मनस्वी और शौर्य बल के धनी चर्चिल का जन्म 1874 में एक कुलीन परिवार में हुआ था ।
बात 1939 की है , हिटलर ने पोलैंड पर आक्रमण कर दिया और जर्मनी, बेल्जियम , हालैंड और फ़्रांस को रौंदता हुआ इंग्लैंड की ओर बढ़ने लगा । उस समय जनता ने चर्चिल के नेतृत्व में विश्वास व्यक्त किया , अत: 10 मई 1940 को 66 वर्ष की आयु में विंस्टन चर्चिल ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बन गये ।
उस समय इस बात की पूरी संभावना लग रही थी कि शीघ्र ही जर्मन सेनाएं इंग्लैंड की धरती पर उतर जायेंगी, लेकिन उस समय चर्चिल के चेहरे पर द्रढ़ता के भाव थे । उन्होंने बड़े आत्मविश्वास के साथ कहा ----- " हम अन्तिम दम तक लड़ेंगे । हम समुद्र तट और हवाई अड्डों पर लड़ेंगे , खेतों और खलिहानों में हम अपना बलिदान देंगे । भले हमें इंग्लैंड छोड़कर जाना पड़े तो भी हम दुनिया के किसी भी कोने में रहकर उस क्षण तक लड़ाई लड़ते रहेंगे जब तक कि हमें पूरी विजय प्राप्त न हो जाये । " यह चर्चिल का आत्मविश्वास बोल रहा था , इंग्लैंड की जनता में अभूतपूर्व मनोबल जाग गया । अपनी आवाज से जादू फूंककर चर्चिल ने सोये हुए राष्ट्र को जगा दिया ।
उन्होंने प्रधानमंत्री पद ग्रहण ही किया था लिखा है ---- ' पिछली राजनीतिक हलचलों की सनसनी पैदा कर देने वाली घटनाओं के बावजूद भी मेरी नब्ज की रफ्तार बिलकुल भी तेज नहीं हुई । मैंने सभी घटनाओं को सहज भाव से स्वीकार है ---- मुझे लगा कि मैं स्वयं नियति के साथ कदम मिलाकर चल रहा हूँ और मेरा समूचा विगत जीवन , इसी जीवन की तैयारी में बीता है । ।
दूसरे महायुद्ध में मित्र राष्ट्रों की विजय हुई , उसका अधिकांश श्रेय चर्चिल को ही दिया जाता है ।
राजनीति और साहित्य के कुशल खिलाड़ी होने के साथ - साथ वे एक अच्छे चित्रकार भी थे | उनका व्यक्तित्व अनुकरणीय है ।
बात 1939 की है , हिटलर ने पोलैंड पर आक्रमण कर दिया और जर्मनी, बेल्जियम , हालैंड और फ़्रांस को रौंदता हुआ इंग्लैंड की ओर बढ़ने लगा । उस समय जनता ने चर्चिल के नेतृत्व में विश्वास व्यक्त किया , अत: 10 मई 1940 को 66 वर्ष की आयु में विंस्टन चर्चिल ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बन गये ।
उस समय इस बात की पूरी संभावना लग रही थी कि शीघ्र ही जर्मन सेनाएं इंग्लैंड की धरती पर उतर जायेंगी, लेकिन उस समय चर्चिल के चेहरे पर द्रढ़ता के भाव थे । उन्होंने बड़े आत्मविश्वास के साथ कहा ----- " हम अन्तिम दम तक लड़ेंगे । हम समुद्र तट और हवाई अड्डों पर लड़ेंगे , खेतों और खलिहानों में हम अपना बलिदान देंगे । भले हमें इंग्लैंड छोड़कर जाना पड़े तो भी हम दुनिया के किसी भी कोने में रहकर उस क्षण तक लड़ाई लड़ते रहेंगे जब तक कि हमें पूरी विजय प्राप्त न हो जाये । " यह चर्चिल का आत्मविश्वास बोल रहा था , इंग्लैंड की जनता में अभूतपूर्व मनोबल जाग गया । अपनी आवाज से जादू फूंककर चर्चिल ने सोये हुए राष्ट्र को जगा दिया ।
उन्होंने प्रधानमंत्री पद ग्रहण ही किया था लिखा है ---- ' पिछली राजनीतिक हलचलों की सनसनी पैदा कर देने वाली घटनाओं के बावजूद भी मेरी नब्ज की रफ्तार बिलकुल भी तेज नहीं हुई । मैंने सभी घटनाओं को सहज भाव से स्वीकार है ---- मुझे लगा कि मैं स्वयं नियति के साथ कदम मिलाकर चल रहा हूँ और मेरा समूचा विगत जीवन , इसी जीवन की तैयारी में बीता है । ।
दूसरे महायुद्ध में मित्र राष्ट्रों की विजय हुई , उसका अधिकांश श्रेय चर्चिल को ही दिया जाता है ।
राजनीति और साहित्य के कुशल खिलाड़ी होने के साथ - साथ वे एक अच्छे चित्रकार भी थे | उनका व्यक्तित्व अनुकरणीय है ।
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