' शरीर को जेल में बंद किया जा सकता है किन्तु मनुष्य की भावनाओं व विचारों पर तो पहरे बिठाये नहीं जा सकते । वह तो वहां भी कार्यरत रहती है l '
1907 - 08 में जब अंग्रेज सरकार ने तिलक पर राजद्रोह का मुकदमा चलाकर उन्हें छह साल के लिए देश निकाले का दंड दे दिया तो उन्हें बर्मा की मांडले जेल में रखा गया । जहाँ न कोई इनकी भाषा समझने वाला था और न उनसे किसी प्रकार परिचित । । सरकार के उद्देश्य को समझकर लोकमान्य ने भी अपना ध्यान सब तरफ से हटा लिया और गीता का अध्ययन आरम्भ कर दिया l छह साल में उसका एक ऐसा प्रेरणाप्रद - भाष्य तैयार किया जिससे भारतीय जनता स्वयं ही कर्तव्य पालन की प्रेरणा प्राप्त करती रह सकती थी ।
लोकमान्य का गीता - रहस्य उनके जेल से छुटकारे के बाद जब प्रकाशित हुआ तो उसका प्रचार आँधी - तूफान की तरह बढ़ा और आज कई वर्ष बीत जाने पर भी उसके महत्व में कमी नहीं आई है लोकमान्य के जीवन में धार्मिकता , सामाजिकता और राजनीतिकता का इस प्रकार समन्वय हुआ था कि वर्तमान युग में वह भारतीय जनता के लिए सबसे बड़ा आदर्श हैं l उन्होंने लिखकर और कार्यरूप में उदाहरण प्रस्तुत कर के लोगों को यही शिक्षा दी कि मनुष्य का प्रमुख धर्म यही है कि वह प्रत्येक अवस्था में कर्तव्य - पालन पर आरूढ़ रहे l वास्तविक धर्म वही है ---- जिसके द्वारा जीवन के सब अंगों का समुचित विकास हो और प्रत्येक परिस्थिति का मुकाबला करने को तैयार रहा जाये ।
1907 - 08 में जब अंग्रेज सरकार ने तिलक पर राजद्रोह का मुकदमा चलाकर उन्हें छह साल के लिए देश निकाले का दंड दे दिया तो उन्हें बर्मा की मांडले जेल में रखा गया । जहाँ न कोई इनकी भाषा समझने वाला था और न उनसे किसी प्रकार परिचित । । सरकार के उद्देश्य को समझकर लोकमान्य ने भी अपना ध्यान सब तरफ से हटा लिया और गीता का अध्ययन आरम्भ कर दिया l छह साल में उसका एक ऐसा प्रेरणाप्रद - भाष्य तैयार किया जिससे भारतीय जनता स्वयं ही कर्तव्य पालन की प्रेरणा प्राप्त करती रह सकती थी ।
लोकमान्य का गीता - रहस्य उनके जेल से छुटकारे के बाद जब प्रकाशित हुआ तो उसका प्रचार आँधी - तूफान की तरह बढ़ा और आज कई वर्ष बीत जाने पर भी उसके महत्व में कमी नहीं आई है लोकमान्य के जीवन में धार्मिकता , सामाजिकता और राजनीतिकता का इस प्रकार समन्वय हुआ था कि वर्तमान युग में वह भारतीय जनता के लिए सबसे बड़ा आदर्श हैं l उन्होंने लिखकर और कार्यरूप में उदाहरण प्रस्तुत कर के लोगों को यही शिक्षा दी कि मनुष्य का प्रमुख धर्म यही है कि वह प्रत्येक अवस्था में कर्तव्य - पालन पर आरूढ़ रहे l वास्तविक धर्म वही है ---- जिसके द्वारा जीवन के सब अंगों का समुचित विकास हो और प्रत्येक परिस्थिति का मुकाबला करने को तैयार रहा जाये ।
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