वृहत भारत के विश्वकर्मा श्री विश्वेश्वरैया ने कहा था ------ "यदि आप एक अच्छे राष्ट्र की नींव रखना चाहते हैं तो उसके नागरिकों को उत्तम बनाइये । एक सफल राष्ट्र वह होता है , जिसके नागरिकों की बहुसंख्या कुशल , चरित्रवान और अपने कर्तव्य को समझने वाली हो "
उन्नीसवीं शताब्दी के अंत में वे जापान यात्रा को गये थे , वे जापान से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए lउन्होंने बताया -- जापान के टोकियो विश्वविद्यालय में शिक्षा सिद्धांतों में जो सुधार किये गये हैं , वे इस प्रकार हैं ------ नैतिक चरित्र का विकास , देश भक्ति व स्वामिभक्ति की भावना का विकास तथा अमली धन्धों के संबंध में आवश्यक ज्ञान की प्राप्ति । अनुशासन का पाठ पढ़ाने के लिए कई स्कूलों में फौजी कवायद सिखाई जाती थी । बच्चों को सदा प्रसन्नचित रखा जाता था और उन्हें नैतिकता , देशभक्ति और मानव - संबंधों की शिक्षा दी जाती थी ।
जापान में विश्वविद्यालयों के प्रोफेसर देश भक्ति की भावना से प्रेरित होकर कठोर परिश्रम करते थे और उनका जीवन बड़ा सादा होता था , वे सादा जीवन व्यतीत करते थे । '
श्री विश्वेश्वरैया का कहना था कि -----" मानव जन्म पाकर अपनी स्थिति सुधारने का प्रयत्न करना
हम मे से प्रत्येक का कर्तव्य है l, केवल मुहँ से बड़ी -बड़ी बाते कह लेने से कोई उद्देश्य पूरा नहीं हो सकता ।
उन्नीसवीं शताब्दी के अंत में वे जापान यात्रा को गये थे , वे जापान से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए lउन्होंने बताया -- जापान के टोकियो विश्वविद्यालय में शिक्षा सिद्धांतों में जो सुधार किये गये हैं , वे इस प्रकार हैं ------ नैतिक चरित्र का विकास , देश भक्ति व स्वामिभक्ति की भावना का विकास तथा अमली धन्धों के संबंध में आवश्यक ज्ञान की प्राप्ति । अनुशासन का पाठ पढ़ाने के लिए कई स्कूलों में फौजी कवायद सिखाई जाती थी । बच्चों को सदा प्रसन्नचित रखा जाता था और उन्हें नैतिकता , देशभक्ति और मानव - संबंधों की शिक्षा दी जाती थी ।
जापान में विश्वविद्यालयों के प्रोफेसर देश भक्ति की भावना से प्रेरित होकर कठोर परिश्रम करते थे और उनका जीवन बड़ा सादा होता था , वे सादा जीवन व्यतीत करते थे । '
श्री विश्वेश्वरैया का कहना था कि -----" मानव जन्म पाकर अपनी स्थिति सुधारने का प्रयत्न करना
हम मे से प्रत्येक का कर्तव्य है l, केवल मुहँ से बड़ी -बड़ी बाते कह लेने से कोई उद्देश्य पूरा नहीं हो सकता ।
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