ज्योतिबा फुले का जन्म 1827 में पूना में एक माली परिवार में हुआ था । वह सबसे पहले भारतीय थे जिन्होंने इस देश में समाज सुधार और पद - दलितों के उत्थान का अभियान चलाया । उनकी सेवाओं के लिए न केवल महाराष्ट्र वरन सारा देश ही चिरकाल तक ऋणी रहेगा ।
वह एक ही बात संसार को समझा गये ----- मनुष्य के लिए समाज सेवा से बढ़कर कोई धर्म नहीं । उससे अच्छी कोई ईश्वर उपासना नहीं । जो अपने समाज को ऊँचा उठाने में अपनी योग्यताओं , शक्ति , सुख और सुविधाओं का बलिदान कर सकते हैं , वही सच्चे ईश्वर भक्त और लोकनायक हैं ।
21 वर्ष की अवस्था से ही उन्होंने स्वयं को समाज सेवा के लिए प्रस्तुत किया । सर्वप्रथम पत्नी को पढ़ाया फिर एक कन्या शाला की स्थापना । आरम्भ में तो उसका बहुत विरोध हुआ परन्तु फिर वह धूम - धाम से चलने लगी । नारी शिक्षा के विस्तार के लिए वे लगातार प्रयत्नशील रहे , अंततः सारे महाराष्ट्र में नारी शिक्षा के व्यापक प्रसार में उन्हें सफलता मिली फिर उन्होंने विधवा विवाह के प्रसार का कार्य किया ।
ज्योतिबा ने यह अनुभव किया कि जितनी भी सामाजिक बुराइयाँ हैं उनका एकमात्र कारण धार्मिक अन्धविश्वास है । जनता धर्म के वास्तविक स्वरुप को भुला बैठी है इसलिए धर्म को सुधारना आवश्यक है । इसकी पूर्ति के लिए उन्होंने ' सत्य शोधक समाज ' की स्थापना की । यह समाज भारत वर्ष में धार्मिक रूढ़िवादिताओं का पर्दाफाश करने वाली पहली संस्था थी , उसके माध्यम से ज्योतिबा ने समाज को एक नया प्रकाश दिया ।
वह एक ही बात संसार को समझा गये ----- मनुष्य के लिए समाज सेवा से बढ़कर कोई धर्म नहीं । उससे अच्छी कोई ईश्वर उपासना नहीं । जो अपने समाज को ऊँचा उठाने में अपनी योग्यताओं , शक्ति , सुख और सुविधाओं का बलिदान कर सकते हैं , वही सच्चे ईश्वर भक्त और लोकनायक हैं ।
21 वर्ष की अवस्था से ही उन्होंने स्वयं को समाज सेवा के लिए प्रस्तुत किया । सर्वप्रथम पत्नी को पढ़ाया फिर एक कन्या शाला की स्थापना । आरम्भ में तो उसका बहुत विरोध हुआ परन्तु फिर वह धूम - धाम से चलने लगी । नारी शिक्षा के विस्तार के लिए वे लगातार प्रयत्नशील रहे , अंततः सारे महाराष्ट्र में नारी शिक्षा के व्यापक प्रसार में उन्हें सफलता मिली फिर उन्होंने विधवा विवाह के प्रसार का कार्य किया ।
ज्योतिबा ने यह अनुभव किया कि जितनी भी सामाजिक बुराइयाँ हैं उनका एकमात्र कारण धार्मिक अन्धविश्वास है । जनता धर्म के वास्तविक स्वरुप को भुला बैठी है इसलिए धर्म को सुधारना आवश्यक है । इसकी पूर्ति के लिए उन्होंने ' सत्य शोधक समाज ' की स्थापना की । यह समाज भारत वर्ष में धार्मिक रूढ़िवादिताओं का पर्दाफाश करने वाली पहली संस्था थी , उसके माध्यम से ज्योतिबा ने समाज को एक नया प्रकाश दिया ।
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