कनाडा आज विश्व के शक्तिशाली व संपन्न राष्ट्रों में गिना जाता है । इस समृद्ध और विशाल राष्ट्र को अस्तित्व में लाने के लिए जॉन अलेक्जेण्डर मेकडोनाल्ड ने अपने धैर्य और साहस से विपत्तियों का सामना किया , अपनी राजनैतिक प्रतिभा और बुद्धि बल के सहारे आपस में झगड़ने वाले छोटे - छोटे राज्यों को संगठित किया और उन्हें संगठित करने के लिए भयंकर जोखिमों का सामना किया , जिससे उन्हें कनाडा का जनक कहा जा सकता है ।
कनाडा उन दिनों एक छोटा सा ब्रिटिश उपनिवेश भर था , जिसमे थोड़े से कीचड़ सने कस्बे, कुछ खेत व जंगल ही जंगल था । कनाडा को एकीकृत कर एक बड़ा राष्ट्र बनाने का उनका सपना था । यह सपना उनकी कोई व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा नहीं थी वरन वे इसके पीछे सम्पूर्ण कनाडा वासियों का हित देखते थे क्योंकि बिना छोटे - छोटे राज्यों के एक हुए इस प्रदेश का कुछ भी भविष्य नहीं था । मेकडोनाल्ड और जार्ज ब्राउन दोनों ने मिलकर ब्रिटिश उपनिवेशों के एकीकरण के प्रयास आरम्भ कर दिए । महीनों के भाषणों , राजनीतिक समझौतों और प्रचार के बाद 1864 में यह निश्चित हुआ कि सब उपनिवेश मिल जायें ।
इसके लिए मेकडोनाल्ड को क्या - क्या नहीं करना पड़ा ? किन्तु यह सब उन्होंने अपने लिए नहीं सभी उपनिवेशों के हित के लिए किया । अपने इस आचरण द्वारा मेकडोनाल्ड ने यह आदर्श प्रस्तुत किया है कि राजनीतिक दांवपेंच भी किसी सदुद्देश्य के लिए काम में लाये जाने चाहिए , न कि व्यक्तिगत स्वार्थ साधना के लिए ।
1 जुलाई 1867 को ओटावा में नये संघ राज्य कनाडा की स्थापना हुई । मेकडोनाल्ड इसके प्रधानमंत्री बने । अभी तक इसमें केवल चार राज्य सम्मिलित हुए थे । ब्रिटिश कोलम्बिया नामक समृद्ध उपनिवेश को इसमें और मिलना बाकी था । इसके लिए मेकडोनाल्ड ने अटलांटिक से प्रशांत महासागर तक कनाडियन पैसिफिक रेलवे लाइन निर्माण की शर्त पर समझौता किया । जो बहुत भारी पड़ता था । मार्ग में बड़ी - बड़ी झीलें , , दलदल और रॉकी पर्वत जैसी बाधाएं खड़ी थीं , पर अपने धैर्य और साहस के सहारे मेक डोनाल्ड अपने स्वप्न को सत्य करके रहे । इसके लिए उन्हें अपना प्रधानमंत्री पद भी दाँव पर लगाना पड़ा किन्तु कनाडियन पैसिफिक रेलवे निर्मित हुई ।
इस रेलवे लाइन निर्माण को लेकर जितनी दिक्कतें व विरोध सहने पड़े , जितना अधिक काम करना पड़ा उसे उनकी दुर्बल काया सह नहीं सकी । 1885 में इस रेलवे लाइन के बन जाने के कुछ ही दिनों बाद उनकी मृत्यु हो गई ।
कनाडा का निर्माता अपने उस स्वप्न को साकार कर गया जो नितांत असंभव लगता था ।
मेकडोनाल्ड के जीवन की यह कहानी मानवीय कर्तव्य की अनूठी मिसाल है ।
कनाडा उन दिनों एक छोटा सा ब्रिटिश उपनिवेश भर था , जिसमे थोड़े से कीचड़ सने कस्बे, कुछ खेत व जंगल ही जंगल था । कनाडा को एकीकृत कर एक बड़ा राष्ट्र बनाने का उनका सपना था । यह सपना उनकी कोई व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा नहीं थी वरन वे इसके पीछे सम्पूर्ण कनाडा वासियों का हित देखते थे क्योंकि बिना छोटे - छोटे राज्यों के एक हुए इस प्रदेश का कुछ भी भविष्य नहीं था । मेकडोनाल्ड और जार्ज ब्राउन दोनों ने मिलकर ब्रिटिश उपनिवेशों के एकीकरण के प्रयास आरम्भ कर दिए । महीनों के भाषणों , राजनीतिक समझौतों और प्रचार के बाद 1864 में यह निश्चित हुआ कि सब उपनिवेश मिल जायें ।
इसके लिए मेकडोनाल्ड को क्या - क्या नहीं करना पड़ा ? किन्तु यह सब उन्होंने अपने लिए नहीं सभी उपनिवेशों के हित के लिए किया । अपने इस आचरण द्वारा मेकडोनाल्ड ने यह आदर्श प्रस्तुत किया है कि राजनीतिक दांवपेंच भी किसी सदुद्देश्य के लिए काम में लाये जाने चाहिए , न कि व्यक्तिगत स्वार्थ साधना के लिए ।
1 जुलाई 1867 को ओटावा में नये संघ राज्य कनाडा की स्थापना हुई । मेकडोनाल्ड इसके प्रधानमंत्री बने । अभी तक इसमें केवल चार राज्य सम्मिलित हुए थे । ब्रिटिश कोलम्बिया नामक समृद्ध उपनिवेश को इसमें और मिलना बाकी था । इसके लिए मेकडोनाल्ड ने अटलांटिक से प्रशांत महासागर तक कनाडियन पैसिफिक रेलवे लाइन निर्माण की शर्त पर समझौता किया । जो बहुत भारी पड़ता था । मार्ग में बड़ी - बड़ी झीलें , , दलदल और रॉकी पर्वत जैसी बाधाएं खड़ी थीं , पर अपने धैर्य और साहस के सहारे मेक डोनाल्ड अपने स्वप्न को सत्य करके रहे । इसके लिए उन्हें अपना प्रधानमंत्री पद भी दाँव पर लगाना पड़ा किन्तु कनाडियन पैसिफिक रेलवे निर्मित हुई ।
इस रेलवे लाइन निर्माण को लेकर जितनी दिक्कतें व विरोध सहने पड़े , जितना अधिक काम करना पड़ा उसे उनकी दुर्बल काया सह नहीं सकी । 1885 में इस रेलवे लाइन के बन जाने के कुछ ही दिनों बाद उनकी मृत्यु हो गई ।
कनाडा का निर्माता अपने उस स्वप्न को साकार कर गया जो नितांत असंभव लगता था ।
मेकडोनाल्ड के जीवन की यह कहानी मानवीय कर्तव्य की अनूठी मिसाल है ।
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