शिवाजी ने समर्थगुरु से दीक्षा ली और संन्यास लेने की इच्छा प्रकट की । समर्थ गुरु ने उन्हें समझाया ----- " संन्यास का अर्थ संसार के कर्तव्य त्याग देना नहीं है । सच्चे संन्यास का अर्थ अपनी तृष्णा - वासना , संकीर्णता और स्वार्थपरता का परित्याग तथा नि:स्वार्थ भाव से देश - धर्म की रक्षा करना है | तुम संन्यस्त भाव से अपने राजधर्म का पालन करो , देश का उद्धार करो और
धर्म - मर्यादा की रक्षा के लिए संघर्ष करो । "
उन्होंने शिवाजी की सैन्य - शिक्षा के लिए हजारों महावीर मठों की स्थापना की और जनता को उनका सहयोग देने के लिए प्रेरित किया । समर्थगुरु अपने शिष्य शिवाजी का चरित्र उज्ज्वल रखने के लिए समय - समय पर उनकी परीक्षा लेते और उपदेश देते रहते ।
गुरु भक्त शिवाजी ने सिंहासन पर उनके खंडाऊ प्रतिष्ठित कर दिए और राज्य का ध्वज भगवा रंग में रंगवा दिया | इस प्रकार वे सारे राज्य को गुरु का समझकर एक प्रतिनिधि के रूप में राज्य करते रहे ।
धर्म - मर्यादा की रक्षा के लिए संघर्ष करो । "
उन्होंने शिवाजी की सैन्य - शिक्षा के लिए हजारों महावीर मठों की स्थापना की और जनता को उनका सहयोग देने के लिए प्रेरित किया । समर्थगुरु अपने शिष्य शिवाजी का चरित्र उज्ज्वल रखने के लिए समय - समय पर उनकी परीक्षा लेते और उपदेश देते रहते ।
गुरु भक्त शिवाजी ने सिंहासन पर उनके खंडाऊ प्रतिष्ठित कर दिए और राज्य का ध्वज भगवा रंग में रंगवा दिया | इस प्रकार वे सारे राज्य को गुरु का समझकर एक प्रतिनिधि के रूप में राज्य करते रहे ।
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