संसार में गाँधी जी के देहान्त होने का जितना अधिक शोक मनाया गया और सब तरह के लोगों ने इसको जिस प्रकार अपनी व्यक्तिगत हानि माना , वैसा संसार में शायद ही पहले कभी हुआ हो ।
अमेरिका के सबसे बड़े अखबार ' न्यूयार्क टाइम्स ' ने लिखा ---- " गाँधी जी अपने उत्तराधिकार स्वरुप एक ऐसी आध्यात्मिक शक्ति छोड़ गये हैं जो भगवान के निर्देशित समय पर अवश्य ही हथियारों और हिंसा की दूषित नीति पर विजय प्राप्त करेगी । "
अमेरिका के प्रसिद्ध सेनापति डागलस मैकार्थर ने कहा ----- " अगर मानव सभ्यता को जीवित रहना है , तो हमको एक दिन गाँधी जी का यह सिद्धान्त मानना ही पड़ेगा कि किसी झगड़े के निपटारे के लिए सैनिक शक्ति का प्रयोग गलत है । इस प्रकार की नीति में नाश का बीज अपने भीतर ही निहित रहता है । "
गाँधी जी की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वे जो कुछ कहते थे उसके अनुसार स्वयं भी आचरण करते थे । उन्होंने सर्वसाधारण को सत्य , अहिंसा और त्याग का उपदेश केवल मुँह से ही नहीं दिया , वरन अन्याय के विरोध और जन - कल्याण के लिए वे सदैव प्राण देने को तत्पर रहे ।
मृत्यु से पहली रात को जब वे विश्राम के लिए बिस्तर पर लेट गये थे और दो - एक अनुयायी उनके पास बैठे थे , उन्होंने कहा ---- " अगर मैं किसी बीमारी से , सामान्य फोड़े से भी मरीज होकर मरुँ , तो तुम्हारा यह कर्तव्य है कि संसार को यह बता दो कि गाँधी जी सच्चे ईश्वर भक्त नहीं थे , चाहे इससे लोग तुमसे नाराज ही क्यों न हो जाएँ । अगर तुम ऐसा करोगे तो मेरी आत्मा को शान्ति मिलेगी । साथ ही यह लिखकर रख लो कि अगर कोई गोली चलाकर मेरे जीवन का अंत कर दे और मैं उस आघात को बिना हाय - तोबा किये सह लूँ , तब भी राम नाम लेता हुआ प्राण त्यागूँ , तो यह समझना कि मैं जो दावा करता था वह सच है । "
अमेरिका के सबसे बड़े अखबार ' न्यूयार्क टाइम्स ' ने लिखा ---- " गाँधी जी अपने उत्तराधिकार स्वरुप एक ऐसी आध्यात्मिक शक्ति छोड़ गये हैं जो भगवान के निर्देशित समय पर अवश्य ही हथियारों और हिंसा की दूषित नीति पर विजय प्राप्त करेगी । "
अमेरिका के प्रसिद्ध सेनापति डागलस मैकार्थर ने कहा ----- " अगर मानव सभ्यता को जीवित रहना है , तो हमको एक दिन गाँधी जी का यह सिद्धान्त मानना ही पड़ेगा कि किसी झगड़े के निपटारे के लिए सैनिक शक्ति का प्रयोग गलत है । इस प्रकार की नीति में नाश का बीज अपने भीतर ही निहित रहता है । "
गाँधी जी की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वे जो कुछ कहते थे उसके अनुसार स्वयं भी आचरण करते थे । उन्होंने सर्वसाधारण को सत्य , अहिंसा और त्याग का उपदेश केवल मुँह से ही नहीं दिया , वरन अन्याय के विरोध और जन - कल्याण के लिए वे सदैव प्राण देने को तत्पर रहे ।
मृत्यु से पहली रात को जब वे विश्राम के लिए बिस्तर पर लेट गये थे और दो - एक अनुयायी उनके पास बैठे थे , उन्होंने कहा ---- " अगर मैं किसी बीमारी से , सामान्य फोड़े से भी मरीज होकर मरुँ , तो तुम्हारा यह कर्तव्य है कि संसार को यह बता दो कि गाँधी जी सच्चे ईश्वर भक्त नहीं थे , चाहे इससे लोग तुमसे नाराज ही क्यों न हो जाएँ । अगर तुम ऐसा करोगे तो मेरी आत्मा को शान्ति मिलेगी । साथ ही यह लिखकर रख लो कि अगर कोई गोली चलाकर मेरे जीवन का अंत कर दे और मैं उस आघात को बिना हाय - तोबा किये सह लूँ , तब भी राम नाम लेता हुआ प्राण त्यागूँ , तो यह समझना कि मैं जो दावा करता था वह सच है । "
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