बाबा राघव दास ऐसे संन्यासी थे जिन्होंने पूजा उपासना से अधिक महत्व सेवा और संवेदना को दिया । उन्होंने लोकमंगल के लिए नि:स्वार्थ भाव से जो तपस्या की थी वह उन तपस्याओं से हजार गुना श्रेष्ठ है , जो केवल स्वर्ग और मुक्ति की इच्छा से प्रेरित हो गिरी -कंदराओं में बैठकर की जाती है । स्वतंत्रता संग्राम के कार्यकर्ता, गोरखपुर क्षेत्र की चहुँमुखी उन्नति के लिए अपने आप को खपा देने वाले जन - नायक , शिक्षा - प्रचार के अग्रदूत , पीड़ितों तथा दलितों के सेवक बन्धु आदि के रूप में उन्होंने जो यश - कीर्ति अर्जित की वह उन्हें स्मरणीय तो बनाती है साथ ही संन्यास का सच्चा स्वरुप भी प्रस्तुत करती है ।
चोरी - चौरा काण्ड के 114 अभियुक्तों में से 95 अभियुक्तों को फाँसी के फंदे में से उतार लेने का अधिकांश श्रेय राघवदास जी को ही जाता है । ग्रामदान , भूदान , कुष्ठ आश्रम की स्थापना , हरिजन बच्चों व बाढ़ पीड़ितो की सेवा आदि कोई भी सेवा और जन - कल्याण का कार्य हो वे सदा आगे रहे सत्कर्मों और सेवा साधना के रूप में बाबा राघवदास का जीवन साधुओं के लिए आदर्श है ।
चोरी - चौरा काण्ड के 114 अभियुक्तों में से 95 अभियुक्तों को फाँसी के फंदे में से उतार लेने का अधिकांश श्रेय राघवदास जी को ही जाता है । ग्रामदान , भूदान , कुष्ठ आश्रम की स्थापना , हरिजन बच्चों व बाढ़ पीड़ितो की सेवा आदि कोई भी सेवा और जन - कल्याण का कार्य हो वे सदा आगे रहे सत्कर्मों और सेवा साधना के रूप में बाबा राघवदास का जीवन साधुओं के लिए आदर्श है ।
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