' मनुष्य अपनी दीन - हीन दशा से समझौता नहीं कर ले और एक - एक कदम प्रगति के पथ पर बढ़ाता रहे तो उसे उसका लक्ष्य मिल ही जाता है | '
पूना के दैनिक ' प्रभात ' के संपादक के रूप में श्री माधव खण्डकर को नियुक्ति प्रदान की गई ।
37 वर्ष की आयु के श्री खण्डकर तेईस वर्ष पूर्व इसी पत्र के कार्यालय में चौकीदार के स्थान पर नियुक्त किये गये थे | यह मनुष्य की संकल्प शक्ति , महत्वाकांक्षा , कर्मनिष्ठा, धैर्य तथा ईमानदारी का सराहनीय तथा अनुकरणीय उदाहरण है ।
चौदह वर्ष की आयु के किशोर माधव को अपनी दुर्बल आर्थिक स्थिति के कारण सांतवी पास करते ही नौकरी करने के लिए विवश होना पड़ा । वे पूना से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र दैनिक ' प्रभात ' के संपादक श्री बालचंद्र कोठारी के पास जा पहुंचे l किशोर की तथ्यपूर्ण बातों से प्रभावित होकर उन्होंने उसे अपने समाचार पत्र के कार्यालय में चौकीदार नियुक्त कर दिया । रात्रि में चौकीदारी का काम पूरी तत्परता से करते और दिन में पाठशाला जाते तथा प्रेस व पत्र के दूसरे कार्यों को सीखने की गरज से बड़ी जिज्ञासा पुर्ण द्रष्टि से देखा करते ।
मालिक उसकी इस जिज्ञासा वृति से बड़े प्रसन्न हुए अत: उसे दूसरे कार्यों में लगा दिया । सबसे पहले वे कम्पोजीटर बनाये गये थे फिर प्रूफरीडर बने और बाद में उन्होंने प्रेस तथा पत्र संपादन के हर विभाग में दायित्व-पूर्ण पदों पर कार्य किया । पत्र के मालिक उनकी प्रतिभा के ही नहीं सज्जनता , ईमानदारी और विनम्र व्यवहार के भी कायल थे ।
नौकरी करते हुए ही उन्होंने बी , ए. की डिग्री प्राप्त कर ली अब वे श्री कोठारी के दाहिने हाथ हो गये और सहायक - संपादक का कार्य करने लगे । प्रतिभा वस्तुत: कोई ईश्वरीय देन नहीं होती ,वह तो मनुष्य की अपनी जिज्ञासा , अपनी कर्मनिष्ठा, लगन व तत्परता के संयोजन का ही एक रूप होती है , जो दिन - दिन अभ्यास के द्वारा विकसित होती जाती है ।
अप्रैल 1973 में श्री कोठारी अपने पद से निवृत हो गये । अपने स्थान पर उन्होंने माधव खण्डकर की नियुक्ति कर दी ।
पूना के दैनिक ' प्रभात ' के संपादक के रूप में श्री माधव खण्डकर को नियुक्ति प्रदान की गई ।
37 वर्ष की आयु के श्री खण्डकर तेईस वर्ष पूर्व इसी पत्र के कार्यालय में चौकीदार के स्थान पर नियुक्त किये गये थे | यह मनुष्य की संकल्प शक्ति , महत्वाकांक्षा , कर्मनिष्ठा, धैर्य तथा ईमानदारी का सराहनीय तथा अनुकरणीय उदाहरण है ।
चौदह वर्ष की आयु के किशोर माधव को अपनी दुर्बल आर्थिक स्थिति के कारण सांतवी पास करते ही नौकरी करने के लिए विवश होना पड़ा । वे पूना से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र दैनिक ' प्रभात ' के संपादक श्री बालचंद्र कोठारी के पास जा पहुंचे l किशोर की तथ्यपूर्ण बातों से प्रभावित होकर उन्होंने उसे अपने समाचार पत्र के कार्यालय में चौकीदार नियुक्त कर दिया । रात्रि में चौकीदारी का काम पूरी तत्परता से करते और दिन में पाठशाला जाते तथा प्रेस व पत्र के दूसरे कार्यों को सीखने की गरज से बड़ी जिज्ञासा पुर्ण द्रष्टि से देखा करते ।
मालिक उसकी इस जिज्ञासा वृति से बड़े प्रसन्न हुए अत: उसे दूसरे कार्यों में लगा दिया । सबसे पहले वे कम्पोजीटर बनाये गये थे फिर प्रूफरीडर बने और बाद में उन्होंने प्रेस तथा पत्र संपादन के हर विभाग में दायित्व-पूर्ण पदों पर कार्य किया । पत्र के मालिक उनकी प्रतिभा के ही नहीं सज्जनता , ईमानदारी और विनम्र व्यवहार के भी कायल थे ।
नौकरी करते हुए ही उन्होंने बी , ए. की डिग्री प्राप्त कर ली अब वे श्री कोठारी के दाहिने हाथ हो गये और सहायक - संपादक का कार्य करने लगे । प्रतिभा वस्तुत: कोई ईश्वरीय देन नहीं होती ,वह तो मनुष्य की अपनी जिज्ञासा , अपनी कर्मनिष्ठा, लगन व तत्परता के संयोजन का ही एक रूप होती है , जो दिन - दिन अभ्यास के द्वारा विकसित होती जाती है ।
अप्रैल 1973 में श्री कोठारी अपने पद से निवृत हो गये । अपने स्थान पर उन्होंने माधव खण्डकर की नियुक्ति कर दी ।
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