिए बनवाये थे और यदि उस समय का कोई बड़ा - बूढ़ा मिल जाये तो उससे पूछकर अनुमान लगा लें कि वे कितने क्षुधार्त बंधुओं को ईसाई मिशनरियों के जाल से निकाल कर पंजाब लाये थे और उनके सहायता कोष के लिए फैली हुई उनकी झोली कितनी बार भरी और खाली हुई थी l
उनकी दयालुता और दानवीरता उनकी निष्काम सेवा भावना की परिचायक है l उड़ीसा और मध्य प्रदेश के दुर्भिक्ष पीड़ितों की भोजन व्यवस्था , कांगड़ा के भूकंप के घायलों की दवा-दारु और महाराष्ट्र की महामारी के मारे हुए लोगों की सेवा - सुश्रूषा करने में उन्होंने दिन -रात एक कर दिया l इस कार्य में उन्होंने कितने दिन लगाये और कितनी रातें बिना सोये बिताईं इसकी संख्या तो वही दुःखी आत्माएं ही बता सकतीं हैं जिनको उन्होंने सुख दिया ।
इतनी लोक - सेवा साधना करने के बाद लालाजी एक तपस्वी का तेज लेकर कांग्रेस के माध्यम से विदेशी शासन की जड़ उखाड़ने के लिए राजनीति मे उतरे । लालाजी के प्रवेश से कांग्रेस में नवजीवन का संचार हुआ और उनकी ओजस्विता से जनता भी जागने लगी । अब लालाजी अंग्रेजी शासन की आँख के कंटक बन गये ।
जब वे साइमन कमीशन की बहिष्कार सभा में बोल रहे थे तब कप्तान सेंडर्स की आज्ञा से पुलिस उन पर लाठियों से प्रहार कर रही थी l लालाजी प्रहार सहन करते हुए एक भाव से बोलते रहे और जब तक उनका भाषण समाप्त नहीं हो गया वे विचलित नहीं हुए | उनके अंतिम शब्द थे -----
" मेरे शरीर पर लाठी का एक - एक प्रहार ब्रिटिश शासन के कफन की एक - एक कील सिद्ध
होगा ।" यह कहते हुए वे गिरकर मूर्छित हो गये । "
वास्तव में हुआ भी वैसा ही । लालाजी के बलिदान से पंजाब ही क्या सारे भारत में क्रांति की ज्वाला इस प्रचंड रूप से धधकी कि आखिर ब्रिटिश हुकूमत उसमे जलकर खाक ही हो गई l
लाला लाजपतराय स्वदेश व समाज की सेवा करके तथा देश की बलि - वेदी पर उत्सर्ग होकर भारत के इतिहास में सदा के लिए अमर हो गये l
लालाजी ने दीन-दुःखियों की क्या सेवा की इसका लेखा - जोखा कोई लेना चाहे तो पंजाब के तात्कालिक अनाथालयों और आश्रय -भवनों की गणना कर ले जो उनके लिए बनवाये थे और यदि उस समय का कोई बड़ा - बूढ़ा मिल जाये तो उससे पूछकर अनुमान लगा लें कि वे कितने क्षुधार्त बंधुओं को ईसाई मिशनरियों के जाल से निकाल कर पंजाब लाये थे और उनके सहायता कोष के लिए फैली हुई उनकी झोली कितनी बार भरी और खाली हुई थी l
उनकी दयालुता और दानवीरता उनकी निष्काम सेवा भावना की परिचायक है l उड़ीसा और मध्य प्रदेश के दुर्भिक्ष पीड़ितों की भोजन व्यवस्था , कांगड़ा के भूकंप के घायलों की दवा-दारु और महाराष्ट्र की महामारी के मारे हुए लोगों की सेवा - सुश्रूषा करने में उन्होंने दिन -रात एक कर दिया l इस कार्य में उन्होंने कितने दिन लगाये और कितनी रातें बिना सोये बिताईं इसकी संख्या तो वही दुःखी आत्माएं ही बता सकतीं हैं जिनको उन्होंने सुख दिया ।
इतनी लोक - सेवा साधना करने के बाद लालाजी एक तपस्वी का तेज लेकर कांग्रेस के माध्यम से विदेशी शासन की जड़ उखाड़ने के लिए राजनीति मे उतरे । लालाजी के प्रवेश से कांग्रेस में नवजीवन का संचार हुआ और उनकी ओजस्विता से जनता भी जागने लगी । अब लालाजी अंग्रेजी शासन की आँख के कंटक बन गये ।
जब वे साइमन कमीशन की बहिष्कार सभा में बोल रहे थे तब कप्तान सेंडर्स की आज्ञा से पुलिस उन पर लाठियों से प्रहार कर रही थी l लालाजी प्रहार सहन करते हुए एक भाव से बोलते रहे और जब तक उनका भाषण समाप्त नहीं हो गया वे विचलित नहीं हुए | उनके अंतिम शब्द थे -----
" मेरे शरीर पर लाठी का एक - एक प्रहार ब्रिटिश शासन के कफन की एक - एक कील सिद्ध
होगा ।" यह कहते हुए वे गिरकर मूर्छित हो गये । "
वास्तव में हुआ भी वैसा ही । लालाजी के बलिदान से पंजाब ही क्या सारे भारत में क्रांति की ज्वाला इस प्रचंड रूप से धधकी कि आखिर ब्रिटिश हुकूमत उसमे जलकर खाक ही हो गई l
लाला लाजपतराय स्वदेश व समाज की सेवा करके तथा देश की बलि - वेदी पर उत्सर्ग होकर भारत के इतिहास में सदा के लिए अमर हो गये l
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