शास्त्री जी का कहना था --- " जो स्वावलंबन और आत्मविश्वास के साथ बढ़ता है , उसकी योग्यता , द्रढ़ता , कर्मठता , साहस और कर्तव्य भावना अदम्य होती है । "
उन्होंने कहा --- " फूल कहीं भी हो वह खिलेगा ही । बगीचे में हो , जंगल में हो या कमरे में , बिना खिले उसे मुक्ति नहीं । बगीचे का फूल पालतू फूल है , उसकी चिंता उसे स्वयं नहीं रहती |
जंगल का फूल इतना चिंतामुक्त नहीं है , उसे अपना पोषण आप जुटाना पड़ता है , अपना निखार आप करना पड़ता है । कहते हैं कि इसीलिए खिलता भी वह मन्दगति से है । सौरभ भी धीरे - धीरे बिखेरता है । किन्तु उसकी सुगंध बड़ी तीखी होती है , काफी दूर तक वह अपनी मंजिल तय करती है । जंगल का फूल यद्दपि अपने आकार में छोटा होता है और कई बार पूरा खिल भी नहीं पाता है तो भी अपनी सुगंध में वह दूसरे फूलों से हल्का नहीं पड़ता बजनी ही होता है । "
यह सिद्धांत मनुष्यों के विकास में भी लागू होता है । दूसरों का सहारा लेकर बहुत ऊँचे पहुँचे हुए लोगों में वह साहस व द्रढ़ता नहीं होती । सफलता की मंजिल भले ही देर से मिले , पर अपने पैरों की गई विकास यात्रा अधिक विश्बस्त होती है ।
संसार में कार्य करने के लिए स्वयं का विश्वास पात्र बनना आवश्यक है ।
उन्होंने कहा --- " फूल कहीं भी हो वह खिलेगा ही । बगीचे में हो , जंगल में हो या कमरे में , बिना खिले उसे मुक्ति नहीं । बगीचे का फूल पालतू फूल है , उसकी चिंता उसे स्वयं नहीं रहती |
जंगल का फूल इतना चिंतामुक्त नहीं है , उसे अपना पोषण आप जुटाना पड़ता है , अपना निखार आप करना पड़ता है । कहते हैं कि इसीलिए खिलता भी वह मन्दगति से है । सौरभ भी धीरे - धीरे बिखेरता है । किन्तु उसकी सुगंध बड़ी तीखी होती है , काफी दूर तक वह अपनी मंजिल तय करती है । जंगल का फूल यद्दपि अपने आकार में छोटा होता है और कई बार पूरा खिल भी नहीं पाता है तो भी अपनी सुगंध में वह दूसरे फूलों से हल्का नहीं पड़ता बजनी ही होता है । "
यह सिद्धांत मनुष्यों के विकास में भी लागू होता है । दूसरों का सहारा लेकर बहुत ऊँचे पहुँचे हुए लोगों में वह साहस व द्रढ़ता नहीं होती । सफलता की मंजिल भले ही देर से मिले , पर अपने पैरों की गई विकास यात्रा अधिक विश्बस्त होती है ।
संसार में कार्य करने के लिए स्वयं का विश्वास पात्र बनना आवश्यक है ।
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