' कला जगत में प्रतिष्ठा उन्ही को प्राप्त होती है जो इस साधना को व्यवसाय , धन्धा और उपकरण नहीं लोकसेवा का साधन , आराधना और ध्येय मानते हैं । ' काका साहब ने 26 वर्ष के कार्यकाल में कुल 15 नाटक लिखे , इन नाटकों ने ही उन्हें अमर बना दिया
काका साहब खाडिलकर ( जन्म 1872 ) को इस क्षेत्र में इसी कारण आशातीत सफलता मिली कि उन्होंने जीवन - धर्म का मर्म समझा था । जनता ने जब उनकी साधना का प्रभाव ग्रहण किया तो उनके पास पैसा बरसने लगा , उन्होंने उस पैसे को बटोरा नहीं । उन्होंने अर्जित समस्त धनराशि को लोकमंगल के लिए और देशभक्त क्रांतिकारियों के निर्माण और उनकी आवश्यकता को पूरा करने में लगाया ।
काका साहब ने राजनीति में प्रवेश किया और लोकमान्य तिलक के निष्ठावान अनुयायी बन गये । लोकमान्य तिलक जब काका साहब की साहित्यिक प्रतिभा से परिचित हुए तो उन्होंने इस प्रतिभा को जन - जाग्रति में लगाने की प्रेरणा दी । काका साहब ने रंगमंच कला का अध्ययन किया और अपनी प्रतिभा से ऐसे नाटकों का सृजन किया जिनमे मनोरंजन के साथ जन - जाग्रति की प्रेरणा होती थी , जिनका प्रभाव स्थायी और दर्शकों को झकझोर देने वाला होता था ।
उनका प्रारम्भिक नाटक ' कीचक वध ' बहुत लोकप्रिय हुआ । वायसराय कर्जन को क्रूरकर्मी - कीचक के रूप में अंकित कर उन्होंने दर्शकों की भावनाओं को उभारा था । इस नाटक का प्रभाव इतना अधिक हुआ था कि उस समय की अंग्रेज सरकार को इस पर प्रतिबन्ध लगाना पड़ा था ।
यह प्रतिबन्ध उनकी ख्याति और सफलता बढ़ाने में सहायक सिद्ध हुआ । उनके वृतकारों ने लिखा है --- " काका साहब कला को लोकमंगल का एक साधन - साध्य सिद्ध करने वाले कलाकार थे । आज उनकी और अधिक आवश्यकता है ।
काका साहब खाडिलकर ( जन्म 1872 ) को इस क्षेत्र में इसी कारण आशातीत सफलता मिली कि उन्होंने जीवन - धर्म का मर्म समझा था । जनता ने जब उनकी साधना का प्रभाव ग्रहण किया तो उनके पास पैसा बरसने लगा , उन्होंने उस पैसे को बटोरा नहीं । उन्होंने अर्जित समस्त धनराशि को लोकमंगल के लिए और देशभक्त क्रांतिकारियों के निर्माण और उनकी आवश्यकता को पूरा करने में लगाया ।
काका साहब ने राजनीति में प्रवेश किया और लोकमान्य तिलक के निष्ठावान अनुयायी बन गये । लोकमान्य तिलक जब काका साहब की साहित्यिक प्रतिभा से परिचित हुए तो उन्होंने इस प्रतिभा को जन - जाग्रति में लगाने की प्रेरणा दी । काका साहब ने रंगमंच कला का अध्ययन किया और अपनी प्रतिभा से ऐसे नाटकों का सृजन किया जिनमे मनोरंजन के साथ जन - जाग्रति की प्रेरणा होती थी , जिनका प्रभाव स्थायी और दर्शकों को झकझोर देने वाला होता था ।
उनका प्रारम्भिक नाटक ' कीचक वध ' बहुत लोकप्रिय हुआ । वायसराय कर्जन को क्रूरकर्मी - कीचक के रूप में अंकित कर उन्होंने दर्शकों की भावनाओं को उभारा था । इस नाटक का प्रभाव इतना अधिक हुआ था कि उस समय की अंग्रेज सरकार को इस पर प्रतिबन्ध लगाना पड़ा था ।
यह प्रतिबन्ध उनकी ख्याति और सफलता बढ़ाने में सहायक सिद्ध हुआ । उनके वृतकारों ने लिखा है --- " काका साहब कला को लोकमंगल का एक साधन - साध्य सिद्ध करने वाले कलाकार थे । आज उनकी और अधिक आवश्यकता है ।
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