बात उन दिनों की है जब अमेरिका में गोरों द्वारा नीग्रो लोगों से बहुत बुरा व्यवहार किया जाता था । उन्ही दिनों श्री फ्रेडरिक डगलस प्रान्तीय शासन परिषद् के सदस्य थे । वे नीग्रो थे और बड़े सज्जन व्यक्ति थे ।
एक बार जब वे रेल में यात्रा कर रहे थे तो कर्मचारियों ने रंग - भेद के कारण उनको मुसाफिरों के डिब्बे में से उतारकर पार्सल के डिब्बे में बैठने के लिए कहा । उन्होंने वैसा ही किया ।
कुछ देर पश्चात कुछ गोरे यात्री उस पार्सल के डिब्बे में आकर उन्हें आश्वासन देने लगे । एक ने कहा ---- " श्रीमान डगलस ! मुझे अफ़सोस है कि आपको इस प्रकार नीचा दिखाया गया । "
डगलस एक वाक्य पर तनकर खड़े हो गये और कहा ----- " वे फ्रेडरिक डगलस को कभी नीचा नहीं दिखा सकते । मेरे भीतर जो आत्मा है उसे कोई हीन नहीं बना सकता । इसलिए इस व्यवहार से मैं नीचा नहीं हुआ , वरन जिन्होंने ऐसा व्यवहार किया वे ही नीच हुए हैं । "
वास्तव में डगलस का कहना सत्य था , जो सचमुच ऊँचा होगा वह किसी के साथ अपमान , तिरस्कार का बर्ताव नहीं करेगा ।
एक बार जब वे रेल में यात्रा कर रहे थे तो कर्मचारियों ने रंग - भेद के कारण उनको मुसाफिरों के डिब्बे में से उतारकर पार्सल के डिब्बे में बैठने के लिए कहा । उन्होंने वैसा ही किया ।
कुछ देर पश्चात कुछ गोरे यात्री उस पार्सल के डिब्बे में आकर उन्हें आश्वासन देने लगे । एक ने कहा ---- " श्रीमान डगलस ! मुझे अफ़सोस है कि आपको इस प्रकार नीचा दिखाया गया । "
डगलस एक वाक्य पर तनकर खड़े हो गये और कहा ----- " वे फ्रेडरिक डगलस को कभी नीचा नहीं दिखा सकते । मेरे भीतर जो आत्मा है उसे कोई हीन नहीं बना सकता । इसलिए इस व्यवहार से मैं नीचा नहीं हुआ , वरन जिन्होंने ऐसा व्यवहार किया वे ही नीच हुए हैं । "
वास्तव में डगलस का कहना सत्य था , जो सचमुच ऊँचा होगा वह किसी के साथ अपमान , तिरस्कार का बर्ताव नहीं करेगा ।
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