' उनके धर्म का ध्येय मोक्ष अथवा निर्वाण न होकर मानवता की सेवा मात्र था , जिसको वे जीवन भर सच्चाई के साथ निभाते हुए एक दिन उसी मार्ग पर चलते - चलते परम तत्व में विलीन हो गये | '
मालवीयजी नेताओं के विषमतापूर्ण व्यवहार पर आँसू बहाते हुए कहा करते थे ------- " यह कितनी बड़ी विडम्बना है कि देश के नेता जनता से दूर सजे हुए बंगलों और वातानुकूल कोठियों में बैठकर उसकी गरीबी पर विचार - विमर्श करते हैं , सोफों पर पड़े - पड़े उसका उपाय सोचा करते हैं । अपने चांदी जैसे चमकते कपड़ों को गरीबों के स्पर्श से बचाते हैं और अपने कमरों में बिछी कालीनो को किसी आगन्तुक गरीब के पैरों से मैला होने देने में संकोच करते हैं । यह कैसा नेतृत्व है , यह कैसी हिमायत है ? जिसने गरीबों का अभिशाप नहीं देखा , उनकी आहों - कराहों को नहीं सुना , वह भला गरीब जनता का नेता कैसे हो सकता है ------------ मैं भगवान से नित्य यही प्रार्थना करता हूँ कि देश को ऐसे नायक दे जो समाज की आवश्यकता , उसकी पीड़ा और परेशानी को ठीक - ठीक अनुभूत कर सकें । "
मालवीयजी नेताओं के विषमतापूर्ण व्यवहार पर आँसू बहाते हुए कहा करते थे ------- " यह कितनी बड़ी विडम्बना है कि देश के नेता जनता से दूर सजे हुए बंगलों और वातानुकूल कोठियों में बैठकर उसकी गरीबी पर विचार - विमर्श करते हैं , सोफों पर पड़े - पड़े उसका उपाय सोचा करते हैं । अपने चांदी जैसे चमकते कपड़ों को गरीबों के स्पर्श से बचाते हैं और अपने कमरों में बिछी कालीनो को किसी आगन्तुक गरीब के पैरों से मैला होने देने में संकोच करते हैं । यह कैसा नेतृत्व है , यह कैसी हिमायत है ? जिसने गरीबों का अभिशाप नहीं देखा , उनकी आहों - कराहों को नहीं सुना , वह भला गरीब जनता का नेता कैसे हो सकता है ------------ मैं भगवान से नित्य यही प्रार्थना करता हूँ कि देश को ऐसे नायक दे जो समाज की आवश्यकता , उसकी पीड़ा और परेशानी को ठीक - ठीक अनुभूत कर सकें । "
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