' ठाकुर रोशनसिंह जिन्होंने अपने जीवन के उत्तरार्द्ध में अपने कालिमायुक्त पूर्वाद्ध को पूरी तरह धो -पोंछ दिया था | पं. रामप्रसाद बिस्मिल ने उन्हें सदाचरण और धर्माचरण का पाठ पढ़ाया । उनके मन पर कुसंग और अनिष्टकारी वातावरण में रहने के कारण जो कुसंस्कार पड़ गये थे वे धीरे - धीरे धुलने लगे । हवन , पूजा उपासना , स्वाध्याय और चिंतन - मनन द्वारा उनके मन - मस्तिष्क में ज्ञानलोक फैलने लगा । काकोरी काण्ड में उन्हें फाँसी की सजा हुई थी ।
पूरे आठ महीने वे फाँसी घर में रहे । वहाँ उनकी नियमित दिनचर्या थी ---- प्रात: चार बजे उठना, फिर शौच , व्यायाम , स्नान , उपासना , हवन इसके बाद हिन्दी , उर्दू साहित्य और धार्मिक पुस्तकों का स्वाध्याय । जीवन के एक - एक क्षण का सावधानी से उपयोग किया । फिर उन्होंने बंगला भाषा सीखी और जब बंगला साहित्य पढ़ने लगे तो एक अभियुक्त ने पूछा ---- ठाकुर साहब ! अब नयी भाषा सीखकर क्या करोगे ? अब तो आपको फांसी पर चढ़ना है ? "
उन्होंने जवाब दिया ---- " भाई जब तक जीवित हैं , सांस चलने के साथ कर्म भी चलते रहना चाहिए इस जन्म में इसका लाभ नहीं मिल सकेगा यह सोचकर कर्म ही न करना बहुत बड़ी भूल होगी । इस जन्म में न सही अगले जन्म में तो उसका लाभ मिलेगा और फिर आज ही तो फांसी नहीं होने वाली , तब तक इनसे बहुत कुछ लाभ उठाया जा सकता है । "
पूरे आठ महीने वे फाँसी घर में रहे । वहाँ उनकी नियमित दिनचर्या थी ---- प्रात: चार बजे उठना, फिर शौच , व्यायाम , स्नान , उपासना , हवन इसके बाद हिन्दी , उर्दू साहित्य और धार्मिक पुस्तकों का स्वाध्याय । जीवन के एक - एक क्षण का सावधानी से उपयोग किया । फिर उन्होंने बंगला भाषा सीखी और जब बंगला साहित्य पढ़ने लगे तो एक अभियुक्त ने पूछा ---- ठाकुर साहब ! अब नयी भाषा सीखकर क्या करोगे ? अब तो आपको फांसी पर चढ़ना है ? "
उन्होंने जवाब दिया ---- " भाई जब तक जीवित हैं , सांस चलने के साथ कर्म भी चलते रहना चाहिए इस जन्म में इसका लाभ नहीं मिल सकेगा यह सोचकर कर्म ही न करना बहुत बड़ी भूल होगी । इस जन्म में न सही अगले जन्म में तो उसका लाभ मिलेगा और फिर आज ही तो फांसी नहीं होने वाली , तब तक इनसे बहुत कुछ लाभ उठाया जा सकता है । "
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