' व्यक्ति जब आत्म - निरीक्षण करता है , अपने दोषों को मार भगाने का प्रयास करता है , तो साधारण सा मनुष्य असाधारण महत्व के कार्य संपन्न करने लगता है । '
मनुष्य के पतन - उत्थान की कहानी अजीजन कह गई ।
रूप के हाट पर बैठी अजीजन के अंत:करण से आवाज आई ---- " इस हाट पर बैठकर रोज - रोज मरने की अपेक्षा एक दिन ही मरना अच्छा है । यह व्यापार छोड़, देश की आन पर मर मिट ।'
उन दिनों देश -प्रेम की चिनगारी दावानल बनकर सारे भारत में फैल चुकी थी , कानपुर तो इस क्रांति का केंद्र था । अजीजन ने अपने अन्दर बैठे देवता की आवाज को सुना और उठ खड़ी हुई । उसने स्त्रियों का एक दल संगठित किया और यह दल पुरुष वेश में हाथों में तलवार लिए कानपुर के राजमार्ग पर निकल पड़ा । इस महिला सैनिक दल ने घर -घर क्रांति का सन्देश पहुँचाया , घायल सैनिकों की सेवा - सुश्रूषा की । अजीजन के नेत्रत्व में वीरांगनाओं का दल गोला - बारूद सैनिकों के पास पहुंचता तथा समय पड़ने पर स्वयं भी युद्ध में भाग लेता । तबले की ताल पर थिरकने वाली अजीजन आज नारी शक्ति का प्रतीक बन गई । सबके ह्रदय में उसके प्रति श्रद्धा का सागर लहराने लगा ।
जनरल नील कानपुर में हुई हार को सुनकर बौखला उठा और अपनी सेना के साथ गाँव के गाँव जलाकर खाक करता हुआ आ रहा है | यह सुनकर अजीजन का बदला लेने का संकल्प और भी दृढ़ हो गया । युद्ध क्षेत्र में अजीजन पूरी वीरता से लड़ी पर दुर्भाग्य से अंग्रेजों ने उसे बंदी बना लिया ।
सेनापति हेवलाक कोस के सामने अजीजन को लाया गया तो उसे विश्वास ही नहीं हुआ कि यह स्त्री भी युद्ध में भाग ले सकती है l उसने अजीजन से कहा --- ' यदि तुम अपने अपराधों के लिए क्षमा मांग लो तो तुम मृत्यु दंड से बच सकती हो । "
उसने कहा --- ' वह अजीजन तो मर गई जो मौत से डरती थी और पेट भरने के लिए घ्रणित व्यवसाय करती थी , पर आज मैंने जीना सीख लिया , मृत्यु तो एक दिन आयेगी ही । '
सेनापति हेवलाक उसकी निर्भीकता देखता ही रह गया | अजीजन बोली --- ' मैं आततायी से क्षमा नहीं मांगती । मैं अंग्रेजी कुशासन का अंत चाहती हूँ । "
सेनापति का इशारा पाते ही बन्दूकें गरज उठीं । अपनी आत्मा की आवाज को सुनकर उठ खड़ी होने वाली अजीजन अमर हो गई ।
मनुष्य के पतन - उत्थान की कहानी अजीजन कह गई ।
रूप के हाट पर बैठी अजीजन के अंत:करण से आवाज आई ---- " इस हाट पर बैठकर रोज - रोज मरने की अपेक्षा एक दिन ही मरना अच्छा है । यह व्यापार छोड़, देश की आन पर मर मिट ।'
उन दिनों देश -प्रेम की चिनगारी दावानल बनकर सारे भारत में फैल चुकी थी , कानपुर तो इस क्रांति का केंद्र था । अजीजन ने अपने अन्दर बैठे देवता की आवाज को सुना और उठ खड़ी हुई । उसने स्त्रियों का एक दल संगठित किया और यह दल पुरुष वेश में हाथों में तलवार लिए कानपुर के राजमार्ग पर निकल पड़ा । इस महिला सैनिक दल ने घर -घर क्रांति का सन्देश पहुँचाया , घायल सैनिकों की सेवा - सुश्रूषा की । अजीजन के नेत्रत्व में वीरांगनाओं का दल गोला - बारूद सैनिकों के पास पहुंचता तथा समय पड़ने पर स्वयं भी युद्ध में भाग लेता । तबले की ताल पर थिरकने वाली अजीजन आज नारी शक्ति का प्रतीक बन गई । सबके ह्रदय में उसके प्रति श्रद्धा का सागर लहराने लगा ।
जनरल नील कानपुर में हुई हार को सुनकर बौखला उठा और अपनी सेना के साथ गाँव के गाँव जलाकर खाक करता हुआ आ रहा है | यह सुनकर अजीजन का बदला लेने का संकल्प और भी दृढ़ हो गया । युद्ध क्षेत्र में अजीजन पूरी वीरता से लड़ी पर दुर्भाग्य से अंग्रेजों ने उसे बंदी बना लिया ।
सेनापति हेवलाक कोस के सामने अजीजन को लाया गया तो उसे विश्वास ही नहीं हुआ कि यह स्त्री भी युद्ध में भाग ले सकती है l उसने अजीजन से कहा --- ' यदि तुम अपने अपराधों के लिए क्षमा मांग लो तो तुम मृत्यु दंड से बच सकती हो । "
उसने कहा --- ' वह अजीजन तो मर गई जो मौत से डरती थी और पेट भरने के लिए घ्रणित व्यवसाय करती थी , पर आज मैंने जीना सीख लिया , मृत्यु तो एक दिन आयेगी ही । '
सेनापति हेवलाक उसकी निर्भीकता देखता ही रह गया | अजीजन बोली --- ' मैं आततायी से क्षमा नहीं मांगती । मैं अंग्रेजी कुशासन का अंत चाहती हूँ । "
सेनापति का इशारा पाते ही बन्दूकें गरज उठीं । अपनी आत्मा की आवाज को सुनकर उठ खड़ी होने वाली अजीजन अमर हो गई ।
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