वेदविद्दा के प्रख्यात विद्वान आचार्य विश्वबंधु ने स्वामी विश्वेश्वरानंद द्वारा आरम्भ किये गये वैदिक शब्द - कोष को पूरा किया । ग्यारह हजार पृष्ठों के इस शब्द - कोष का अधिकांश भाग उन्होंने रचा था । यह विश्व में वेदों का सबसे प्रमाणिक शब्द - कोष माना जाता है ।
होशियारपुर पंजाब के विश्वेश्वरानंद वैदिक - अनुसन्धान संस्थान और संस्कृत तथा भारतीय विद्दाओं के विश्वेश्वरानंद संस्थान के निदेशक के रूप में भारतीय धर्म और संस्कृति की उन्होंने जो सेवा की , उसने उनकी कीर्ति को अमर कर दिया ।
शोध - संस्थान की आर्थिक स्थिति को देखते हुए उन्होंने संस्थान पर भार बनने की अपेक्षा नि:स्वार्थ भाव से काम करते रहना ही श्रेयस्कर समझा । उन्होंने अपनी पैतृक सम्पदा से कम्पनी के कुछ शेयर खरीद लिए थे उन्ही के लाभांश से वे अपना खर्च चलाया करते थे ।
उन्होंने अपने जीवन का एक ही लक्ष्य रखा --- वेदों पर अनुसन्धान , अध्ययन और संस्कृत के दुर्लभ ग्रंथों का प्रकाशन । यह उन्ही की निष्ठां व श्रम का परिणाम था कि विश्वेश्वरानंद शोध संस्थान द्वारा प्रकाशित प्रत्येक ग्रन्थ प्रमाणिक माना गया , सम्मानित किया गया । फ़्रांस और इटली की सरकार ने भी उन्हें सम्मानित किया ।
होशियारपुर पंजाब के विश्वेश्वरानंद वैदिक - अनुसन्धान संस्थान और संस्कृत तथा भारतीय विद्दाओं के विश्वेश्वरानंद संस्थान के निदेशक के रूप में भारतीय धर्म और संस्कृति की उन्होंने जो सेवा की , उसने उनकी कीर्ति को अमर कर दिया ।
शोध - संस्थान की आर्थिक स्थिति को देखते हुए उन्होंने संस्थान पर भार बनने की अपेक्षा नि:स्वार्थ भाव से काम करते रहना ही श्रेयस्कर समझा । उन्होंने अपनी पैतृक सम्पदा से कम्पनी के कुछ शेयर खरीद लिए थे उन्ही के लाभांश से वे अपना खर्च चलाया करते थे ।
उन्होंने अपने जीवन का एक ही लक्ष्य रखा --- वेदों पर अनुसन्धान , अध्ययन और संस्कृत के दुर्लभ ग्रंथों का प्रकाशन । यह उन्ही की निष्ठां व श्रम का परिणाम था कि विश्वेश्वरानंद शोध संस्थान द्वारा प्रकाशित प्रत्येक ग्रन्थ प्रमाणिक माना गया , सम्मानित किया गया । फ़्रांस और इटली की सरकार ने भी उन्हें सम्मानित किया ।
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